Wednesday, May 4, 2011
जल क्षेत्र में अतिरिक्त कार्य की सलाह (Dainik Jagran- 05 May 2011)
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो :
दिल्ली की वर्ष 2011-12 की वार्षिक योजना के लिए 15,133 करोड़ रुपये की राशि तय की गई है। यह पिछले वर्ष के 11,400 करोड़ रुपये के योजना परिव्यय से 32.75 प्रतिशत अधिक है। इसमें राज्य के योजना परिव्यय के लिए 14,200 करोड़ रुपये और सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकरणों के लिए 933 करोड़ रुपये शामिल हैं। योजना आयोग में बुधवार को मुख्यमंत्री शीला दीक्षित व आयोग के उपाध्यक्ष डा. मोंटेक सिंह आहलूवालिया की एक बैठक में यह फैसला लिया गया। पिछले वर्ष की तरह इस बार भी डा.आहलूवालिया ने दिल्ली सरकार को जल क्षेत्र में अतिरिक्त कार्य करने की सलाह भी दी है। बैठक के बाद संवाददाताओं के साथ बातचीत में डा.आहलूवालिया ने कहा कि दिल्ली में सर्वश्रेष्ठ बुनियादी ढांचा उपलब्ध है। सरकार ने समाज कल्याण, दक्षता विकास, महिला सशक्तिकरण और छात्रवृत्ति वितरण के मामले में अच्छा काम किया है। उन्होंने दिल्ली सरकार को यह सुझाव दिया कि सरकार जल क्षेत्र के लिए अगले 10 वर्ष के भावी अनुमान के आधार पर कार्यक्रम तैयार करें। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री की पहल पर आयोग ने जल क्षेत्र के लिए 200 करोड़ रुपये, परिवहन क्षेत्र के लिए भी 200 करोड़ रुपये और एससी/एसटी/अल्पसंख्यक कल्याण के लिए 100 करोड़ रुपये, एमसीडी को अपने क्षेत्र में स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार के लिए 100 करोड़ रुपये अधिक देने का फैसला किया है। डा. आहलूवालिया ने यह भी कहा कि जल वितरण, वर्षा जल संचयन और सीवरेज प्रणाली में सुधार के लिए और प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। शीला दीक्षित ने स्वीकृत वार्षिक योजना की राशि पर संतोष व्यक्त किया। उन्होंने यह भी कहा कि योजना आयोग ने सामाजिक सेवा क्षेत्र के लिए अधिक राशि का इस्तेमाल करने की दिल्ली सरकार की वचनबद्धता की सराहना की है। इससे पहले मुख्य सचिव ने वार्षिक योजना 2010-11 के दौरान सरकार की प्रमुख गतिविधियों से संबंधित एक प्रेजेन्टेशन दिया। इसमें वार्षिक योजना 2011-12 में लागू की जा रही नई और कई प्रमुख परियोजनाएं भी शामिल हैं। दिल्ली की जलापूर्ति की चुनौती से निपटने के लिए कच्चे पानी की आवश्यकता के मुद्दे पर भी चर्चा की गई। जल प्रबंधन प्रणाली में सुधार पर चर्चा हुई। यमुना नदी में प्रदूषण में कमी लाने की आवश्यकता बताई गई। जल आपूर्ति क्षेत्र के तहत वर्षा जल संचयन, उपचारित जल उपयोग, भूमिगत जल स्तर में वृद्धि और लीकेज के कारण पानी के नुकसान को रोकने पर प्राथमिकता दी जाएगी।
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