Saturday, April 30, 2011
खनन से पूर्व पर्यावरण विभाग की अनुमति जरूरी : कोर्ट (Rashtriya Sahara- 30 April 2011)
लखनऊ (एसएनबी)। हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने प्रदेश में की जा रही बालू-मौरंग खनन मामले में कहा है कि आगामी एक जुलाई से पर्यावरण विभाग से बिना अनुमति लिए खनन कार्य नहीं किया जाए। पीठ ने खनन करने वाले पट्टेदारों को 30 जून तक छूट देते हुए कहा है कि वे इस दौरान पर्यावरण विभाग से अनुमति ले सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश एफआई रिवेलो व न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह की खण्डपीठ ने राज्य सरकार को भी निर्देश दिए हैं कि वह केन्द्र सरकार के उस शासनादेश का कड़ाई से पालन कराए जिसमें पर्यावरण विभाग की अनुमति खनन लाइसेंस के समय आवश्यक बतायी गयी है। पीठ ने कहा कि राज्य सरकार पट्टेदारों को खनन का लाइसेंस तभी जारी करे जब पर्यावरण विभाग से अनुमति का प्रमाण पत्र पट्टेदार के पास हो। याचिका प्रस्तुत कर याची मो. कौशरजाह का कहना था कि पर्यावरण अनुमति के बिना पूरे प्रदेश में बालू-मौरंग का खनन किया जा रहा है तथा राज्य सरकार इन्हें अनुमति व लाइसेंस भी जारी कर रही है। याचिका में याची ने सहारनपुर का उदाहरण देते हुए कहा कि इस जिले में सरकार से खनन का लाइसेंस लेकर पद्टेदार अवैध खनन कर रहे हैं। पीठ ने आदेश में यह भी कहा कि राज्य सरकार पट्टा देने का लाइसेंस जारी करते समय यह सुनिश्चित करें कि पर्यावरण विभाग द्वारा पट्टेदार के पास अनापत्ति प्रमाण पत्र है अथवा नहीं।
यमुना बचाओ आंदोलन से जुड़ेंगी फिल्मी हस्तियां (Dainik Jagran 30 April 2011)
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता : यमुना को बचाने के लिए संतों व किसानों के अभियान में अब फिल्म जगत की हस्तियां भी शामिल होने वाली हैं। सरकार पर दबाव बनाने के उद्देश्य से एक मई को प्रस्तावित यमुना भक्तों की महापंचायत में अभियान में हेमा मालिनी, उनकी बेटियां ऐशा देओल व आहना, अभिनेता विवेक ओबराय व सतीश कौशिक सहित अन्य फिल्मी हस्तियों के शामिल होने की उम्मीद है। उधर, संतों ने इस दिन दिल्ली, मुंबई व मथुरा में एक साथ प्रदर्शन करने की भी घोषणा की है। संतों ने महापंचायत की रणनीति तय कर ली है और इसमें यमुना के तटवर्ती प्रदेशों के संतों, किसानों व पर्यावरण प्रेमियों के बड़ी संख्या में एकत्रित करने की बात कही है। एक अनुमान के तहत यहां 72 जिलों से कम से कम दस हजार लोगों के पहुंचने की उम्मीद है। इलाहाबाद से पदयात्रा कर राजधानी पहुंच जंतर-मंतर पर एक पखवाड़े से अनशन पर बैठे संतों व किसानों ने सरकार पर दबाव बनाने के उद्देश्य से महापंचायत को वृहद स्वरूप देने की तैयारी की है। हथिनी कुंड व वजीराबाद बांध के दौरे के बाद निराश संतों ने आर-पार की लड़ाई की घोषणा की है। संतों के मुताबिक सरकार भक्तिमय आंदोलन की भाषा नहीं समझ रही है। बार-बार संतों को बरगलाने की कोशिश की जा रही है। सरकार द्वारा पर्याप्त मात्रा में पानी छोड़ने का दावा तो किया जा रहा है, लेकिन यह महज कागजों पर हो रहा है। पदयात्रा के संयोजक स्वामी जयकृष्ण दास ने बताया कि एक मई को एक ही समय पर दिल्ली के जंतर-मंतर, मुंबई के जुहू व मथुरा में प्रदर्शन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि मुंबई के अलावा दिल्ली के प्रदर्शन में भी कई फिल्मी हस्तियों ने शामिल होने की बात कही है। इनमें हेमा मालिनी, ऐशा देओल, आहना, विवेक ओबराय व सतीश कौशिक शामिल हैं। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने बताया कि यमुना के तटवर्ती राज्य उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान व दिल्ली के 72 जिलों के कार्यकर्ता यहां एकत्रित होंगे।
नहीं मिल पाएंगी केन-बेतवा? (Dainik Jagran- 30 April 2011)
सुरेंद्र प्रसाद सिंह,
नई दिल्ली सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड के लोगों की समस्या के स्थायी समाधान के लिए केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना की घोषणा शायद ही हो पाए। जल संकट के समाधान के लिए प्रस्तावित केन बेतवा नदी जोड़ परियोजना पर्यावरण के विवादों में बुरी तरह उलझ गई है। केंद्रीय पर्यावरण राज्यमंत्री जयराम रमेश इस परियोजना के पूरी तरह विरोध में हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी शनिवार को बांदा में होंगे और जल संकट के समाधान को लेकर लोगों को ठोस घोषणा की उम्मीद रहेगी। अलबत्ता केन और बेतवा को जोड़ इस क्षेत्र में पानी लाने की योजना मुश्किलों में फंस गई है। प्रधानमंत्री की बांदा रैली के एक दिन पहले पर्यावरण मंत्री रमेश ने जागरण से बातचीत में कहा केन-बेतवा नदी जोड़ने की परियोजना पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा हो सकती है। इसलिए मैं जोर देकर कह रहा हूं कि ऐसी किसी परियोजना को पर्यावरण मंत्रालय किसी भी हाल में मंजूरी नहीं देगा। केन और बेतवा दोनों नदियां मध्य प्रदेश से निकलकर बुंदेलखंड के दोनों छोर से होती हुई उत्तर प्रदेश की सीमा क्षेत्र में यमुना नदी से मिलती हैं। दोनों नदियों को जोड़ने की परियोजना की उपयोगिता के मद्देनजर ही इसकी व्यवहार्यता रिपोर्ट भी तैयार करा ली गई है। इसके तहत केन के अतिरिक्त पानी को मोड़कर बेतवा नदी से जोड़ने का प्रस्ताव है। इस दौरान बनाए जाने वाले बांध, बैराज और नहरों के मार्फत पूरा बुंदेलखंड हरा भरा हो जाएगा। इसके तहत मकोरिया, रिछान, बरारी और केसरी नाम के चार बड़े बैराज और लंबी नहरें बनाई जानी हैं। केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना की प्रारंभिक लागत 1800 करोड़ आंकी गई थी, जो अब बढ़कर 9000 करोड़ रुपये से अधिक हो गई
नई दिल्ली सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड के लोगों की समस्या के स्थायी समाधान के लिए केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना की घोषणा शायद ही हो पाए। जल संकट के समाधान के लिए प्रस्तावित केन बेतवा नदी जोड़ परियोजना पर्यावरण के विवादों में बुरी तरह उलझ गई है। केंद्रीय पर्यावरण राज्यमंत्री जयराम रमेश इस परियोजना के पूरी तरह विरोध में हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी शनिवार को बांदा में होंगे और जल संकट के समाधान को लेकर लोगों को ठोस घोषणा की उम्मीद रहेगी। अलबत्ता केन और बेतवा को जोड़ इस क्षेत्र में पानी लाने की योजना मुश्किलों में फंस गई है। प्रधानमंत्री की बांदा रैली के एक दिन पहले पर्यावरण मंत्री रमेश ने जागरण से बातचीत में कहा केन-बेतवा नदी जोड़ने की परियोजना पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा हो सकती है। इसलिए मैं जोर देकर कह रहा हूं कि ऐसी किसी परियोजना को पर्यावरण मंत्रालय किसी भी हाल में मंजूरी नहीं देगा। केन और बेतवा दोनों नदियां मध्य प्रदेश से निकलकर बुंदेलखंड के दोनों छोर से होती हुई उत्तर प्रदेश की सीमा क्षेत्र में यमुना नदी से मिलती हैं। दोनों नदियों को जोड़ने की परियोजना की उपयोगिता के मद्देनजर ही इसकी व्यवहार्यता रिपोर्ट भी तैयार करा ली गई है। इसके तहत केन के अतिरिक्त पानी को मोड़कर बेतवा नदी से जोड़ने का प्रस्ताव है। इस दौरान बनाए जाने वाले बांध, बैराज और नहरों के मार्फत पूरा बुंदेलखंड हरा भरा हो जाएगा। इसके तहत मकोरिया, रिछान, बरारी और केसरी नाम के चार बड़े बैराज और लंबी नहरें बनाई जानी हैं। केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना की प्रारंभिक लागत 1800 करोड़ आंकी गई थी, जो अब बढ़कर 9000 करोड़ रुपये से अधिक हो गई
Thursday, April 28, 2011
CCEA clears Rs.7,000-cr. project to clean Ganga (The Hindu-29 April 2011)
Aarthi Dhar
Devotees taking a dip on the banks of Ganga at the break of dawn in Varanasi. The CCEA has approved a Rs 7000-crore project for cleaning the holy river. File Photo
The Cabinet Committee on Economic Affairs (CCEA) on Thursday approved a Rs.7,000-crore project to clean the Ganga. It will be implemented by the National Ganga River Basin Authority (NGRBA).
The Centre's share will be Rs.5,100 crore and that of the governments of Uttarakhand, Uttar Pradesh, Bihar, Jharkhand and West Bengal Rs.1,900 crore.
The World Bank has agreed in principle to provide a loan assistance of $1 billion (roughly Rs.4,600 crore) for the NGRBA project, which will form part of the Central share of the project.
The duration of the project will be eight years. The NGRBA was constituted in February 2009 as an empowered planning, financing, monitoring and coordinating authority for the Ganga under the Environment (Protection) Act, 1986.
The objective of the Authority, which is chaired by the Prime Minister, is to ensure conservation of the Ganga by comprehensive planning and management, adopting a river basin approach.
The project is envisaged as the first phase in a long-term programme of World Bank support to the NGRBA.
The project, which will support the NGRBA's objective of Mission Clean Ganga, has been designed keeping in view the lessons learnt from the previous Ganga Action Plan and international river clean-ups.
The project will have components relating to institutional development for setting up dedicated institutions for implementing the NGRBA programme, setting up Ganga Knowledge Centre and strengthening environmental regulators (Pollution Control Boards) and local institutions.
It will also have components relating to infrastructure investments, including municipal sewage, industrial pollution, solid wastes and river front management, and project implementation support.
The CCEA has also cleared an intensified malaria control programme for the seven North-Eastern States at a cost of Rs.417 crore. The programme is being run under the National Vector Borne Disease Control Programme (NVBDCP) with support from Global Fund to Fight AIDS, TB and Malaria (GFATM - Round 9).
The approval envisages continuance of the erstwhile Global Fund Supported Intensified Malaria Control Project (IMCP-I) (2005-10), with revised geographical focus in high-endemic seven North-Eastern States for accelerated control of malaria, a government spokesperson said.
Human resources development, procurement and distribution of commodities and drugs, information, education and communication, behaviour change communication (BCC) activities and planning, monitoring and evaluation are the main components of the programme.
The project will facilitate upscaling of detection of Plasmodium falciparum (Pf) cases through Rapid Diagnostic Tests (RDTs), treatment of cases with Artemisinin Based Combination Therapy (ACT) and distribution of Long Lasting Insecticidal Nets (LLINs).
Further, it includes measures for improving behaviour change communication, vector and parasite surveillance, partnership development and capacity building.
The aim of the project is to reduce malaria-related mortality and morbidity in project States by at least 30 per cent by 2015 as compared with the 2008 levels.
The project will cover a five-year period from October 1, 2010 to September 30, 2015.
सात हजार करोड़ से होगी गंगा साफ (Dainik Jagran- 29 April 2011)
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो :
केंद्र सरकार ने विश्व बैंक की मदद से गंगा नदी को साफ करने के लिए 7,000 करोड़ रुपये की एक योजना को स्वीकृति दे दी है। सफाई की जिम्मेदारी नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी (एनजीआरबीए) को सौंपी गई है। कुल लागत में 5100 करोड़ रुपये केंद्र सरकार वहन करेगी, जबकि शेष 1900 करोड़ रुपये का इंतजाम उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल की सरकारों को करना होगा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में गुरुवार को यहां आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में इस बारे में प्रस्ताव को हरी झंडी दिखाई गई। यह पूरी योजना आठ वर्षो में पूरी की जाएगी। गंगा की सफाई के लिए यह अभी तक की सबसे महत्वाकांक्षी योजना होगी। केंद्र सरकार का पहले ही विश्व बैंक के साथ इस बारे में समझौता हो चुका है। विश्व बैंक इसके लिए 4600 करोड़ रुपये की राशि बहुत ही कम ब्याज दर पर देगा। दूसरे शब्दों में कहें तो 5100 करोड़ रुपये जो केंद्र को देने हैं उसमें से 4600 करोड़ उसे विश्व बैंक से हासिल होंगे। गंगा सफाई की नई योजना अभी तक की योजनाओं की सफलताओं और विफलताओं से सबक सीखते हुए तैयार की जा रही है। योजना के तहत गंगा सफाई अभियान को आगे बढ़ाने के लिए विशेष संस्थान गठित किए जाएंगे। साथ ही स्थानीय संस्थानों को भी मजबूत बनाया जाएगा, ताकि वे गंगा की सफाई में लंबी अवधि में अपनी भूमिका निभा सके। इस राशि से गंगा ज्ञान केंद्र भी स्थापित किए जाएंगे और इसकी मदद से प्रदूषण नियंत्रक बोर्ड को भी ज्यादा सशक्त बनाया जाएगा। गंगा के किनारे बसने वाले शहरों में निकासी व्यवस्था सुधारी जाएगी और इन शहरों में औद्योगिक प्रदूषण को दूर करने के लिए नीति बनाई जाएगी
Wednesday, April 27, 2011
ताजेवाला से दिल्ली को मिल रहा है महज 10 फीसद पानी (Rashtriya Sahara- 28 April 2011)
नई दिल्ली (एसएनबी)।
यमुना बचाओ आंदोलन के प्रतिनिधियों ने बुधवार को संबंधित सरकारी अधिकारियों के साथ ताजेवाला (हथिनीकुंड) बैराज जाकर वहां का जायजा लिया। संत व किसानों के प्रतिनिधि ताजेवाला जाकर काफी निराश हुए। उनका कहना है कि सरकार केवल हरियाणा को खुश कर रही है। ताजेवाला से बहुत कम मात्रा में पानी दिल्ली के लिए छोड़ा जा रहा है और सरकार केवल आंकड़ों की जादूगरी दिखा रही है। उन्होंने कहा कि ताजेवाला पर तो दिल्ली के लिए 160 क्यूसेक पानी छोड़ने की बात कही गई थी जिसे सुबह ही छोड़ा गया। आंदोलनकारियों की मांग है कि यमुना में निर्मल जल प्रवाहित होता दिखना भी चाहिए। जब पानी दिल्ली ही नहीं आएगा तो बृज और इलाहबाद में यमुना का पानी कैसे पहुंचेगा। बहर हाल किसानों ने 1 मई को जंतर मंतर पर महापंचायत करने की घोषणा की है। भारतीय किसान यूनियन (भानू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने कहा कि ताजेवाला की स्थिति बेहद निराशाजनक है। जो पानी यमुना में छोड़ा गया है वह मुश्किल से 10 किलोमीटर के भीतर खत्म हो जाएगा। अब हमारे पास केवल महापंचायत कर सरकार से अपनी मांग मनवाने के सिवा कोई रास्ता नहीं है। यूनियन के महासचिव राजेंद्र प्रसद शास्त्री ने कहा कि दिल्ली के लिए 10 फीसद भी जल नहीं छोड़ा जा रहा। आंदोलन जारी रहेगा और उम्मीद है कि यमुनोत्री का जल इलाहबाद तक पहुंचेगा। भारतीय ब्रज रक्षिणी हरिनाम प्रचारिणी सभा के राष्ट्रीय संरक्षक संत जयकृष्ण दास बरसाना ने कहा कि सरकारी वादों में दम नहीं है।
यमुना बचाओ आंदोलन के प्रतिनिधियों ने ताजेवाला बैराज का किया दौरा कहा, यमुना में छोड़ा गया पानी 10 किलोमीटर के भीतर हो जाएगा खत्म किसानों ने एक मई को जंतर-मंतर पर की महापंचायत करने की घोषणा
यमुना बचाओ आंदोलन के प्रतिनिधियों ने बुधवार को संबंधित सरकारी अधिकारियों के साथ ताजेवाला (हथिनीकुंड) बैराज जाकर वहां का जायजा लिया। संत व किसानों के प्रतिनिधि ताजेवाला जाकर काफी निराश हुए। उनका कहना है कि सरकार केवल हरियाणा को खुश कर रही है। ताजेवाला से बहुत कम मात्रा में पानी दिल्ली के लिए छोड़ा जा रहा है और सरकार केवल आंकड़ों की जादूगरी दिखा रही है। उन्होंने कहा कि ताजेवाला पर तो दिल्ली के लिए 160 क्यूसेक पानी छोड़ने की बात कही गई थी जिसे सुबह ही छोड़ा गया। आंदोलनकारियों की मांग है कि यमुना में निर्मल जल प्रवाहित होता दिखना भी चाहिए। जब पानी दिल्ली ही नहीं आएगा तो बृज और इलाहबाद में यमुना का पानी कैसे पहुंचेगा। बहर हाल किसानों ने 1 मई को जंतर मंतर पर महापंचायत करने की घोषणा की है। भारतीय किसान यूनियन (भानू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने कहा कि ताजेवाला की स्थिति बेहद निराशाजनक है। जो पानी यमुना में छोड़ा गया है वह मुश्किल से 10 किलोमीटर के भीतर खत्म हो जाएगा। अब हमारे पास केवल महापंचायत कर सरकार से अपनी मांग मनवाने के सिवा कोई रास्ता नहीं है। यूनियन के महासचिव राजेंद्र प्रसद शास्त्री ने कहा कि दिल्ली के लिए 10 फीसद भी जल नहीं छोड़ा जा रहा। आंदोलन जारी रहेगा और उम्मीद है कि यमुनोत्री का जल इलाहबाद तक पहुंचेगा। भारतीय ब्रज रक्षिणी हरिनाम प्रचारिणी सभा के राष्ट्रीय संरक्षक संत जयकृष्ण दास बरसाना ने कहा कि सरकारी वादों में दम नहीं है।
यमुना बचाओ आंदोलन के प्रतिनिधियों ने ताजेवाला बैराज का किया दौरा कहा, यमुना में छोड़ा गया पानी 10 किलोमीटर के भीतर हो जाएगा खत्म किसानों ने एक मई को जंतर-मंतर पर की महापंचायत करने की घोषणा
दबाव में छोड़ा यमुना में पानी (Dainik Jagran-28 April 2011)
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता :
हथिनी कुंड बैराज से यमुना में प्रतिदिन 11 क्यूसेक पानी छोड़ने के दावे की स्थानीय लोगों ने पोल खोल दी है। लोगों के मुताबिक, प्रतिनिधिमंडल को दिखाने के लिए बुधवार को बैराज से पानी छोड़ा गया। वहीं आम दिनों में वहां नदी सूखी रहती है और वे इसे पार करने के लिए नाव की बजाए बाइक का प्रयोग करते हैं। पानी छोड़े जाने की जांच के लिए ताजेवाला पहुंचे संतों ने ग्रामीणों के इस खुलासे के बाद नाराजगी जताई है। उन्होंने सरकार पर अपने साथ छल करने का आरोप लगाया है। संत समाज का कहना है कि यमुना में पानी छोड़ा गया, लेकिन महज दिखावे के लिए। बैराज में जलस्तर पर्याप्त है, फिर भी यमुना में पानी नहीं छोड़ा जा रहा है। सरकार के इस रवैये से नाराज संतों ने पहली मई को प्रस्तावित महापंचायत और आंदोलन को तेज करने की घोषणा की है। विदित हो कि यमुना में पानी छोड़ने के लिए इलाहाबाद से पदयात्रा कर हजारों संत गत 14 अप्रैल को जंतर-मंतर पहुंचे और अपनी मांगों के समर्थन में आमरण अनशन की घोषणा की। कई दिनों तक चले आमरण अनशन को तुड़वाने के लिए केंद्र सरकार ने एक कमेटी गठित करने की घोषणा की। इसमें केंद्रीय जल बोर्ड सहित अन्य विभागों के अधिकारियों को शामिल किया गया। लेकिन अनशन समाप्त होने के बाद से ही कमेटी द्वारा मामले में हीलाहवाली की जाने लगी और इसे टालने का प्रयास किया जाने लगा। कमेटी के इस रूख पर नाराजगी जताते हुए संतों ने बीते सोमवार को आंदोलन तेज करने की धमकी दी तो अगले ही दिन मंगलवार को उन्हें वार्ता के लिए आमंत्रित कर हथिनी कुंड से पानी छोड़े जाने की बात बताई गई। यही नहीं, विश्वास न होने की दशा में संतों को खुद वहां भ्रमण कर स्थिति का जायजा लेने का प्रस्ताव दिया गया। प्रस्ताव के बाद बुधवार को कमेटी के साथ हथिनी कुंड पहुंचे संतों व किसानों के प्रतिनिधियों ने भी देखा कि वहां से पर्याप्त मात्रा में पानी छोड़ा जा रहा है। खुशी-खुशी प्रतिनिधिमंडल राजधानी लौट रहा था। इस बीच प्रतिनिधिमंडल की मुलाकात स्थानीय लोगों से हो गई और उन्होंने पूरे मामले की पोल खोल दी। ग्रामीणों ने बताया कि आम दिनों में नदी सूखी रहती है और लोग इसे पार करने के लिए नाव की बजाए बाइक का इस्तेमाल करते हैं। ग्रामीणों से सत्यता जान प्रतिनिधिमंडल हैरान रह गया। कमेटी की हरकत से नाराज संतों ने सरकार पर छल का आरोप लगाते हुए पहली मई को महापंचायत करने और आंदोलन तेज करने की घोषणा की। यात्रा व धरने के संयोजक स्वामी जयकृष्ण दास ने बताया कि सरकार ने उनके साथ छल किया है और इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ेगा। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भानू प्रताप सिंह के मुताबिक, पहली मई तक यदि मथुरा तक यमुना में पानी नहीं पहुंचा तो राजधानी में विशाल प्रदर्शन किया जाएगा। राधाकृष्ण शास्त्री के मुताबिक, सरकार बार-बार छल कर यह जता रही है कि कहीं न कहीं अवश्य ही भारी घोटाला है
हथिनी कुंड बैराज से यमुना में प्रतिदिन 11 क्यूसेक पानी छोड़ने के दावे की स्थानीय लोगों ने पोल खोल दी है। लोगों के मुताबिक, प्रतिनिधिमंडल को दिखाने के लिए बुधवार को बैराज से पानी छोड़ा गया। वहीं आम दिनों में वहां नदी सूखी रहती है और वे इसे पार करने के लिए नाव की बजाए बाइक का प्रयोग करते हैं। पानी छोड़े जाने की जांच के लिए ताजेवाला पहुंचे संतों ने ग्रामीणों के इस खुलासे के बाद नाराजगी जताई है। उन्होंने सरकार पर अपने साथ छल करने का आरोप लगाया है। संत समाज का कहना है कि यमुना में पानी छोड़ा गया, लेकिन महज दिखावे के लिए। बैराज में जलस्तर पर्याप्त है, फिर भी यमुना में पानी नहीं छोड़ा जा रहा है। सरकार के इस रवैये से नाराज संतों ने पहली मई को प्रस्तावित महापंचायत और आंदोलन को तेज करने की घोषणा की है। विदित हो कि यमुना में पानी छोड़ने के लिए इलाहाबाद से पदयात्रा कर हजारों संत गत 14 अप्रैल को जंतर-मंतर पहुंचे और अपनी मांगों के समर्थन में आमरण अनशन की घोषणा की। कई दिनों तक चले आमरण अनशन को तुड़वाने के लिए केंद्र सरकार ने एक कमेटी गठित करने की घोषणा की। इसमें केंद्रीय जल बोर्ड सहित अन्य विभागों के अधिकारियों को शामिल किया गया। लेकिन अनशन समाप्त होने के बाद से ही कमेटी द्वारा मामले में हीलाहवाली की जाने लगी और इसे टालने का प्रयास किया जाने लगा। कमेटी के इस रूख पर नाराजगी जताते हुए संतों ने बीते सोमवार को आंदोलन तेज करने की धमकी दी तो अगले ही दिन मंगलवार को उन्हें वार्ता के लिए आमंत्रित कर हथिनी कुंड से पानी छोड़े जाने की बात बताई गई। यही नहीं, विश्वास न होने की दशा में संतों को खुद वहां भ्रमण कर स्थिति का जायजा लेने का प्रस्ताव दिया गया। प्रस्ताव के बाद बुधवार को कमेटी के साथ हथिनी कुंड पहुंचे संतों व किसानों के प्रतिनिधियों ने भी देखा कि वहां से पर्याप्त मात्रा में पानी छोड़ा जा रहा है। खुशी-खुशी प्रतिनिधिमंडल राजधानी लौट रहा था। इस बीच प्रतिनिधिमंडल की मुलाकात स्थानीय लोगों से हो गई और उन्होंने पूरे मामले की पोल खोल दी। ग्रामीणों ने बताया कि आम दिनों में नदी सूखी रहती है और लोग इसे पार करने के लिए नाव की बजाए बाइक का इस्तेमाल करते हैं। ग्रामीणों से सत्यता जान प्रतिनिधिमंडल हैरान रह गया। कमेटी की हरकत से नाराज संतों ने सरकार पर छल का आरोप लगाते हुए पहली मई को महापंचायत करने और आंदोलन तेज करने की घोषणा की। यात्रा व धरने के संयोजक स्वामी जयकृष्ण दास ने बताया कि सरकार ने उनके साथ छल किया है और इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ेगा। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भानू प्रताप सिंह के मुताबिक, पहली मई तक यदि मथुरा तक यमुना में पानी नहीं पहुंचा तो राजधानी में विशाल प्रदर्शन किया जाएगा। राधाकृष्ण शास्त्री के मुताबिक, सरकार बार-बार छल कर यह जता रही है कि कहीं न कहीं अवश्य ही भारी घोटाला है
यमुना को देख छलके आंसू (Dainik Bhaskar- 28 April 2011)
खिजराबाद (यमुनानगर).
यमनोत्री से वृंदावन तक सीधे यमुना का पानी मांग रहा यमुना बचाओ आंदोलन का दल बुधवार को यमुनानगर में हथनी कुंड बैराज तक पहुंच गया। इलाहाबाद से तीन मार्च को चले दल के लोग जब यहां पहुंचे तो यमुना नदी की हालत देखकर उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े।
यमुना बचाओ आंदोलन के सदस्यों ने बताया कि जो पानी हमें वृंदावन में मिल रहा है, वह यमुना का नहीं है। उसे तो हथनी कुंड में कैद कर लिया। हमें तो दिल्ली के सीवर का पानी दिया जा रहा है। और, हम हैं कि इसे ही यमुना जल समझ कर पूजा रहे हैं। अब यह अन्याय नहीं सहेंगे। यमुना का पानी लेकर रहेंगे।
रेगिस्तान में बदल रही नदी
दल के नेतृत्व कर रहे मान मंदिर सेवा संस्थान के जयकृष्ण दास और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भानू प्रताप सिंह ने बताया कि यमुना के साथ अन्याय अब बर्दाश्त नहीं करेंगे। शिष्टमंडल में आए रवि मोंगा ने कहा कि पहाड़ से मैदान में आते ही नदी की यह हालत है।
नारायण दास व राजेंद्र प्रसाद शास्त्री ने कहा कि यमुना नदी का पानी सरकारों ने अपने आप ही बांट लिया है। जबकि यमुना नदी तो पूरे भारत की है। इस पर सभी का हक है। नदी से लोगों की धार्मिक आस्था जुड़ी है। होना तो यह चाहिए कि नदी को बचाने की कोशिश होनी चाहिए। हो रहा है इसके उलट। इस वजह से यमुना नदी सूख कर रेगिस्तान हो गई है। जहां पत्थर व रेत के सिवाय कुछ भी नजर नहीं आ रहा है।
आंदोलन
यह यात्रा तीन मार्च को इलाहाबाद से चली है। 14 अप्रैल को दिल्ली पहुंची। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, मंत्री जयराम रमेश से मिले। वहां उन्हें आश्वासन दिया गया कि यमुना नदी में यमनोत्री का पानी वृंदावन तक दिया जाएगा।
Tuesday, April 26, 2011
यमुना के घाटों का लिया जायजा (Rashtriya Sahara- 24 April 2011)
नई दिल्ली (एसएनबी)।
यमुना बचाओ के नारों के साथ जंतर मंतर पर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे साधू- संतों और किसानों ने शनिवार को यमुना तट का दौरा किया। अनिश्चितकालीन धरने के आठवें दिन वजीराबाद ब्रिज और आईटीओ सहित विभिन्न घाटों पर जाकर प्रतिनिधिमंडल ने यमुना नदी में जल की मात्रा का जायजा लिया। आमरण अनशन, शांति मार्च, भजन कीर्तन, पदयात्रा सभी कुछ कर चुके साधु- संतों और किसानों को उम्मीद है कि जल्दी ही यमुना में यमुनोत्री का निर्मल जल प्रवाहित होगा। गुरुवार को केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन द्वारा अनशनकारियों का अनशन खत्म कराने के बाद मथुरा तक जल प्रवाहित होने तक आंदोलनकारी जंतर मंतर पर मौजूद रहने की बात कह चुके हैं। अब उन्हें बस यमुना में निर्मल जल प्रवाहित होने का इंतजार है। प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व ब्रजरक्षिणी हरिनाम प्रचारिणी सभा के राष्ट्रीय संरक्षक संत जयकृष्णदास (बरसाना) और भारतीय किसान यूनियन (भानु) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठाकुर भानुप्रताप सिंह ने किया। प्रतिनिधिमंडल ने यमुना में व्याप्त गंदगी पर चिंता जताई और सरकार से समस्या को दूर कराने की मांग की। ठाकुर भानु प्रताप ने कहा कि सरकार ने जो यमुना में पानी छोड़े जाने के लिए उच्चस्तरीय कमेटी बनाई है उसके सदस्यों को जल्दी ही हरियाणा के हथिनीकुंड का जायजा लेने के लिए भेजा जाना चाहिए।
यमुना बचाओ के नारों के साथ जंतर मंतर पर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे साधू- संतों और किसानों ने शनिवार को यमुना तट का दौरा किया। अनिश्चितकालीन धरने के आठवें दिन वजीराबाद ब्रिज और आईटीओ सहित विभिन्न घाटों पर जाकर प्रतिनिधिमंडल ने यमुना नदी में जल की मात्रा का जायजा लिया। आमरण अनशन, शांति मार्च, भजन कीर्तन, पदयात्रा सभी कुछ कर चुके साधु- संतों और किसानों को उम्मीद है कि जल्दी ही यमुना में यमुनोत्री का निर्मल जल प्रवाहित होगा। गुरुवार को केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन द्वारा अनशनकारियों का अनशन खत्म कराने के बाद मथुरा तक जल प्रवाहित होने तक आंदोलनकारी जंतर मंतर पर मौजूद रहने की बात कह चुके हैं। अब उन्हें बस यमुना में निर्मल जल प्रवाहित होने का इंतजार है। प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व ब्रजरक्षिणी हरिनाम प्रचारिणी सभा के राष्ट्रीय संरक्षक संत जयकृष्णदास (बरसाना) और भारतीय किसान यूनियन (भानु) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठाकुर भानुप्रताप सिंह ने किया। प्रतिनिधिमंडल ने यमुना में व्याप्त गंदगी पर चिंता जताई और सरकार से समस्या को दूर कराने की मांग की। ठाकुर भानु प्रताप ने कहा कि सरकार ने जो यमुना में पानी छोड़े जाने के लिए उच्चस्तरीय कमेटी बनाई है उसके सदस्यों को जल्दी ही हरियाणा के हथिनीकुंड का जायजा लेने के लिए भेजा जाना चाहिए।
जारी है 15 गांवों में प्रदूषित पानी की आपूर्ति (Rashtriya Sahara- 24 April 2011)
सुरक्षित पेयजल न मिल पाने से जनता प्रदूषित पानी पीने को मजबूर लोगों को जलजनित बीमारियां होने का खतरा पानी की शुद्धीकरण के लिए संयंत्र की स्थापना की जनता की मांग अनसुनी जम्मू-कश्मीर
जम्मू (एजेंसी)। सुरिनसार झील का प्रदूषित पानी कई वर्षो से पीने के लिए 15 गांवों को दिया जा रहा है और स्थानीय निवासियों की यहां इस पानी के शुद्धिकरण के लिए एक संयंत्र स्थापित करने की मांग अब तक पूरी नहीं हो पाई है। पुरखराल गांव के अंगरेज सिंह ने यहां संवाददाताओं से कहा,'हमें पिछले कई साल से सुरिनसार झील के प्रदूषित पानी की आपूर्ति की जा रही है। इस पानी में मिट्टी होती है, लेकिन सुरक्षित पेयजल न मिल पाने की वजह से हम यही पानी पीने के लिए मजबूर हैं।'
सिंह की तरह ही चिल्ला, जैथाली, पंजवा और सुरिनसार गांव के ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि उनके घरों में भी प्रदूषित पानी की आपूर्ति की जा रही है और इस पानी के शुद्धिकरण के लिए संयंत्र स्थापित करने की उनकी मांग पर ध्यान नहीं दिया गया है। ग्रामीणों के मुताबिक प्रदूषित पानी को पीने से उन्हें जलजनित बीमारियां होने का खतरा है।
जम्मू (एजेंसी)। सुरिनसार झील का प्रदूषित पानी कई वर्षो से पीने के लिए 15 गांवों को दिया जा रहा है और स्थानीय निवासियों की यहां इस पानी के शुद्धिकरण के लिए एक संयंत्र स्थापित करने की मांग अब तक पूरी नहीं हो पाई है। पुरखराल गांव के अंगरेज सिंह ने यहां संवाददाताओं से कहा,'हमें पिछले कई साल से सुरिनसार झील के प्रदूषित पानी की आपूर्ति की जा रही है। इस पानी में मिट्टी होती है, लेकिन सुरक्षित पेयजल न मिल पाने की वजह से हम यही पानी पीने के लिए मजबूर हैं।'
सिंह की तरह ही चिल्ला, जैथाली, पंजवा और सुरिनसार गांव के ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि उनके घरों में भी प्रदूषित पानी की आपूर्ति की जा रही है और इस पानी के शुद्धिकरण के लिए संयंत्र स्थापित करने की उनकी मांग पर ध्यान नहीं दिया गया है। ग्रामीणों के मुताबिक प्रदूषित पानी को पीने से उन्हें जलजनित बीमारियां होने का खतरा है।
नरेगा से चलाया जा सकता है यमुना सफाई अभियान (Rashtriya Sahara- 22 April 2011)
नई दिल्ली (एसएनबी)।
राजधानी में भी गरीब बड़ी संख्या में रहते हैं। अगर दिल्ली सरकार नरेगा के माध्यम से यमुना की सफाई कराए तो इन गरीबों को रोजगार मिल जाएगा और यमुना सफाई अभियान भी सुचारु रूप से चल सकेगा। यह बात कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव एवं प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी चौ. वीरेंद्र सिंह ने कही। वह प्रदेश महिला कांग्रेस द्वारा आयोजित स्वागत कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। इस अवसर पर दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी चौ. वीरेंद्र सिंह का स्वागत पुष्प गुच्छ देकर किया गया। कार्यक्रम का आयोजन गुरुवार को दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कार्यालय राजीव भवन में किया गया। इस अवसर पर मुख्य मंत्री श्रीमती शीला दीक्षित, वरिष्ठ कांग्रेस नेत्री मोहसिना किदवई, संसदीय सचिव अनिल भारद्वाज भी उपस्थित थे।
राजधानी में भी गरीब बड़ी संख्या में रहते हैं। अगर दिल्ली सरकार नरेगा के माध्यम से यमुना की सफाई कराए तो इन गरीबों को रोजगार मिल जाएगा और यमुना सफाई अभियान भी सुचारु रूप से चल सकेगा। यह बात कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव एवं प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी चौ. वीरेंद्र सिंह ने कही। वह प्रदेश महिला कांग्रेस द्वारा आयोजित स्वागत कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। इस अवसर पर दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी चौ. वीरेंद्र सिंह का स्वागत पुष्प गुच्छ देकर किया गया। कार्यक्रम का आयोजन गुरुवार को दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कार्यालय राजीव भवन में किया गया। इस अवसर पर मुख्य मंत्री श्रीमती शीला दीक्षित, वरिष्ठ कांग्रेस नेत्री मोहसिना किदवई, संसदीय सचिव अनिल भारद्वाज भी उपस्थित थे।
यमुना बचाने को बनी समिति (Rashtriya Sahara 22 April 2011)
स्वच्छ यमुना के लिए साधु संतों का आमरण अनशन रंग लाया, सरकार ने गठित की आठ सदस्यीय समिति ताजेवाला व वजीराबाद बैराज से क्रमश 4.5 क्यूसेक और 4 क्यूसेक पानी छोड़ा जाएगा यमुना में न्यूनतम पानी के प्रवाह पर निगाह रखेगी कमेटी
नई दिल्ली (एसएनबी)। यमुना नदी की सफाई और उसमें पर्याप्त पानी छोड़ने की मांग को लेकर पिछले सात दिनों से जंतर-मंतर पर बैठे देश भर से आए साधु-संतों व किसानों का अनशन आखिरकार रंग लाया। सरकार यमुना में हथिनीकुंड (ताजेवाला) बैराज व वजीराबाद बैराज से क्रमश 4.5 क्यूसेक और 4 क्यूसेक पानी छोड़ने पर राजी हो गई है। साथ ही यमुना में न्यूनतम पानी का प्रवाह लगातार बना रहे इसके लिए एक आठ सस्यीय समिति गठित की गई है। जिसमें सरकार के पांच प्रतिनिधियों के साथ यमुना बचाओ आंदोलन के तीन सदस्य शामिल होंगे। इसका फैसला केंद्र सरकार के जल मामलों के मंत्रिसमूह की बैठक में गुरुवार को लिया गया। जिसका सकरुलर जल संसाधन मंत्रालय की ओर से बृहस्पतिवार को जारी किया गया। इसी के साथ सात दिनों से चला आ रहा साधु संतों व किसानों का आमरण अनशन खत्म हो गया। लेकिन इन लोगों ने अपना धरना तब तक जारी रखने का ऐलान किया है जबतक कि यमुना में दिल्ली से आगे वृदांवन-मथुरा तक जल का प्रवाह होता न दिखाई दे। गुरुवार को केंदीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम की अध्यक्षता में मंत्रिसमूह की बैठक में यमुना में जल धारा छोड़ने और उस पर निगरानी रखने के लिए एक समिति गठित करने का फैसला लिया गया। इस समिति में केंद्रीय जल आयोग के सीनियर चीफ इंजीनियर, हरियाणा व दिल्ली सरकार के एक-एक प्रतिनिधि, पर्यावरण व वन मंत्रालय व योजना आयोग के एक-एक प्रतिनिधि के अलावा यमुना बचाओ आंदोलन के भी तीन प्रतिनिधि होंगे। इस फैसले के सकरुलर की प्रति लेकर शाम साढ़े पांच बजे केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में ग्रामीण विकास राज्य मंत्री प्रदीप जैन अनशनकारियों के पास जंतर-मंतर पहुंचे और अनशनकारियों को जूस पिलाकर उनका अनशन तुड़वाया। आंदोलन के संरक्षक जयकृष्ण ने कहा कि अभी केवल अनशन तोड़ा गया है, जब तक यमुना में स्वच्छ जल का प्रवाह होना शुरू नहीं हो जाता है तब तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा। किसान नेता भानुप्रताप सिंह ने कहा कि उन्हें जब मथुरा से फोन आ जाएगा कि यमुना में पानी आ गया, तभी दिल्ली से कूच करेंगे। एक एनआरआई आंदोलनकारी राधाजीवन पार ने कहा कि सरकार को सिगरेट व शराब की तरह यमुना के घाटों पर भी चेतावनी के र्बड लगाने चाहिए कि इसमें स्नान करना व आचमन करना आपकी सेहत के लिए खतरनाक है। उन पर वास्तविक हालत बताई जाए कि यमुना में यमुनोत्री का नहीं बल्कि हरियाणा, दिल्ली आदि का मल-मूत्र व औद्योगिक कचरा आ रहा है।
यमुना की स्थिति पर बयान माँगा (Dainik Jagran- 23 April 2011)
नई दिल्ली, जासं :
यमुना बचाओ आंदोलन के तहत जंतर-मंतर पर बैठे संतों व किसानों ने राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री से यमुना की स्थिति पर बयान जारी करने की मांग की है। संतों का कहना है कि सरकार अच्छी तरह जानती है कि हरियाणा के हथिनी कुंड के बाद से यमुना में यमुनोत्री का पानी न होकर सीवर का पानी होता है। विभिन्न शोध रिपोर्टो का हवाला देते हुए संतों ने बताया कि यह पानी अत्यंत प्रदूषित है और इससे आचमन मात्र से लोगों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है। संतों ने इस बाबत राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को एक पत्र भी लिखा है और नदी के किनारे साइन बोर्ड लगाकर इस बाबत चेतावनी जारी करने की मांग की है। यमुना बचाओ आंदोलन के तहत 14 अप्रैल से धरने पर बैठे संतों और किसानों ने अनशन समाप्त होने के दूसरे दिन शुक्रवार को एक पदयात्रा निकाली और जल्द यमुना में पानी छोड़ने की मांग की। इसमें राजनैतिक दलों के कार्यकर्ता व बड़ी संख्या में दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय व जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र शामिल हुए। संयोजन कर रहे मान मंदिर के स्वामी जयकृष्ण दास ने बताया कि जब तक यमुना में आवश्यक मात्रा में पानी छोड़ने का क्रम शुरू नहीं होता और मथुरा तक पानी पहुंच नहीं जाता, धरना व पदयात्रा जारी रहेंगे।
यमुना बचाओ आंदोलन के तहत जंतर-मंतर पर बैठे संतों व किसानों ने राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री से यमुना की स्थिति पर बयान जारी करने की मांग की है। संतों का कहना है कि सरकार अच्छी तरह जानती है कि हरियाणा के हथिनी कुंड के बाद से यमुना में यमुनोत्री का पानी न होकर सीवर का पानी होता है। विभिन्न शोध रिपोर्टो का हवाला देते हुए संतों ने बताया कि यह पानी अत्यंत प्रदूषित है और इससे आचमन मात्र से लोगों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है। संतों ने इस बाबत राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को एक पत्र भी लिखा है और नदी के किनारे साइन बोर्ड लगाकर इस बाबत चेतावनी जारी करने की मांग की है। यमुना बचाओ आंदोलन के तहत 14 अप्रैल से धरने पर बैठे संतों और किसानों ने अनशन समाप्त होने के दूसरे दिन शुक्रवार को एक पदयात्रा निकाली और जल्द यमुना में पानी छोड़ने की मांग की। इसमें राजनैतिक दलों के कार्यकर्ता व बड़ी संख्या में दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय व जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र शामिल हुए। संयोजन कर रहे मान मंदिर के स्वामी जयकृष्ण दास ने बताया कि जब तक यमुना में आवश्यक मात्रा में पानी छोड़ने का क्रम शुरू नहीं होता और मथुरा तक पानी पहुंच नहीं जाता, धरना व पदयात्रा जारी रहेंगे।
Sunday, April 24, 2011
Yamuna is heritage entity:activists (Financial World 18 April 2011)
Agra, April 17 (IANS) More than a month after ascetics embarked on a 1,000-km journey on foot to call for the restoration of the original glory of the Yamuna, conservationists here have demanded the river be recognised as a heritage entity, saying this alone can save the river from pollution and neglect.
‘Yamuna is not just the lifeline of half a dozen cities from Delhi to Agra, but a repository of religious beliefs, culture, history and architecture,’ says Surendra Sharma, president of the Braj Mandal Heritage Conservation Society.
‘Not just for the Sri Krishna lore, the Vaishnavite traditions followed by millions of devotees across the globe owe much to the Yamuna,’ adds Shravan Kumar Singh, a conservationist.
Originating in the Yamunotri glacier in the Himalayas, Yamuna covers a distance of over 1,300 km, before merging with the Ganga in Allahabad.
Various studies over the years have shown the adverse impact the discharge of industrial and household waste has on the river.
At a roundtable discussion ahead of the International Day for Monuments and Sites also called World Heritage Day, on April 18, speakers said Yamuna could be saved from pollution and neglect only if it was recognised as a heritage entity.
‘The BSP (Bahujan Samaj Party) government in Lucknow must support the demand for heritage status to the Yamuna and persuade the central government to initiate appropriate measures in this direction,’ Vrindavan’s eminent musicologist Acharya T. Jaimini said.
A resolution moved unanimously at the meeting said: ‘While appreciating the saints of Braj Mandal, the sadhus from Barsana and Goverdhan who undertook the long march and sat on Dharna in New Delhi to present a charter of demands to the central government, we urge the authorities concerned to take immediate steps to recognise the river Yamuna as a precious heritage resource and initiate appropriate steps to save the river from dying.’
‘Great civilisations in history have flourished along river banks. In India, the rivers are worshipped as goddesses. An interesting fact about the Yamuna is that it has a richer history and a valuable contribution to enriching culture, art, architecture and commerce, when compared to the Ganges (Ganga),’ said Bankey Lal Maheshwari of the charitable organisation Sri Nathji Nishulk Jal Sewa.
Green activist Rajan Kishore said: ‘The epic Mahabharta was written on its banks, saint Parashar and Satyawati gave birth to Ved Vyas, for thousands of years great saints and thinkers lived in ashrams along the Yamuna.’
While flowing along Delhi, the seat of power for centuries, the Yamuna inspired the Mughals and later the British to build some of the most magnificent buildings along its banks. In Agra, the Taj Mahal was built next to it.
‘No other Indian river shares such a diverse and rich history, cultural and religious importance and as the sister of Yamraj, the god of death, Yamuna’s place in the Indian mythological tradition is permanently etched,’ Jagan Nath Poddar of the organisation Friends of Vrindavan told IANS over phone.
Shishir Bhagat, president of Wake UP Agra, a voluntary group which is organising a fast at the Poiya Ghat here to highlight the problem of pollution in the river, said: ‘The problem is that the younger generation is not aware of the rich traditions and the historical significance of the river Yamuna and therefore often demonstrates an attitude of callous indifference towards its plight.’
Activist Subhash Jha said the World Heritage Day provided the most appropriate opportunity to raise their demand.
‘If steps are not taken to save it now, we would be deprived of a great nurturer and a crucial historical tradition,’ warns green activist Ravi Singh.
(Brij Khandelwal can be contacted at brij.k@ians.in)
‘Yamuna is not just the lifeline of half a dozen cities from Delhi to Agra, but a repository of religious beliefs, culture, history and architecture,’ says Surendra Sharma, president of the Braj Mandal Heritage Conservation Society.
‘Not just for the Sri Krishna lore, the Vaishnavite traditions followed by millions of devotees across the globe owe much to the Yamuna,’ adds Shravan Kumar Singh, a conservationist.
Originating in the Yamunotri glacier in the Himalayas, Yamuna covers a distance of over 1,300 km, before merging with the Ganga in Allahabad.
Various studies over the years have shown the adverse impact the discharge of industrial and household waste has on the river.
At a roundtable discussion ahead of the International Day for Monuments and Sites also called World Heritage Day, on April 18, speakers said Yamuna could be saved from pollution and neglect only if it was recognised as a heritage entity.
‘The BSP (Bahujan Samaj Party) government in Lucknow must support the demand for heritage status to the Yamuna and persuade the central government to initiate appropriate measures in this direction,’ Vrindavan’s eminent musicologist Acharya T. Jaimini said.
A resolution moved unanimously at the meeting said: ‘While appreciating the saints of Braj Mandal, the sadhus from Barsana and Goverdhan who undertook the long march and sat on Dharna in New Delhi to present a charter of demands to the central government, we urge the authorities concerned to take immediate steps to recognise the river Yamuna as a precious heritage resource and initiate appropriate steps to save the river from dying.’
‘Great civilisations in history have flourished along river banks. In India, the rivers are worshipped as goddesses. An interesting fact about the Yamuna is that it has a richer history and a valuable contribution to enriching culture, art, architecture and commerce, when compared to the Ganges (Ganga),’ said Bankey Lal Maheshwari of the charitable organisation Sri Nathji Nishulk Jal Sewa.
Green activist Rajan Kishore said: ‘The epic Mahabharta was written on its banks, saint Parashar and Satyawati gave birth to Ved Vyas, for thousands of years great saints and thinkers lived in ashrams along the Yamuna.’
While flowing along Delhi, the seat of power for centuries, the Yamuna inspired the Mughals and later the British to build some of the most magnificent buildings along its banks. In Agra, the Taj Mahal was built next to it.
‘No other Indian river shares such a diverse and rich history, cultural and religious importance and as the sister of Yamraj, the god of death, Yamuna’s place in the Indian mythological tradition is permanently etched,’ Jagan Nath Poddar of the organisation Friends of Vrindavan told IANS over phone.
Shishir Bhagat, president of Wake UP Agra, a voluntary group which is organising a fast at the Poiya Ghat here to highlight the problem of pollution in the river, said: ‘The problem is that the younger generation is not aware of the rich traditions and the historical significance of the river Yamuna and therefore often demonstrates an attitude of callous indifference towards its plight.’
Activist Subhash Jha said the World Heritage Day provided the most appropriate opportunity to raise their demand.
‘If steps are not taken to save it now, we would be deprived of a great nurturer and a crucial historical tradition,’ warns green activist Ravi Singh.
(Brij Khandelwal can be contacted at brij.k@ians.in)
Yamuna cleaning to begin in June (The Hindu 15 April 2011)
Six companies to be awarded bid for work by May
Work on cleaning up the Yamuna by laying interceptor sewers is likely to begin by June, with the Delhi Jal Board hopeful of awarding work for the project by next month. The Board has received bids from over 20 companies.
According to a senior DJB official, the work involves micro tunnelling and with few Indian companies having expertise in the field, a lot of international companies have shown interest. “There are some Indian companies that have tied up with the international ones in a joint bid for work.”
The work will be divided into six segments and be awarded to each company. “At least six companies will be shortlisted by May for the work. The smallest component of the work will be completed in 1.5 years whereas the biggest will be finished in three years. The ongoing work will be reviewed periodically by a project monitoring unit, which will include officials of the Delhi Government's Urban Development (UD) department, DJB and Engineers India Limited,” the official said.
A third party monitoring will also be undertaken by the Independent Quality Review Management Committee that will also have on board members from the DJB, UD department and members from the Delhi Pollution Control Committee.
“We are keen to begin work on the construction of four new sewage treatment plants (STPs) simultaneously. Once the sewers are laid and water trapped, we will need the plants to be ready and functioning so that work on these projects should coincide,” the official explained.
The DJB wants to award work for the STPs by May. “The STPs at Pappankalan and Nilothi will be of 20 MGD, the one at Delhi Gate will be 15 MGD and the fourth at Coronation Pillar will be 40 MGD. Together these will cost Rs.600 crore,” the official said.
“Rehabilitation of Bela Road and Ring Road sewers will also be completed and the discharge trapped at the Bela Road truck sewer be taken directly to the Okhla STP,” the official added.
For the interceptor sewer projects, 35 per cent of the money will come from the Jawaharlal Nehru National Urban Renewal Mission, 50 per cent from the Delhi Government, 15 per cent ad grant from the Delhi Government and Rs.800 crore as loan from HUDCO.
--------------------------------------------------------------------------------
Delhi Jal Board has received over 20 bids so far
Four new sewage treatment plants to be constructed simultaneously
Work on cleaning up the Yamuna by laying interceptor sewers is likely to begin by June, with the Delhi Jal Board hopeful of awarding work for the project by next month. The Board has received bids from over 20 companies.
According to a senior DJB official, the work involves micro tunnelling and with few Indian companies having expertise in the field, a lot of international companies have shown interest. “There are some Indian companies that have tied up with the international ones in a joint bid for work.”
The work will be divided into six segments and be awarded to each company. “At least six companies will be shortlisted by May for the work. The smallest component of the work will be completed in 1.5 years whereas the biggest will be finished in three years. The ongoing work will be reviewed periodically by a project monitoring unit, which will include officials of the Delhi Government's Urban Development (UD) department, DJB and Engineers India Limited,” the official said.
A third party monitoring will also be undertaken by the Independent Quality Review Management Committee that will also have on board members from the DJB, UD department and members from the Delhi Pollution Control Committee.
“We are keen to begin work on the construction of four new sewage treatment plants (STPs) simultaneously. Once the sewers are laid and water trapped, we will need the plants to be ready and functioning so that work on these projects should coincide,” the official explained.
The DJB wants to award work for the STPs by May. “The STPs at Pappankalan and Nilothi will be of 20 MGD, the one at Delhi Gate will be 15 MGD and the fourth at Coronation Pillar will be 40 MGD. Together these will cost Rs.600 crore,” the official said.
“Rehabilitation of Bela Road and Ring Road sewers will also be completed and the discharge trapped at the Bela Road truck sewer be taken directly to the Okhla STP,” the official added.
For the interceptor sewer projects, 35 per cent of the money will come from the Jawaharlal Nehru National Urban Renewal Mission, 50 per cent from the Delhi Government, 15 per cent ad grant from the Delhi Government and Rs.800 crore as loan from HUDCO.
--------------------------------------------------------------------------------
Delhi Jal Board has received over 20 bids so far
Four new sewage treatment plants to be constructed simultaneously
Monday, April 18, 2011
नए जलाशयों को पानी का इंतजार (Amar Ujala 16 April 2011)
कमांड टैंक को पानी मिलने की समय सीमा निर्धारित नहीं
हरियाणा से अधिक कच्चे पानी आने से द्वारका संयंत्र चलेगा
तैयार जलाशय, बिछी पाइप लाइन
जल बोर्ड अधिकारियों के अनुसार नरेला सेक्टर-ए-6 के पॉकेट-11,पॉकेट-5, पाकेट-13, नरेला सेक्टर-ए-5 के पॉकेट-8 में जलाशय बन चुके हैं। टीकदी खुर्द, स्वर्ण जयंती विहार एवं होलांबी कलां फेस-दो में जलाशय बनाने के लिए निविदा स्वीकृति प्रक्रिया में है और अन्य स्थलों पर जलाशय बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इसके अलावा नरेला सेक्टर-ए-10 के पॉकेट-7, नरेला सेक्टर-ए-6 के पॉकेट-4 और नरेला सेक्टर-ए-5 के पॉकेट-14 और होलांबी कलां फेस-दो में सीआई वाटर लाइन भी डाल दी गई है। होलांबी कलां फेस-दो में जलाशय बनाने का काम 18 महीने में पूरा हो जाएगा।
टैंकर के भरोसे ही रहेंगे द्वारका, बिजवासन और नरेला निवासी
नई दिल्ली। अप्रैल आधा बीता, गर्मी ने प्यास बढ़ा दी। नरेला और द्वारका के लोगों की प्यास सार्वजनिक नल और टैंकर के भरोसे ही बुझानी पड़ रही है। नए जलाशय और कमांड टैंक को पानी का इंतजार है। नरेला के अलग-अलग सेक्टर में आठ जलाशय तैयार हैं और सीआई वाटर लाइन भी डाल दी गई है। द्वारका के कमांड टैंक संख्या-एक को हरियाणा से अधिक कच्चा पानी मिलने पर ही द्वारका संयंत्र से पानी मिलेगा। राजनगर पार्ट-दो और गांव नांगल देवत को पानी कब तक मिलेगा? जल बोर्ड ने कमांड टैंक संख्या-1 के लिए हरियाणा से कच्चा पानी मिलने पर और गांव नांगल देवत के लिए जून, 2012 का समय बताया है।
जल बोर्ड का कहना है कि वैकल्पिक रूप से पानी की आपूर्ति अस्थाई तौर पर जल बोर्ड की जीआई पाइप के सहारे सार्वजनिक नलों और कमी की दशा में टैंकर से की जा रही है। पानी की व्यवस्था डीडीए के पैरीफेरियल लाइन से की जानी है। जब डीडीए पानी उपलब्ध कराएगा तब जलापूर्ति होगी। यानी इस गर्मी सरकारी नल और टैंकर के भरोसे ही द्वारका, बिजवासन, नरेला के लोगों को प्यास बुझानी होगी।
जल बोर्ड से मिली जानकारी में यह बात भी सामने आई है कि वित्त वर्ष 2010-11 में बुराड़ी, दौलतपुर, शास्त्री पार्क और सराय काले खां जलाशयों को नांगलोई, सोनिया विहार और वजीराबाद रिसाइकिल प्लांट से पानी दिया गया है। लेकिन द्वारका स्थित कमांड टैंक संख्या-एक को पानी की समुचित मात्रा उपलब्ध नहीं होने से चलाया नहीं जा सकता। जल बोर्ड का कहना है कि कमांड टैंक को पानी मिलने की समय सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती। हरियाणा सरकार जब कच्चे पानी की मात्रा अधिक छोड़ेगी, तब द्वारका संयंत्र चालू होगा। वहीं गांव नांगल देवत में डीडीए की तरफ से टैंकर से उपलब्ध कराई जा रही है। बोर्ड ने दिल्ली हाईकोर्ट को शपथ दिया है कि जून, 2012 तक ही इस गांव को पानी दे पाएंगे।
हरियाणा से अधिक कच्चे पानी आने से द्वारका संयंत्र चलेगा
तैयार जलाशय, बिछी पाइप लाइन
जल बोर्ड अधिकारियों के अनुसार नरेला सेक्टर-ए-6 के पॉकेट-11,पॉकेट-5, पाकेट-13, नरेला सेक्टर-ए-5 के पॉकेट-8 में जलाशय बन चुके हैं। टीकदी खुर्द, स्वर्ण जयंती विहार एवं होलांबी कलां फेस-दो में जलाशय बनाने के लिए निविदा स्वीकृति प्रक्रिया में है और अन्य स्थलों पर जलाशय बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इसके अलावा नरेला सेक्टर-ए-10 के पॉकेट-7, नरेला सेक्टर-ए-6 के पॉकेट-4 और नरेला सेक्टर-ए-5 के पॉकेट-14 और होलांबी कलां फेस-दो में सीआई वाटर लाइन भी डाल दी गई है। होलांबी कलां फेस-दो में जलाशय बनाने का काम 18 महीने में पूरा हो जाएगा।
टैंकर के भरोसे ही रहेंगे द्वारका, बिजवासन और नरेला निवासी
नई दिल्ली। अप्रैल आधा बीता, गर्मी ने प्यास बढ़ा दी। नरेला और द्वारका के लोगों की प्यास सार्वजनिक नल और टैंकर के भरोसे ही बुझानी पड़ रही है। नए जलाशय और कमांड टैंक को पानी का इंतजार है। नरेला के अलग-अलग सेक्टर में आठ जलाशय तैयार हैं और सीआई वाटर लाइन भी डाल दी गई है। द्वारका के कमांड टैंक संख्या-एक को हरियाणा से अधिक कच्चा पानी मिलने पर ही द्वारका संयंत्र से पानी मिलेगा। राजनगर पार्ट-दो और गांव नांगल देवत को पानी कब तक मिलेगा? जल बोर्ड ने कमांड टैंक संख्या-1 के लिए हरियाणा से कच्चा पानी मिलने पर और गांव नांगल देवत के लिए जून, 2012 का समय बताया है।
जल बोर्ड का कहना है कि वैकल्पिक रूप से पानी की आपूर्ति अस्थाई तौर पर जल बोर्ड की जीआई पाइप के सहारे सार्वजनिक नलों और कमी की दशा में टैंकर से की जा रही है। पानी की व्यवस्था डीडीए के पैरीफेरियल लाइन से की जानी है। जब डीडीए पानी उपलब्ध कराएगा तब जलापूर्ति होगी। यानी इस गर्मी सरकारी नल और टैंकर के भरोसे ही द्वारका, बिजवासन, नरेला के लोगों को प्यास बुझानी होगी।
जल बोर्ड से मिली जानकारी में यह बात भी सामने आई है कि वित्त वर्ष 2010-11 में बुराड़ी, दौलतपुर, शास्त्री पार्क और सराय काले खां जलाशयों को नांगलोई, सोनिया विहार और वजीराबाद रिसाइकिल प्लांट से पानी दिया गया है। लेकिन द्वारका स्थित कमांड टैंक संख्या-एक को पानी की समुचित मात्रा उपलब्ध नहीं होने से चलाया नहीं जा सकता। जल बोर्ड का कहना है कि कमांड टैंक को पानी मिलने की समय सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती। हरियाणा सरकार जब कच्चे पानी की मात्रा अधिक छोड़ेगी, तब द्वारका संयंत्र चालू होगा। वहीं गांव नांगल देवत में डीडीए की तरफ से टैंकर से उपलब्ध कराई जा रही है। बोर्ड ने दिल्ली हाईकोर्ट को शपथ दिया है कि जून, 2012 तक ही इस गांव को पानी दे पाएंगे।
धरने पर बैठे साधु-संत और किसान (Amar Ujala 16 April 2011)
तीन घंटे के अल्टीमेटम में नरमी बरते हुए बढ़ाया चौबीस घंटे तक
नई दिल्ली। यमुना बचाओ को लेकर साधु-संतों और किसानों ने शुक्रवार से जंतर-मंतर पर अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया। बृज रक्षिणी हरिनाम प्रचारिणी सभा और भाकियू (भानू) के बैनर तले धरने पर बैठे लोगों ने हरियाणा के हथिनी कुंड से यमुना का पानी छोड़ने को लेकर तीन घंटे का सरकार को अल्टीमेटम दिया था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रतिनिधि के रूप में ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन के धरना स्थल पर पहुंचने और प्रदर्शनकारियों को जल्द समस्या को दूर कराने आश्वासन देने के बाद अल्टीमेटम में नरमी बरतते हुए इसे चौबीस घंटे कर दिया है। जब तक मांगे पूरी नहीं हो जाती। साधु-संतों ने जंतर मंतर पर डटे रहने का निर्णय लिया है।
धरने के पहले दिन उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी, मैग्सेसे अवार्ड प्राप्त राजेंद्र सिंह, पर्यावरणविद् दर्शन सिंह यादव, आगरा के सांसद रामाशंकर कठेरिया, विधायक प्रदीप माथुर, उमापीठाधीश्वर रामादेवानंद सरस्वती, बृज रक्षिणी हरिनाम प्रचारिणी सभा के राष्ट्रीय संरक्षक संत जयकृष्ण दास बरसाना, भाकियू भानू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठाकुर भानू प्रताप सिंह समेत दर्जनों साधु-संतों ने यमुना बचाओ मुहिम का भरपूर समर्थन किया। इस मौके पर रीता बहुगुणा ने कहा कि जो काम मैं नहीं कर सकी, वह साधु-संतों व किसानों ने कर दिखाया है। उन्होंने इस पदयात्रा में शामिल नहीं होने पर खेद जताया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का कहना है कि इस अभियान को सार्थक बनाना है। उन्होंने यमुना कार्य योजना में गड़बड़ी की बात स्वीकारी और कहा कि बीच में जो सरकारें आई हैं, वे इसके लिए वे जिम्मेदार हैं। राजीव गांधी के समय भी गंगा एक्शन प्लान पर बेहतरीन काम हुआ था। यमुना प्रदूषित रहेगी तो आत्मा भी शुद्ध नहीं रहेगी। वहीं, रीता बहुगुणा के भाषण के दौरान कुछ लोगों के हूट करने पर उन्होंने कहा कि यह गुस्सा व्यवस्था के खिलाफ है और मैं पूरी दृढ़ता से साधु-संतों और किसानों के साथ खड़ी हूं। इसे लेकर पार्टी नेतृत्व से बात करेंगी ताकि प्रधानमंत्री सभी संबंधित मुख्यमंत्रियों को बुलाकर समस्या का समाधान कराएं। राजेंद्र सिंह ने कहा कि धरने का समर्थन करते हुए कहा कि यमुना लगातार मैली होती जा रही है।
यमुना का प्रदूषण का सीधा असर मानव जीवन पर पड़ेगा।
यमुना की कहानी, यमुना की जुबानी-2
दिल्ली ने लिया बहुत पर दी सिर्फ पीड़ा...
पूर्वी दिल्ली। मैं यमुना हूं। राजधानी की जीवन रेखा, मैं मिट रही हूं। मैं मृतप्राय हो गई हूं। फिर भी, नहीं कहूंगी कि मेरे न होने से दिल्ली उजड़ जाएगी। यह मेरा बड़बोलापन होगा। हां, मैं आपके सामने एक तस्वीर जरूर बनाऊंगी। वह भी ऐसी, जिसमें मेरे और दिल्ली के बीच का रिश्ता दिखे। मैं दिखाऊंगी, दिल्ली मुझसे कितना ले रही है। लेकिन, मुझे क्या मिल रहा है। यह जरूरी है। इसलिए नहीं कि मैं पेशेवर हो गई हूं। यह सोचना भी मेरे लिए गुनाह होगा। जरूरत है तो इसलिए कि समाज और सरकारें बाजार की जुबान बोल रही हैं। उनकी समझ में भी यही भाषा आती है। रिश्तों का आधार, उपयोगिता और भविष्य भी बाजारू होता जा रहा है।
लेनदेन को मैं एकतरफा कहूंगी, अपने लिए घाटे का सौदा। दिल्ली ने लिया बहुत, लेकिन दी मुझे पीड़ा। लेना तो हथिनीकुंड बैराज से शुरू कर दिया। नहर और बांध बनाकर मेरे पानी से प्यास बुझाई। चंद्रावल, वजीराबाद और हैदरपुर जल संयंत्र मुझ पर निर्भर हैं। फिर भूजल स्तर का उतार-चढ़ाव भी हमसे जुड़ा है। इन सबसे दिल्ली अपनी जरूरत का 80 फीसदी पीने का पानी मुझसे निकालती रही है। बदले में दिल्ली मुझे दिया क्या? अनगिनत नालों से लाखों टन कचरा और हमारे अंदर खड़ी होती इमारतें। इससे मेरा दम घुटने लगा है, बेचैन हूं, आखिरी सांस की तरफ बढ़ती हुई मैं छटपटा रही हूं। फिर भी मैं नहीं कहूंगी कि मेरे बाद दिल्ली का क्या होगा? यह फैसला तुम पर छोड़ती हूं। सोचिए, हमारी कुछ अहमियत है भी या नहीं।
सोनिया गांधी के प्रतिनिधि के रूप में पहुंचे ग्रामीण विकास राज्य मंत्री
आगरा से आया मुसलिम समाज
आगरा से मुस्लिम समाज के लोग भी जंतर-मंतर पहुंचे। भारतीय मुसलिम विकास परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष समी अगाई के नेतृत्व में मुसलिम समाज के लोग यहां पहुंचे। मुसलिम समाज के लोगों ने बताया कि यमुना जीवन दायिनी है और जब तक अविरल-निर्मल यमुना में पानी नहीं छोड़ा जाता है, जब तक वे यमुना के रक्षार्थ आंदोलन करेंगे।
लाल बाबा ने सौंपा 151 पेज का ज्ञापन
इलाहाबाद से दिल्ली पदयात्रा कर पहुंचे लाल बाबा ने केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन को एक ज्ञापन सौंपा। 151 पेज के ज्ञापन में उन्होंने शीघ्र यमुना में पानी छोड़ने की मांग सरकार से की है। इस मौके पर लाल बाबा ने मंच से कहा कि राजनेताओं पर उनको विश्वास नहीं है, लेकिन उसके बावजूद भी वे यमुना बचाओ की मांग करते रहेंगे।
यमुना पर निर्भर प्लांट
चंद्रावल एक और दो : 90 एमजीडी
वजीराबाद ए दो और तीन : 120 एमजीडी
हैदरपुर दो : 100 एमजीडी
रैनी वेल और टूबवेल : 100 एमजीडी
स्रोत : स्टेट ऑफ इनवायरमेंट रिपोर्ट-2010, दिल्ली सरकार
सिकुड़ता क्षेत्रफल
दिल्ली में नदी का क्षेत्रफल : करीब 97 वर्ग किमी
जल क्षेत्र: 16 वर्ग किमी
नदी का खादर क्षेत्र: 81 वर्ग किमी
निर्माण से सिकुड़ता क्षेत्र: 63 वर्ग किमी
(स्रोत: तपस)
नई दिल्ली। जंतर मंतर पर यमुना बचाओ मुहिम को सफल बनाने के लिए उत्तर प्रदेश के विभिन्न भागों से आए किसानों ने जंतर-मंतर पर हुक्का-पानी लेकर डेरा डाल दिया है तो बृज से आए लोग अपने साथ भांग लेकर आए हैं जो यहां सिल बट्टे पर घुट रही है। धरने के पहले दिन गाजीपुर, बलिया, बनारस, मिर्जापुर, इलाहाबाद, भदोही, कानपुर, आगरा, कनौज, बाराबंकी, लखनऊ, मुरादाबाद, बिजनौर, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, हमीरपुर, महोबा, झांसी, बांदा, जौनपुर समेत उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों के किसान पहुंचे। जबकि अन्य इलाकों से धरने में भाग लेने वाले किसान, साधु-संत व लोगों ने कूच कर दिया है। आने वाले दिनों में यमुना समर्थकों की तादाद हजार से लाखों में बढ़ने वाली है। ब्रज रक्षिणी हरिनाम प्रचारिणी सभा और भाकियू भानू ने यूपी सहित देश के विभिन्न भागों में रहने वाले लोगों को यह संदेश भिजवाया है कि वे तुरंत यमुना बचाओ मुहिम को सफल बनाने के लिए जंतर-मंतर पहुंचे।
जंतर मंतर पर किसान घोट रहे हैं भांग
यमुना पर सवाल सरकारी सोच का है। नदी संरक्षण के मुद्दे पर डीडीए, एमसीडी जैसी सरकारी एजेंसियां हाथ खड़ा कर देती हैं, जबकि फायदे लेने के लिए सबसे आगे खड़ी दिखती हैं। इसी का परिणाम है कि नदी क्षेत्र में कंक्रीट का जंगल पनपता जा रहा है। - वीके जैन, अध्यक्ष, तपस
जंतर-मंतर पर साधु-संतों के साथ मौजूद रीता बहुगुणा जोशी।
नई दिल्ली। यमुना बचाओ को लेकर साधु-संतों और किसानों ने शुक्रवार से जंतर-मंतर पर अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया। बृज रक्षिणी हरिनाम प्रचारिणी सभा और भाकियू (भानू) के बैनर तले धरने पर बैठे लोगों ने हरियाणा के हथिनी कुंड से यमुना का पानी छोड़ने को लेकर तीन घंटे का सरकार को अल्टीमेटम दिया था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रतिनिधि के रूप में ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन के धरना स्थल पर पहुंचने और प्रदर्शनकारियों को जल्द समस्या को दूर कराने आश्वासन देने के बाद अल्टीमेटम में नरमी बरतते हुए इसे चौबीस घंटे कर दिया है। जब तक मांगे पूरी नहीं हो जाती। साधु-संतों ने जंतर मंतर पर डटे रहने का निर्णय लिया है।
धरने के पहले दिन उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी, मैग्सेसे अवार्ड प्राप्त राजेंद्र सिंह, पर्यावरणविद् दर्शन सिंह यादव, आगरा के सांसद रामाशंकर कठेरिया, विधायक प्रदीप माथुर, उमापीठाधीश्वर रामादेवानंद सरस्वती, बृज रक्षिणी हरिनाम प्रचारिणी सभा के राष्ट्रीय संरक्षक संत जयकृष्ण दास बरसाना, भाकियू भानू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठाकुर भानू प्रताप सिंह समेत दर्जनों साधु-संतों ने यमुना बचाओ मुहिम का भरपूर समर्थन किया। इस मौके पर रीता बहुगुणा ने कहा कि जो काम मैं नहीं कर सकी, वह साधु-संतों व किसानों ने कर दिखाया है। उन्होंने इस पदयात्रा में शामिल नहीं होने पर खेद जताया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का कहना है कि इस अभियान को सार्थक बनाना है। उन्होंने यमुना कार्य योजना में गड़बड़ी की बात स्वीकारी और कहा कि बीच में जो सरकारें आई हैं, वे इसके लिए वे जिम्मेदार हैं। राजीव गांधी के समय भी गंगा एक्शन प्लान पर बेहतरीन काम हुआ था। यमुना प्रदूषित रहेगी तो आत्मा भी शुद्ध नहीं रहेगी। वहीं, रीता बहुगुणा के भाषण के दौरान कुछ लोगों के हूट करने पर उन्होंने कहा कि यह गुस्सा व्यवस्था के खिलाफ है और मैं पूरी दृढ़ता से साधु-संतों और किसानों के साथ खड़ी हूं। इसे लेकर पार्टी नेतृत्व से बात करेंगी ताकि प्रधानमंत्री सभी संबंधित मुख्यमंत्रियों को बुलाकर समस्या का समाधान कराएं। राजेंद्र सिंह ने कहा कि धरने का समर्थन करते हुए कहा कि यमुना लगातार मैली होती जा रही है।
यमुना का प्रदूषण का सीधा असर मानव जीवन पर पड़ेगा।
यमुना की कहानी, यमुना की जुबानी-2
दिल्ली ने लिया बहुत पर दी सिर्फ पीड़ा...
पूर्वी दिल्ली। मैं यमुना हूं। राजधानी की जीवन रेखा, मैं मिट रही हूं। मैं मृतप्राय हो गई हूं। फिर भी, नहीं कहूंगी कि मेरे न होने से दिल्ली उजड़ जाएगी। यह मेरा बड़बोलापन होगा। हां, मैं आपके सामने एक तस्वीर जरूर बनाऊंगी। वह भी ऐसी, जिसमें मेरे और दिल्ली के बीच का रिश्ता दिखे। मैं दिखाऊंगी, दिल्ली मुझसे कितना ले रही है। लेकिन, मुझे क्या मिल रहा है। यह जरूरी है। इसलिए नहीं कि मैं पेशेवर हो गई हूं। यह सोचना भी मेरे लिए गुनाह होगा। जरूरत है तो इसलिए कि समाज और सरकारें बाजार की जुबान बोल रही हैं। उनकी समझ में भी यही भाषा आती है। रिश्तों का आधार, उपयोगिता और भविष्य भी बाजारू होता जा रहा है।
लेनदेन को मैं एकतरफा कहूंगी, अपने लिए घाटे का सौदा। दिल्ली ने लिया बहुत, लेकिन दी मुझे पीड़ा। लेना तो हथिनीकुंड बैराज से शुरू कर दिया। नहर और बांध बनाकर मेरे पानी से प्यास बुझाई। चंद्रावल, वजीराबाद और हैदरपुर जल संयंत्र मुझ पर निर्भर हैं। फिर भूजल स्तर का उतार-चढ़ाव भी हमसे जुड़ा है। इन सबसे दिल्ली अपनी जरूरत का 80 फीसदी पीने का पानी मुझसे निकालती रही है। बदले में दिल्ली मुझे दिया क्या? अनगिनत नालों से लाखों टन कचरा और हमारे अंदर खड़ी होती इमारतें। इससे मेरा दम घुटने लगा है, बेचैन हूं, आखिरी सांस की तरफ बढ़ती हुई मैं छटपटा रही हूं। फिर भी मैं नहीं कहूंगी कि मेरे बाद दिल्ली का क्या होगा? यह फैसला तुम पर छोड़ती हूं। सोचिए, हमारी कुछ अहमियत है भी या नहीं।
सोनिया गांधी के प्रतिनिधि के रूप में पहुंचे ग्रामीण विकास राज्य मंत्री
आगरा से आया मुसलिम समाज
आगरा से मुस्लिम समाज के लोग भी जंतर-मंतर पहुंचे। भारतीय मुसलिम विकास परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष समी अगाई के नेतृत्व में मुसलिम समाज के लोग यहां पहुंचे। मुसलिम समाज के लोगों ने बताया कि यमुना जीवन दायिनी है और जब तक अविरल-निर्मल यमुना में पानी नहीं छोड़ा जाता है, जब तक वे यमुना के रक्षार्थ आंदोलन करेंगे।
लाल बाबा ने सौंपा 151 पेज का ज्ञापन
इलाहाबाद से दिल्ली पदयात्रा कर पहुंचे लाल बाबा ने केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन को एक ज्ञापन सौंपा। 151 पेज के ज्ञापन में उन्होंने शीघ्र यमुना में पानी छोड़ने की मांग सरकार से की है। इस मौके पर लाल बाबा ने मंच से कहा कि राजनेताओं पर उनको विश्वास नहीं है, लेकिन उसके बावजूद भी वे यमुना बचाओ की मांग करते रहेंगे।
यमुना पर निर्भर प्लांट
चंद्रावल एक और दो : 90 एमजीडी
वजीराबाद ए दो और तीन : 120 एमजीडी
हैदरपुर दो : 100 एमजीडी
रैनी वेल और टूबवेल : 100 एमजीडी
स्रोत : स्टेट ऑफ इनवायरमेंट रिपोर्ट-2010, दिल्ली सरकार
सिकुड़ता क्षेत्रफल
दिल्ली में नदी का क्षेत्रफल : करीब 97 वर्ग किमी
जल क्षेत्र: 16 वर्ग किमी
नदी का खादर क्षेत्र: 81 वर्ग किमी
निर्माण से सिकुड़ता क्षेत्र: 63 वर्ग किमी
(स्रोत: तपस)
नई दिल्ली। जंतर मंतर पर यमुना बचाओ मुहिम को सफल बनाने के लिए उत्तर प्रदेश के विभिन्न भागों से आए किसानों ने जंतर-मंतर पर हुक्का-पानी लेकर डेरा डाल दिया है तो बृज से आए लोग अपने साथ भांग लेकर आए हैं जो यहां सिल बट्टे पर घुट रही है। धरने के पहले दिन गाजीपुर, बलिया, बनारस, मिर्जापुर, इलाहाबाद, भदोही, कानपुर, आगरा, कनौज, बाराबंकी, लखनऊ, मुरादाबाद, बिजनौर, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, हमीरपुर, महोबा, झांसी, बांदा, जौनपुर समेत उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों के किसान पहुंचे। जबकि अन्य इलाकों से धरने में भाग लेने वाले किसान, साधु-संत व लोगों ने कूच कर दिया है। आने वाले दिनों में यमुना समर्थकों की तादाद हजार से लाखों में बढ़ने वाली है। ब्रज रक्षिणी हरिनाम प्रचारिणी सभा और भाकियू भानू ने यूपी सहित देश के विभिन्न भागों में रहने वाले लोगों को यह संदेश भिजवाया है कि वे तुरंत यमुना बचाओ मुहिम को सफल बनाने के लिए जंतर-मंतर पहुंचे।
जंतर मंतर पर किसान घोट रहे हैं भांग
यमुना पर सवाल सरकारी सोच का है। नदी संरक्षण के मुद्दे पर डीडीए, एमसीडी जैसी सरकारी एजेंसियां हाथ खड़ा कर देती हैं, जबकि फायदे लेने के लिए सबसे आगे खड़ी दिखती हैं। इसी का परिणाम है कि नदी क्षेत्र में कंक्रीट का जंगल पनपता जा रहा है। - वीके जैन, अध्यक्ष, तपस
जंतर-मंतर पर साधु-संतों के साथ मौजूद रीता बहुगुणा जोशी।
मैं यमुना हूं...खतरे में है मेरा अस्तित्व! (Amar Ujala 15 April 2011)
यमुना की कहानी उसी की जुबानी, इतिहास की ढेरों यादों के साथ एक तारणहार की कर रही तलाश
प्रीत विहार। मैं यमुना हूं, सदियों से अनवरत बहती जीवनदायिनी नदी। मेरी यादें लंबी हैं, मनमोहक-मनोरंजक तो बेहद कू्रर भी। भगवान कृष्ण की लीला देखी, उनके श्रीमुख से गीता की वाणी सुनी। चंदबरदाई, गालिब, जौक, सौदा, मोमिन जैसे साहित्य व शायरी के दीवानों का भी दीदार किया। मेरी वादी में ही हिंदी जन्मी व उर्दू परवान चढ़ी। वैदिक जनों के संघर्ष और कुरुक्षेत्र के महासंग्राम की मैं साक्षी बनी, पानीपत के मैदान में तीन बार देश की किस्मत बदलते देखी। हिंदू राजाओं, सुल्तानों और मुगलिया सल्तनत के पारिवारिक षडयंत्र मेरे किनारे रचे गए। दिल्ली कितनी बार उजड़ी, कितनी बार बसी, कितने रजवाड़े उजड़े, कितनों की नींव पड़ी, साक्षी भाव से हमने सब देखा। अंग्रेजों की चूलें हिला देने वाला 1857 का स्वतंत्रता संग्राम हमारे सामने शुरू हुआ और अंग्रेजों के क्रूर पलटवार की राजदार बनी। 1947 तक का शानदार संग्राम देखा, 15 अगस्त के दिन लाल किले पर फहराता तिरंगा भी। मैं भी उल्लासित हुई।
कई बार मेरा दिल पसीजा, मैं रोई, दारा शिकोह और महात्मा गांधी की हत्या पर तो मैं चिल्लाई भी। लेकिन रुकना मेरा स्वभाव नहीं, नीला व सांवला रंग लिए मेरी धारा अविरल रही। अपनों की प्यास बुझाती, खेतों में जान डालती मैं आगे चलती गई। यमुनोत्री से इलाहाबाद तक, जहां पतित पावनी गंगा में मैं समा जाती हूं। जन मानस ने मां की तरह मेरी पूजा की, मेरे अस्तित्व पर कभी संकट नहीं आने दिया। दिल्ली, आगरा, मथुरा व इलाहाबाद जैसे दर्जनों राजनीतिक-व्यवसायिक-धार्मिक केंद्र मुझसे जीवन पाते रहे। लेकिन आज विकास का पश्चिमी नजरिया मुझे मार रहा है। राजधानी में तो मैं मृतप्राय हो गई हूं। मुझे एक बार फिर अपने तारणहार देवकीनंदन की जरूरत है। वही कालिया नाग रूपी सीवर तंत्र की फांस से मुझे छुड़ा सकता है।
विशेषज्ञ का नजरिया
आम लोगों की नदी पर सीधी निर्भरता खत्म होने के बाद उपेक्षा शुरू हुई, यानी 1911 के बाद। हमें प्राकृतिक जल स्रोतों की जगह पाइप लाइन से पानी दिया जाने लगा। अब दिल्लीवासियों को सिर्फ इससे मतलब रह गया कि उनकी पाइप लाइन ठीक रहे। इसका परिणाम यह रहा कि नदी को लेकर सरकारें जनदबाव से मुक्त हो गईं।
मनोज मिश्रा, यमुना जीए अभियान
प्रमुख सहायक नदियां
ड्
हिंडन नदी, बनास नदी, चंबल नदी, बेतवा नदी, सिंध नदी, धासन नदी, केन नदी
किनारे बसे प्रमुख शहर
ड्
करनाल, पानीपत, दिल्ली, नोएडा, मथुरा, आगरा
उद्गम से गंगा में समाहित होने तक की दूरी
1. यमुनोत्री (उद्गम) से ताजेवाला (हरियाणा) : 177 किमी
2. ताजेवाला से वजीराबाद (दिल्ली) : 224 किमी
3. वजीराबाद से ओखला (दिल्ली) : 22 किमी
4. ओखला से चंबल नदी संगम तक (यूपी) : 490 किमी
5. चंबल नदी संगम से गंगा संगम (इलाहाबाद, यूपी) : 468 किमी
कुल बहाव : 1376 किलोमीटर
दिल्ली में यमुना
दिल्ली में नदी का क्षेत्रफल : 97 वर्ग किमी (मास्टर प्लान एक)
जलक्षेत्र : 16 वर्ग किम
खादर क्षेत्र : 81 वर्ग किमी
बहाव की दूरी : 22 किमी
द् विवेक निगम
प्रीत विहार। मैं यमुना हूं, सदियों से अनवरत बहती जीवनदायिनी नदी। मेरी यादें लंबी हैं, मनमोहक-मनोरंजक तो बेहद कू्रर भी। भगवान कृष्ण की लीला देखी, उनके श्रीमुख से गीता की वाणी सुनी। चंदबरदाई, गालिब, जौक, सौदा, मोमिन जैसे साहित्य व शायरी के दीवानों का भी दीदार किया। मेरी वादी में ही हिंदी जन्मी व उर्दू परवान चढ़ी। वैदिक जनों के संघर्ष और कुरुक्षेत्र के महासंग्राम की मैं साक्षी बनी, पानीपत के मैदान में तीन बार देश की किस्मत बदलते देखी। हिंदू राजाओं, सुल्तानों और मुगलिया सल्तनत के पारिवारिक षडयंत्र मेरे किनारे रचे गए। दिल्ली कितनी बार उजड़ी, कितनी बार बसी, कितने रजवाड़े उजड़े, कितनों की नींव पड़ी, साक्षी भाव से हमने सब देखा। अंग्रेजों की चूलें हिला देने वाला 1857 का स्वतंत्रता संग्राम हमारे सामने शुरू हुआ और अंग्रेजों के क्रूर पलटवार की राजदार बनी। 1947 तक का शानदार संग्राम देखा, 15 अगस्त के दिन लाल किले पर फहराता तिरंगा भी। मैं भी उल्लासित हुई।
कई बार मेरा दिल पसीजा, मैं रोई, दारा शिकोह और महात्मा गांधी की हत्या पर तो मैं चिल्लाई भी। लेकिन रुकना मेरा स्वभाव नहीं, नीला व सांवला रंग लिए मेरी धारा अविरल रही। अपनों की प्यास बुझाती, खेतों में जान डालती मैं आगे चलती गई। यमुनोत्री से इलाहाबाद तक, जहां पतित पावनी गंगा में मैं समा जाती हूं। जन मानस ने मां की तरह मेरी पूजा की, मेरे अस्तित्व पर कभी संकट नहीं आने दिया। दिल्ली, आगरा, मथुरा व इलाहाबाद जैसे दर्जनों राजनीतिक-व्यवसायिक-धार्मिक केंद्र मुझसे जीवन पाते रहे। लेकिन आज विकास का पश्चिमी नजरिया मुझे मार रहा है। राजधानी में तो मैं मृतप्राय हो गई हूं। मुझे एक बार फिर अपने तारणहार देवकीनंदन की जरूरत है। वही कालिया नाग रूपी सीवर तंत्र की फांस से मुझे छुड़ा सकता है।
विशेषज्ञ का नजरिया
आम लोगों की नदी पर सीधी निर्भरता खत्म होने के बाद उपेक्षा शुरू हुई, यानी 1911 के बाद। हमें प्राकृतिक जल स्रोतों की जगह पाइप लाइन से पानी दिया जाने लगा। अब दिल्लीवासियों को सिर्फ इससे मतलब रह गया कि उनकी पाइप लाइन ठीक रहे। इसका परिणाम यह रहा कि नदी को लेकर सरकारें जनदबाव से मुक्त हो गईं।
मनोज मिश्रा, यमुना जीए अभियान
प्रमुख सहायक नदियां
ड्
हिंडन नदी, बनास नदी, चंबल नदी, बेतवा नदी, सिंध नदी, धासन नदी, केन नदी
किनारे बसे प्रमुख शहर
ड्
करनाल, पानीपत, दिल्ली, नोएडा, मथुरा, आगरा
उद्गम से गंगा में समाहित होने तक की दूरी
1. यमुनोत्री (उद्गम) से ताजेवाला (हरियाणा) : 177 किमी
2. ताजेवाला से वजीराबाद (दिल्ली) : 224 किमी
3. वजीराबाद से ओखला (दिल्ली) : 22 किमी
4. ओखला से चंबल नदी संगम तक (यूपी) : 490 किमी
5. चंबल नदी संगम से गंगा संगम (इलाहाबाद, यूपी) : 468 किमी
कुल बहाव : 1376 किलोमीटर
दिल्ली में यमुना
दिल्ली में नदी का क्षेत्रफल : 97 वर्ग किमी (मास्टर प्लान एक)
जलक्षेत्र : 16 वर्ग किम
खादर क्षेत्र : 81 वर्ग किमी
बहाव की दूरी : 22 किमी
द् विवेक निगम
हथिनी कुंड से पानी छोड़ो वरना डटे रहेंगे (Amar Ujala 15 April 2011)
यमुना बचाओ महापंचायत में किसान-संत आज जमा होकर जंतर-मंतर पर धरना शुरु करेंगे
हथिनी कुंड से पानी छोड़ो वरना डटे रहेंगे
यमुना बचाओ पदयात्रा ने डाला जंतर-मंतर पर डेरा
तीन घंटे की महापंचायत का अल्टीमेटम सरकार को दिया
‘जरूरत पड़ी तो प्राण दे देंगे’
क्या हैं यमुना बचाओ महापंचायत की पांच मांगें
स्र
अमर उजाला ब्यूरो
नई दिल्ली। यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए इलाहाबाद से पदयात्रा कर दिल्ली पहुंचे साधु-संत और किसानों ने बृहस्पतिवार दोपहर जंतर-मंतर पर डेरा जमा लिया है। उनका कहना है कि जब तक हरियाणा के हथिनी कुंड से यमुना का पर्याप्त पानी नहीं छोड़ा जाएगा, तब तक वे यहीं डटे रहेंगे।
ब्रज रक्षिणी हरिनाम प्रचारिणी सभा और भारतीय किसान यूनियन (भानू) के संयुक्त तत्वावधान में आए आंदोलनकारियों ने कहा कि 45 दिन की पदयात्रा की है। शुक्रवार यूपी के यमुना किनारे वाले तमाम जिले, बिहार, बंगाल के संत और किसान दोपहर को महापंचायत कर करेंगे। तीन घंटे की महापंचायत का अल्टीमेटम सरकार को दिया गया है। मांगे नहीं मानी तो महापंचायत के फैसले और जनसमर्थन के आधार पर आगे की कार्रवाई का फैसला करेंगे। भाकियू (भानू) के अध्यक्ष भानू प्रताप सिंह और संरक्षक जयकृष्ण दास ने बताया कि यमुना बचाओ महापंचायत में किसान और संत आज जंतर-मंतर पर एकत्रित होकर धरना देंगे। बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू किया जाएगा। बिहार के बक्सर, उत्तर प्रदेश के बलिया, गोरखपुर, इलाहाबाद, मिर्जापुर, वृंदावन समेत देश के विभिन्न राज्यों से साधु-संत और किसान भाग लेने आ रहे हैं। समर्थन में इलाहाबाद भ्रमण करके लाल बाबा दिल्ली पहुंचे हैं। शुक्रवार को आयोजित महापंचायत में वे शिरकत करेंगे। हालांकि, जंतर मंतर पर ब्रज रक्षिणी हरिनाम प्रचारणी सभा और भाकियू (भानू) के संयुक्त तत्वावधान में चौबीस घंटे का हरिनाम कीर्तन शुरू हो गया है। इसके जरिये लोगों को जागरूक करने का काम किया जा रहा है।
1. गंगा नदी के साथ यमुना को भी राष्ट्रीय नदी घोषित किया जाए।
2. यमुना किनारे बसे शहरों के गंदे पानी के लिए अलग नहर बनाई जाए। गंदे पानी को साफ करके किसानों व उद्योग में इस्तेमाल को सप्लाई हो।
3. 2000 करोड़ रुपये खर्च के बावजूद यमुना में गंदगी बढ़ी है। इसकी सीबीआई या विशेष समिति बनाकर जांच कराई जाए।
4. अब जो 1700 करोड़ रुपये सफाई पर खर्च होने हैं, उसकी निगरानी के लिए विशेष समिति बनाई जाए, ताकि पैसा पानी में न बहे और नदी साफ हो।
5. हरियाणा के हथिनी कुंड से यमुना के पानी का प्रवाह सुचारु रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में जल छोड़ा जाए ताकि संगम तक यमुनोत्री का पानी पहुंच सके।
नई दिल्ली। यमुना बचाओ महापंचायत में शामिल संत-किसान चाहते हैं कि जब यमुना नदी में हाथ डालें तो हाथ में साफ पानी आए, न की रेत। जरूरत पड़ी तो प्राण दे देंगे लेकिन पानी लेकर जाएंगे। रिजनेताओं को किसान व संत अक्ल सिखाने आए हैं कि नदियों के प्रवाह को जारी रहने दीजिए और गंदगी को रोकिए। राष्ट्रगान में यमुना नदी का गुणगान करते हैं तो उसे बचाने की जिम्मेदारी भी हमारी है। यमुना बचाने के लिए महापंचायत करने आए किसान नेताओं व संतों ने यह उद्गार बृहस्पतिवार को व्यक्त किए। प्रेस क्लब में यमुना बचाओ पदयात्रा के भारतीय किसान यूनियन (भानू) और ब्रज रक्षिणी हरिनाम प्रचारिणी सभा के राष्ट्रीय संरक्षक संत जयकृष्ण दास बरसाना, भाकियू भानू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठा. भानु प्रताप सिंह, सुनील सिंह, राजेंद्र प्रसाद शास्त्री और राधा जीवन पोद्दार ने ऐतिहासिक पदयात्रा की चर्चा की। सभा के राष्ट्रीय संरक्षक संत जयकृष्ण दास बरसाना ने कहा कि यमुना लगातार मैली होती जा रही है। इसके प्रदूषित जल से अभी तक करोड़ों जलचरों की मौत जहरीले पानी से हो गई है। आज आवश्यकता है यमुना में पर्याप्त मात्रा में पानी प्रवाहित करने की, ताकि यमुना में पानी की जगह केवल रेत नहीं दिखाई दे। जब तक हरियाणा के हथिनीकुंड से यमुना में पर्याप्त पानी नहीं छोड़ा जाएगा यह आंदोलन खत्म नहीं होगा। लगातार हो रही यमुना के लिए उन्होंने सरकार को जिम्मेवार ठहराते हुए कहा कि यमुना कार्य योजना पर खर्च हुए करोड़ों रुपये की सीबीआई जांच होनी चाहिए।
जंतर-मंतर पर भजन-कीर्तन से यमुना बचाओ का नारा बुलंद करते लोग।
हथिनी कुंड से पानी छोड़ो वरना डटे रहेंगे
यमुना बचाओ पदयात्रा ने डाला जंतर-मंतर पर डेरा
तीन घंटे की महापंचायत का अल्टीमेटम सरकार को दिया
‘जरूरत पड़ी तो प्राण दे देंगे’
क्या हैं यमुना बचाओ महापंचायत की पांच मांगें
स्र
अमर उजाला ब्यूरो
नई दिल्ली। यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए इलाहाबाद से पदयात्रा कर दिल्ली पहुंचे साधु-संत और किसानों ने बृहस्पतिवार दोपहर जंतर-मंतर पर डेरा जमा लिया है। उनका कहना है कि जब तक हरियाणा के हथिनी कुंड से यमुना का पर्याप्त पानी नहीं छोड़ा जाएगा, तब तक वे यहीं डटे रहेंगे।
ब्रज रक्षिणी हरिनाम प्रचारिणी सभा और भारतीय किसान यूनियन (भानू) के संयुक्त तत्वावधान में आए आंदोलनकारियों ने कहा कि 45 दिन की पदयात्रा की है। शुक्रवार यूपी के यमुना किनारे वाले तमाम जिले, बिहार, बंगाल के संत और किसान दोपहर को महापंचायत कर करेंगे। तीन घंटे की महापंचायत का अल्टीमेटम सरकार को दिया गया है। मांगे नहीं मानी तो महापंचायत के फैसले और जनसमर्थन के आधार पर आगे की कार्रवाई का फैसला करेंगे। भाकियू (भानू) के अध्यक्ष भानू प्रताप सिंह और संरक्षक जयकृष्ण दास ने बताया कि यमुना बचाओ महापंचायत में किसान और संत आज जंतर-मंतर पर एकत्रित होकर धरना देंगे। बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू किया जाएगा। बिहार के बक्सर, उत्तर प्रदेश के बलिया, गोरखपुर, इलाहाबाद, मिर्जापुर, वृंदावन समेत देश के विभिन्न राज्यों से साधु-संत और किसान भाग लेने आ रहे हैं। समर्थन में इलाहाबाद भ्रमण करके लाल बाबा दिल्ली पहुंचे हैं। शुक्रवार को आयोजित महापंचायत में वे शिरकत करेंगे। हालांकि, जंतर मंतर पर ब्रज रक्षिणी हरिनाम प्रचारणी सभा और भाकियू (भानू) के संयुक्त तत्वावधान में चौबीस घंटे का हरिनाम कीर्तन शुरू हो गया है। इसके जरिये लोगों को जागरूक करने का काम किया जा रहा है।
1. गंगा नदी के साथ यमुना को भी राष्ट्रीय नदी घोषित किया जाए।
2. यमुना किनारे बसे शहरों के गंदे पानी के लिए अलग नहर बनाई जाए। गंदे पानी को साफ करके किसानों व उद्योग में इस्तेमाल को सप्लाई हो।
3. 2000 करोड़ रुपये खर्च के बावजूद यमुना में गंदगी बढ़ी है। इसकी सीबीआई या विशेष समिति बनाकर जांच कराई जाए।
4. अब जो 1700 करोड़ रुपये सफाई पर खर्च होने हैं, उसकी निगरानी के लिए विशेष समिति बनाई जाए, ताकि पैसा पानी में न बहे और नदी साफ हो।
5. हरियाणा के हथिनी कुंड से यमुना के पानी का प्रवाह सुचारु रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में जल छोड़ा जाए ताकि संगम तक यमुनोत्री का पानी पहुंच सके।
नई दिल्ली। यमुना बचाओ महापंचायत में शामिल संत-किसान चाहते हैं कि जब यमुना नदी में हाथ डालें तो हाथ में साफ पानी आए, न की रेत। जरूरत पड़ी तो प्राण दे देंगे लेकिन पानी लेकर जाएंगे। रिजनेताओं को किसान व संत अक्ल सिखाने आए हैं कि नदियों के प्रवाह को जारी रहने दीजिए और गंदगी को रोकिए। राष्ट्रगान में यमुना नदी का गुणगान करते हैं तो उसे बचाने की जिम्मेदारी भी हमारी है। यमुना बचाने के लिए महापंचायत करने आए किसान नेताओं व संतों ने यह उद्गार बृहस्पतिवार को व्यक्त किए। प्रेस क्लब में यमुना बचाओ पदयात्रा के भारतीय किसान यूनियन (भानू) और ब्रज रक्षिणी हरिनाम प्रचारिणी सभा के राष्ट्रीय संरक्षक संत जयकृष्ण दास बरसाना, भाकियू भानू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठा. भानु प्रताप सिंह, सुनील सिंह, राजेंद्र प्रसाद शास्त्री और राधा जीवन पोद्दार ने ऐतिहासिक पदयात्रा की चर्चा की। सभा के राष्ट्रीय संरक्षक संत जयकृष्ण दास बरसाना ने कहा कि यमुना लगातार मैली होती जा रही है। इसके प्रदूषित जल से अभी तक करोड़ों जलचरों की मौत जहरीले पानी से हो गई है। आज आवश्यकता है यमुना में पर्याप्त मात्रा में पानी प्रवाहित करने की, ताकि यमुना में पानी की जगह केवल रेत नहीं दिखाई दे। जब तक हरियाणा के हथिनीकुंड से यमुना में पर्याप्त पानी नहीं छोड़ा जाएगा यह आंदोलन खत्म नहीं होगा। लगातार हो रही यमुना के लिए उन्होंने सरकार को जिम्मेवार ठहराते हुए कहा कि यमुना कार्य योजना पर खर्च हुए करोड़ों रुपये की सीबीआई जांच होनी चाहिए।
जंतर-मंतर पर भजन-कीर्तन से यमुना बचाओ का नारा बुलंद करते लोग।
Sonia Vihar lives in fear after jaundice scare (Times of India 16 April 2011)
New Delhi:Ritesh Singh, a student at a private computer institute, missed almost a month of studies after he was diagnosed with jaundice in March. His neighbour Asha is now down with jaundice. In east Delhi’s Sonia Vihar, about 15-20 cases of jaundice and other stomach ailments are being reported every month. Residents have now stopped consuming tap water and are dependent on atanker and hand pumps.
The unauthorized colony has been facing the problem of contaminated water since Diwali. While no water testing has been carried out, residents claim that the water being supplied by the water utility through community taps is contaminated. “We had been consuming water from these taps for several months now and there was no problem. However, around Diwali, people started falling ill. The doctors told us that it was a waterborne disease and asked us to stop consuming the tap water. It is now used for washing and cleaning while we generally wait for the Delhi Jal Board (DJB) tanker to come every twothree days to store drinking water,” said Meera, a resident.
The colony, with no sewage system either, is lined with small open drains and a deluge of flies feasting on open mounds of rubbish and filth. “The least the government can give us is clean drinking water. Those of us who switched to tanker water are not facing a problem anymore but as it comes only every few days, children end up consuming tap water and fall sick,” said Adarsh Kumar, another resident. His daughter and wife were diagnosed with jaundice a month ago.
“We have taken up the issue with municipal officials but nothing has been done about it. All parts of Sonia Vihar are affected, especially p u s h t a s3 and 4. Very often, water doesn’t come in the taps and whenever it does, nobody takes it. At any given time, we have about 5-10 persons in hospital because of stomach problems,” said Shanti Devi, a resident of p u s h t a4.
DJB officials said the matter had not been brought to their notice and they would look into it at the earliest. “We are not aware of the problem. It is an unauthorized colony and we are making sure that tanker supply reaches it frequently. Contamination issues, if any, will be addressed,” said DJB.
CONTAMINATED? Residents claim the colony is being supplied contaminated tap water since Diwali and no water testing has been carried out
The unauthorized colony has been facing the problem of contaminated water since Diwali. While no water testing has been carried out, residents claim that the water being supplied by the water utility through community taps is contaminated. “We had been consuming water from these taps for several months now and there was no problem. However, around Diwali, people started falling ill. The doctors told us that it was a waterborne disease and asked us to stop consuming the tap water. It is now used for washing and cleaning while we generally wait for the Delhi Jal Board (DJB) tanker to come every twothree days to store drinking water,” said Meera, a resident.
The colony, with no sewage system either, is lined with small open drains and a deluge of flies feasting on open mounds of rubbish and filth. “The least the government can give us is clean drinking water. Those of us who switched to tanker water are not facing a problem anymore but as it comes only every few days, children end up consuming tap water and fall sick,” said Adarsh Kumar, another resident. His daughter and wife were diagnosed with jaundice a month ago.
“We have taken up the issue with municipal officials but nothing has been done about it. All parts of Sonia Vihar are affected, especially p u s h t a s3 and 4. Very often, water doesn’t come in the taps and whenever it does, nobody takes it. At any given time, we have about 5-10 persons in hospital because of stomach problems,” said Shanti Devi, a resident of p u s h t a4.
DJB officials said the matter had not been brought to their notice and they would look into it at the earliest. “We are not aware of the problem. It is an unauthorized colony and we are making sure that tanker supply reaches it frequently. Contamination issues, if any, will be addressed,” said DJB.
CONTAMINATED? Residents claim the colony is being supplied contaminated tap water since Diwali and no water testing has been carried out
Sunday, April 17, 2011
“Delhi Govt. must test water samples” (The Hindu 16 April 2011)
Senior BJP leader Vijay Kumar Malhotra has expressed grave concern over reports claiming the presence of superbug in drinking water samples of the city. He said the contaminated water supply had increased the risks of jaundice, diarrhoea and other water-borne diseases.
Water-borne diseases
In a statement on Friday, Prof. Malhotra said half the city does not get piped water and drinking water is supplied though tankers which are carriers of water-borne diseases. The raw water supplied to the city via the Munak canal is also frequently contaminated by industrial waste and the Delhi Government has not been able to do anything about it so far, he added.
The BJP leader said the Government should test the water scientifically to clear all doubts in the minds of the citizens.
Water-borne diseases
In a statement on Friday, Prof. Malhotra said half the city does not get piped water and drinking water is supplied though tankers which are carriers of water-borne diseases. The raw water supplied to the city via the Munak canal is also frequently contaminated by industrial waste and the Delhi Government has not been able to do anything about it so far, he added.
The BJP leader said the Government should test the water scientifically to clear all doubts in the minds of the citizens.
Sadhus rally for clean Yamuna (The Times of India 15 April 201)
NEW DELHI: By the time Yamuna reaches Vrindavan-Mathura-Gokul, it is essentially a stream of sludge. A holy dip could leave you sick. A group of sadhus from the Mathura-Vrindavan area along with farmers with plots on the river-course started on a march from Allahabad in March and, 45 days later, arrived in Delhi. They demand Delhi's waste not be emptied into the river but taken through a separate channel up to the Agra canal. Simultaneously, more fresh water should be released in the Yamuna at Hathnikund. The group will stay parked at Jantar Mantar till the authorities agree and are holding a mahasabha on Friday.
The ideas aren't new. A high-powered committee formed by the Supreme Court recommended these measures in 1999. Predictably, no action was taken on the matter thereafter. The Maan Mandir Sewa Sansthan Trust – a religious organization based in Barsana, Mathura – after seeing their campaign against mining bear fruit, turned their attention to the river. They joined forces with Bharatiya Kisan Union (BKU). The trust is concerned that the holy river is too polluted to deserve being called that. Taking a bath can be hazardous to health; aarti of the river has also stopped in places with the stink driving worshippers away.
The farmers' problems are different. Tubewells and borewells have replaced the river as sources of water and the water table is falling. "We get poisonous water even in our tubewells now," says Bhanu Pratap Singh of Etah, Uttar Pradesh. Wild animals like nilgai that roamed the infertile terrain on the sides and drank from the river now find its water too polluted. "They come to the cultivated land for water from the wells and destroy the crop in the process," says Singh.
BD Sharma, a surgeon based in Chicago, has come down to participate. "It's not a problem just for the practice of a religion but also for health reasons ," he says.
The ideas aren't new. A high-powered committee formed by the Supreme Court recommended these measures in 1999. Predictably, no action was taken on the matter thereafter. The Maan Mandir Sewa Sansthan Trust – a religious organization based in Barsana, Mathura – after seeing their campaign against mining bear fruit, turned their attention to the river. They joined forces with Bharatiya Kisan Union (BKU). The trust is concerned that the holy river is too polluted to deserve being called that. Taking a bath can be hazardous to health; aarti of the river has also stopped in places with the stink driving worshippers away.
The farmers' problems are different. Tubewells and borewells have replaced the river as sources of water and the water table is falling. "We get poisonous water even in our tubewells now," says Bhanu Pratap Singh of Etah, Uttar Pradesh. Wild animals like nilgai that roamed the infertile terrain on the sides and drank from the river now find its water too polluted. "They come to the cultivated land for water from the wells and destroy the crop in the process," says Singh.
BD Sharma, a surgeon based in Chicago, has come down to participate. "It's not a problem just for the practice of a religion but also for health reasons ," he says.
Yamuna cleaning to begin in June ( Hindu 15 April 2011)
Six companies to be awarded bid for work by May
Work on cleaning up the Yamuna by laying interceptor sewers is likely to begin by June, with the Delhi Jal Board hopeful of awarding work for the project by next month. The Board has received bids from over 20 companies.
According to a senior DJB official, the work involves micro tunnelling and with few Indian companies having expertise in the field, a lot of international companies have shown interest. “There are some Indian companies that have tied up with the international ones in a joint bid for work.”
The work will be divided into six segments and be awarded to each company. “At least six companies will be shortlisted by May for the work. The smallest component of the work will be completed in 1.5 years whereas the biggest will be finished in three years. The ongoing work will be reviewed periodically by a project monitoring unit, which will include officials of the Delhi Government's Urban Development (UD) department, DJB and Engineers India Limited,” the official said.
A third party monitoring will also be undertaken by the Independent Quality Review Management Committee that will also have on board members from the DJB, UD department and members from the Delhi Pollution Control Committee.
“We are keen to begin work on the construction of four new sewage treatment plants (STPs) simultaneously. Once the sewers are laid and water trapped, we will need the plants to be ready and functioning so that work on these projects should coincide,” the official explained.
The DJB wants to award work for the STPs by May. “The STPs at Pappankalan and Nilothi will be of 20 MGD, the one at Delhi Gate will be 15 MGD and the fourth at Coronation Pillar will be 40 MGD. Together these will cost Rs.600 crore,” the official said.
“Rehabilitation of Bela Road and Ring Road sewers will also be completed and the discharge trapped at the Bela Road truck sewer be taken directly to the Okhla STP,” the official added.
For the interceptor sewer projects, 35 per cent of the money will come from the Jawaharlal Nehru National Urban Renewal Mission, 50 per cent from the Delhi Government, 15 per cent ad grant from the Delhi Government and Rs.800 crore as loan from HUDCO.
Work on cleaning up the Yamuna by laying interceptor sewers is likely to begin by June, with the Delhi Jal Board hopeful of awarding work for the project by next month. The Board has received bids from over 20 companies.
According to a senior DJB official, the work involves micro tunnelling and with few Indian companies having expertise in the field, a lot of international companies have shown interest. “There are some Indian companies that have tied up with the international ones in a joint bid for work.”
The work will be divided into six segments and be awarded to each company. “At least six companies will be shortlisted by May for the work. The smallest component of the work will be completed in 1.5 years whereas the biggest will be finished in three years. The ongoing work will be reviewed periodically by a project monitoring unit, which will include officials of the Delhi Government's Urban Development (UD) department, DJB and Engineers India Limited,” the official said.
A third party monitoring will also be undertaken by the Independent Quality Review Management Committee that will also have on board members from the DJB, UD department and members from the Delhi Pollution Control Committee.
“We are keen to begin work on the construction of four new sewage treatment plants (STPs) simultaneously. Once the sewers are laid and water trapped, we will need the plants to be ready and functioning so that work on these projects should coincide,” the official explained.
The DJB wants to award work for the STPs by May. “The STPs at Pappankalan and Nilothi will be of 20 MGD, the one at Delhi Gate will be 15 MGD and the fourth at Coronation Pillar will be 40 MGD. Together these will cost Rs.600 crore,” the official said.
“Rehabilitation of Bela Road and Ring Road sewers will also be completed and the discharge trapped at the Bela Road truck sewer be taken directly to the Okhla STP,” the official added.
For the interceptor sewer projects, 35 per cent of the money will come from the Jawaharlal Nehru National Urban Renewal Mission, 50 per cent from the Delhi Government, 15 per cent ad grant from the Delhi Government and Rs.800 crore as loan from HUDCO.
‘No evidence of presence of superbug' (The Hindu 13 April 2011)
Following the release of a Lancet report alleging presence of a drug-resistant superbug in water supply in the capital, the Union Health Ministry and local authorities held a meeting on Tuesday.
Delhi Government health official R.P. Vashisht noted that though there were reports about the finding of a drug-resistant superbug in the capital, there was no evidence of any increase in water-borne diseases or of patients becoming resistant to drugs. There was no evidence of even clustering of diseases, he said.
“There is need to check and counter-check the evidence presented to us. The Indian Council of Medical Research is doing scientific research to understand and provide evidence of the presence or absence of the superbug in the city. During the meeting we reviewed the situation in the capital and found that nothing unusual has happened in the city since the report by an international health journal. All the Delhi government agencies concerned have joined together to monitor the situation,” Dr. Vashisht said.
New Delhi Municipal Council Medical Officer of Health P. K. Sharma said it was decided that water surveillance and monitoring mechanisms be further improved and emphasis laid on proper chlorination of water.
“The NDMC gets DJB [Delhi Jal Board] water which we are getting checked by the Bureau of International Standards. If we find chlorine levels lower than adequate, then we ensure that it is added so that consumers get water which is properly chlorinated.”
Dr. Sharma said: “As a matter of routine, during summer we start taking precautions to check water-borne diseases and alert residents to clean their tanks and ensure that there is no leakage.”
A DJB spokesperson said: “DJB quality control managers informed the meeting of the work done by us and how we keep water clean. Our representatives also informed it of how BIS standard is maintained in water and how regular checks are conducted by the National Environmental Research Institute.”
Lancet published a report last week claiming the presence of a drug-resistant superbug NDM-I in water supply in the Capital.
Delhi Government health official R.P. Vashisht noted that though there were reports about the finding of a drug-resistant superbug in the capital, there was no evidence of any increase in water-borne diseases or of patients becoming resistant to drugs. There was no evidence of even clustering of diseases, he said.
“There is need to check and counter-check the evidence presented to us. The Indian Council of Medical Research is doing scientific research to understand and provide evidence of the presence or absence of the superbug in the city. During the meeting we reviewed the situation in the capital and found that nothing unusual has happened in the city since the report by an international health journal. All the Delhi government agencies concerned have joined together to monitor the situation,” Dr. Vashisht said.
New Delhi Municipal Council Medical Officer of Health P. K. Sharma said it was decided that water surveillance and monitoring mechanisms be further improved and emphasis laid on proper chlorination of water.
“The NDMC gets DJB [Delhi Jal Board] water which we are getting checked by the Bureau of International Standards. If we find chlorine levels lower than adequate, then we ensure that it is added so that consumers get water which is properly chlorinated.”
Dr. Sharma said: “As a matter of routine, during summer we start taking precautions to check water-borne diseases and alert residents to clean their tanks and ensure that there is no leakage.”
A DJB spokesperson said: “DJB quality control managers informed the meeting of the work done by us and how we keep water clean. Our representatives also informed it of how BIS standard is maintained in water and how regular checks are conducted by the National Environmental Research Institute.”
Lancet published a report last week claiming the presence of a drug-resistant superbug NDM-I in water supply in the Capital.
Superbug: Brit docs seek reality check (Times of India 13 April 2011)
Want Study To Establish Prevalence In Delhi
New Delhi: British scientists, who found the deadly gene NDM1, now want to join hands with India’s Indian Council of Medical Research (ICMR) to check exactly how many people in Delhi actually carry the E coli bacteria with the gene, inside their gut.
Speaking exclusively to TOI from UK, Dr Mark Toleman from Cardiff University, who recently found gene NDM1 in Delhi’s water supply, said it is now important for the ICMR to know what is the exact “carriage rate” of NDM1 in Delhi or how many people actually carry the E coli bacteria in their gut with the NDM1 gene.
“It can be simply found out from faecal samples or anal swabs.
From there, we can also analyse whether the carriage is higher in hospital patients or in the community. We want to collaborate with ICMR in this study,” Dr Toleman told TOI.
He added “All human beings carry E coli bacteria in their gut flora which is the main cause of urinary tract infections and diarrhoeal diseases. However, not everybody has E coli with NDM1 gene.
These people, when hit by common infections that can be treated with a two-day regimen of antibiotic will find it difficult to recover because of the antibiotic resistant bacteria.”
Since the time the existence of NDM1 was announced last August, 17 countries have reported infections of it.
“The community carriage study, looking for presence of the NDM-1 gene in faecal samples or anal swabs in different regions of New Delhi will highlight risk factors, particularly water supplies or food and also put down a base-line to assess if intervention measures are working or not,” he said.
According to Dr Toleman, “A rough guess is that at least 5 per cent of Delhi’s population would be carrying E coli and the NDM1 gene.
Several people in the 17 countries who have been affected by NDM1 have visited Bangladesh, Pakistan or India. Several had not entered hospitals but just travelled around.”
However, a collaboration between ICMR and Cardiff is unlikely.
ICMR still maintains that “NDM1 is no public health concern” and questions the intention of the scientists who carried out the study.
Meanwhile, India’s plans to conduct prescription audit to check for antibiotic overuse and National Centre for Disease Control’s (NCDC) decision to lead a study to gauge the “prevalence of Carbapenem resistance in Delhi’s ICUs and environment,” was called a “major step in the right direction” for which Dr Toleman said, “I applaud the Indian government.”
New Delhi: British scientists, who found the deadly gene NDM1, now want to join hands with India’s Indian Council of Medical Research (ICMR) to check exactly how many people in Delhi actually carry the E coli bacteria with the gene, inside their gut.
Speaking exclusively to TOI from UK, Dr Mark Toleman from Cardiff University, who recently found gene NDM1 in Delhi’s water supply, said it is now important for the ICMR to know what is the exact “carriage rate” of NDM1 in Delhi or how many people actually carry the E coli bacteria in their gut with the NDM1 gene.
“It can be simply found out from faecal samples or anal swabs.
From there, we can also analyse whether the carriage is higher in hospital patients or in the community. We want to collaborate with ICMR in this study,” Dr Toleman told TOI.
He added “All human beings carry E coli bacteria in their gut flora which is the main cause of urinary tract infections and diarrhoeal diseases. However, not everybody has E coli with NDM1 gene.
These people, when hit by common infections that can be treated with a two-day regimen of antibiotic will find it difficult to recover because of the antibiotic resistant bacteria.”
Since the time the existence of NDM1 was announced last August, 17 countries have reported infections of it.
“The community carriage study, looking for presence of the NDM-1 gene in faecal samples or anal swabs in different regions of New Delhi will highlight risk factors, particularly water supplies or food and also put down a base-line to assess if intervention measures are working or not,” he said.
According to Dr Toleman, “A rough guess is that at least 5 per cent of Delhi’s population would be carrying E coli and the NDM1 gene.
Several people in the 17 countries who have been affected by NDM1 have visited Bangladesh, Pakistan or India. Several had not entered hospitals but just travelled around.”
However, a collaboration between ICMR and Cardiff is unlikely.
ICMR still maintains that “NDM1 is no public health concern” and questions the intention of the scientists who carried out the study.
Meanwhile, India’s plans to conduct prescription audit to check for antibiotic overuse and National Centre for Disease Control’s (NCDC) decision to lead a study to gauge the “prevalence of Carbapenem resistance in Delhi’s ICUs and environment,” was called a “major step in the right direction” for which Dr Toleman said, “I applaud the Indian government.”
U.P. urged to restore Haryana's share in Yamuna water (The Hindu 14 April 2011)
CHANDIGARH: The Haryana Government has asked Uttar Pradesh to immediately restore its legitimate share in the Yamuna water upstream of Okhla Barrage, Haryana Irrigation and Finance Minister Ajay Singh Yadav said here on Wednesday.
He said he had written to his U.P. counterpart, Nasimuddin Siddiqui, and apprised him that “denial of the rightful share has made the districts of Faridabad, Palwal, Mewat and parts of Gurgaon starve and suffer badly”. The area under irrigation in these districts stood depleted and the agricultural produce had been affected.
“The brewing resentment among the farmers of these districts had found a resounding echo on the floor of the Haryana Assembly during the last session with a large number of legislators venting their ire on the issue,'' he added.
Capt. Yadav pointed out that the off-takes of Agra Canal in Haryana territory channels got significantly less discharge, ranging from 31 per cent to 70 per cent than the discharge shown in their water accounts.
‘Not regular'
“Worse still, the discharge released into the channels is not on a regular basis for a pre-determined period/rotational programme but is highly erratic. Resultantly, the water fails to reach the middle and tail reaches of the channels. For instance, canal supplies in Modal and Hassanpur distributory reached up to the tail-end for only 22 days and 17 days, respectively during the last 15 years,'' he claimed.
He said that on the basis of the notional inflows at the Okhla Barrage, four-monthly (seasonal) distribution of available shareable water had been made to control day-to-day distribution of the Yamuna water at Okhla for Haryana, Rajasthan and U.P.
The discharges into the Gurgaon Canal Feeder and channels taking off from Agra Canal and serving Haryana for the last five years revealed that there was a “grave discrepancy in the actual discharges shown in the U.P. channels serving Palwal district, and the actual discharges received in these channels”.
“The methodology used for computation of shareable water at Okhla by the U.P. irrigation authorities is based on discharges in Agra Canal at Mile 11. The quantum of water through Hindon cut canal, on which Haryana irrigation has no control, is subtracted to calculate the discharge in the river upstream of Okhla Barrage. The formula used results in negative discharges sometimes, which is beyond logic,'' he stated.
Capt. Yadav asked how the share of Haryana could be negative when there was sufficient inflow into the Yamuna in Delhi territory reaching the Okhla Barrage.
He said he had written to his U.P. counterpart, Nasimuddin Siddiqui, and apprised him that “denial of the rightful share has made the districts of Faridabad, Palwal, Mewat and parts of Gurgaon starve and suffer badly”. The area under irrigation in these districts stood depleted and the agricultural produce had been affected.
“The brewing resentment among the farmers of these districts had found a resounding echo on the floor of the Haryana Assembly during the last session with a large number of legislators venting their ire on the issue,'' he added.
Capt. Yadav pointed out that the off-takes of Agra Canal in Haryana territory channels got significantly less discharge, ranging from 31 per cent to 70 per cent than the discharge shown in their water accounts.
‘Not regular'
“Worse still, the discharge released into the channels is not on a regular basis for a pre-determined period/rotational programme but is highly erratic. Resultantly, the water fails to reach the middle and tail reaches of the channels. For instance, canal supplies in Modal and Hassanpur distributory reached up to the tail-end for only 22 days and 17 days, respectively during the last 15 years,'' he claimed.
He said that on the basis of the notional inflows at the Okhla Barrage, four-monthly (seasonal) distribution of available shareable water had been made to control day-to-day distribution of the Yamuna water at Okhla for Haryana, Rajasthan and U.P.
The discharges into the Gurgaon Canal Feeder and channels taking off from Agra Canal and serving Haryana for the last five years revealed that there was a “grave discrepancy in the actual discharges shown in the U.P. channels serving Palwal district, and the actual discharges received in these channels”.
“The methodology used for computation of shareable water at Okhla by the U.P. irrigation authorities is based on discharges in Agra Canal at Mile 11. The quantum of water through Hindon cut canal, on which Haryana irrigation has no control, is subtracted to calculate the discharge in the river upstream of Okhla Barrage. The formula used results in negative discharges sometimes, which is beyond logic,'' he stated.
Capt. Yadav asked how the share of Haryana could be negative when there was sufficient inflow into the Yamuna in Delhi territory reaching the Okhla Barrage.
Dry Yamuna giving Taj Mahal that sinking feeling? (Times of India 12 April 2011)
LUCKNOW: When Shah Jahan decided to build the Taj Mahal on a wooden base on the banks of the Yamuna, he got everything right from design to science. Except for one thing: he never factored in the Yamuna going dry.
In the Mughal era, wood was used to lay solid foundations. And Shah Jahan did not stint on the ebony which props the Taj up. But even the finest ebony in the world needs a steady stream of moisture to ensure it does not expand or contract, posing a grave threat to the structure.
In the Mughal era, wood was used to lay solid foundations. And Shah Jahan did not stint on the ebony which props the Taj up. But even the finest ebony in the world needs a steady stream of moisture to ensure it does not expand or contract, posing a grave threat to the structure.
CM says there’s nothing wrong with city water (Times of India 12 April 2011)
New Delhi: The superbug issue continued to rage in the city as chief minister Sheila Dikshit reiterated that there was nothing wrong with the city’s water supply.
“There is no superbug in our water taps and we should stop spreading panic,” she said. However, the government has taken the charges of medical journal ‘Lancet’ seriously and has convened a meeting at the National Institute of Communicable Diseases on Tuesday. Sources said DJB was not equipped to check its water supply for the superbug and has asked Delhi government to take measures .
“The matter is with the health department now as it is evident that the bug is in nature and not in water. It could have crept into water taps in Ramesh Nagar as alleged by Lancet but that is purely by chance and treatment by chlorine will not let it survive,” said sources. DJB had asked its staff to carry out water sampling at Ramesh Nagar even as it maintained that chances of contamination now were “slim”.
“There is no superbug in our water taps and we should stop spreading panic,” she said. However, the government has taken the charges of medical journal ‘Lancet’ seriously and has convened a meeting at the National Institute of Communicable Diseases on Tuesday. Sources said DJB was not equipped to check its water supply for the superbug and has asked Delhi government to take measures .
“The matter is with the health department now as it is evident that the bug is in nature and not in water. It could have crept into water taps in Ramesh Nagar as alleged by Lancet but that is purely by chance and treatment by chlorine will not let it survive,” said sources. DJB had asked its staff to carry out water sampling at Ramesh Nagar even as it maintained that chances of contamination now were “slim”.
“Superbug report not based on clinical evidence” (The Hindu 09 April 2011)
Delhi Health Minister Dr. A. K. Walia on Friday reviewed the issue of alleged superbug bacteria NDM1 in the city environment and its implications for human health at a meeting attended by Director (Health Services), senior functionaries of various hospitals and medical bodies and a number of public health experts and microbiologists from reputed organisations. After taking stock of the situation, Dr. Walia announced that there was no cause for worry as the alleged report was not significant as it was not based on any epidemiological or clinical evidence.
“Also chlorination carried out for making water safe for drinking inactivates sensitive and drug resistance bacteria alike. The chlorination of water makes it safe for drinking purposes. The water being supplied through the Delhi Jal Board and other similar sources meets the prescribed standards of testing and safety. ,'' said the Minister.
“Also chlorination carried out for making water safe for drinking inactivates sensitive and drug resistance bacteria alike. The chlorination of water makes it safe for drinking purposes. The water being supplied through the Delhi Jal Board and other similar sources meets the prescribed standards of testing and safety. ,'' said the Minister.
Jal Board says water in Delhi safe to drink (The Hindu 09 April 2011)
NEW DELHI: The Delhi Jal Board has dispelled concerns at the reports on the presence of drug-resistant bacteria in the capital's tap water and has said the water it supplies is “safe.”
“We want to assure [the residents] that Delhi water is safe for drinking,” Board CEO Ramesh Negi said here on Friday.
The water supplied by the agency conformed to the standards prescribed by the Bureau of Indian Standards.
The Lancet Infectious Diseases, an international medical journal, reported that the deadly superbug NDM-1-producing bacteria were found in 51 of the 171 samples taken from water pools and two of the 50 tap water samples in the city.
Both the NDM-1-positive samples were taken from Ramesh Nagar, west of the Yamuna, “but the report itself states that the strain cannot grow in tap water as it is chlorinated,” Mr. Negi said. — PTI
“We want to assure [the residents] that Delhi water is safe for drinking,” Board CEO Ramesh Negi said here on Friday.
The water supplied by the agency conformed to the standards prescribed by the Bureau of Indian Standards.
The Lancet Infectious Diseases, an international medical journal, reported that the deadly superbug NDM-1-producing bacteria were found in 51 of the 171 samples taken from water pools and two of the 50 tap water samples in the city.
Both the NDM-1-positive samples were taken from Ramesh Nagar, west of the Yamuna, “but the report itself states that the strain cannot grow in tap water as it is chlorinated,” Mr. Negi said. — PTI
Thursday, April 14, 2011
तीन चरणों की निगरानी के बाद भी गंदा पानी! (Dainik Jagran 14 April 2011)
दिल्ली जल बोर्ड के अनुसार जल संयंत्र से लेकर घरों में पहुंचने तक पानी की जांच तीन चरणों में होती है। तीनों चरणों की रिपोर्ट लगभग समान होती है तब भी लोगों घरों में नल से कीटाणु और वायरस वाला गंदा पानी क्यों गिरता है? यह सवाल अभी लोगों की जुबान पर है। जवाब, जल बोर्ड के सीईओ रमेश नेगी देते हैं। बताते हैं कि लोगों को भी कुछ लाइन (सर्विस पाइप) बदलना चाहिए, जो 15 वर्ष से ज्यादा पुरानी है। लेकिन, दिल्ली के एक आम निवासी आलोक वर्मा को यह समझ में नहीं आता कि लोग तो अपनी सर्विस लाइन को 15 वर्ष में बदल देंगे, लेकिन दिल्ली जल बोर्ड क्या 30-40 साल पुरानी लाइन भी नहीं बदलेगा? दरअसल, जल बोर्ड के तमाम दावों की आम जनता सिरे से खारिज करती है। जल बोर्ड की रिपोर्ट जल संयंत्र से पानी शोधित होकर पहले यूजीआर में जाता है। वहां से डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क के जरिये लोगों के घरों को जोड़ती सर्विस लाइन द्वारा घरों तक पहुंचता है। इस बीच तीन स्तर पर पानी के सैंपल लिये जाते हैं। वितरण नेटवर्क में ये सुनिश्चित किया जाता है कि क्लोरीन की मात्रा कम से कम प्वाइंट 2 पीपीएम होनी चाहिए। हर हाल में क्लोरीन की मात्रा मिलनी चाहिए। जहां ये चीज नहीं मिलती, वहां तुरंत पता चल जाता है कि रास्ते में कहीं न कहीं प्रदूषित पानी मिल गया है। इसके लिए औसतन रोजाना 300 सैंपल लिये जाते हैं। बीते 3 महीने में समूचे वितरण नेटवर्क से करीब 42,693 सैंपल लिए गए थे। जिसमें से 0.6 फीसदी गड़बड़ी पाई गई। हालांकि, ये मात्रा भी विश्व स्वाथ्स्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के हिसाब से ठीक है। जल बोर्ड के सेक्रेटरी डॉ. बिपिन बिहारी के मुताबिक समूचे डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क पर प्रतिदिन निगरानी रखी जाती है। अगर, जरा भी गुणवत्ता में कमी मिलती है तो तुरंत उसमें सुधार किया जाता है। क्या कहता है जल बोर्ड दिल्ली जल बोर्ड के सीईओ रमेश नेगी के मुताबिक पानी दूषित होने की अहम वजह यह है कि लोग ऑनलाइन बूस्टर का इस्तेमाल करते हैं और सर्विस पाइप लाइन बहुत पुरानी हो चुकी हैं। इसी वजह से नाले में बहने वाली गंदगी पीने के पानी में आ जाती है। नियम के मुताबिक, सर्विस पाइप लाइन बदलने की जिम्मेदारी उपभोक्ता की होती है, जिसे हर हाल में 15 वर्ष में बदल देना चाहिए। उनके मुताबिक बोर्ड अब लोगों को नोटिस भेजेगा कि वह अपनी पुरानी सर्विस लाइन बदलें और ऑनलाइन बूस्टर का इस्तेमाल पानी आने पर ही करें। हालांकि, जल बोर्ड ने ये फैसला भी किया है कि वह खुद ही सर्विस पाइप लाइन भी बदलेगा। इसके लिए लोगों से 500-600 रुपये लिये जाएंगे। बाकी खर्च बोर्ड उठाएगा। हर रोज पानी दूषित होने की 50-60 शिकायतें आती हैं। 12 हजार किलोमीटर के पानी के नेटवर्क में यह सामान्य बात है। क्या कहती है जनता सोनिया विहार के आशुतोष शुक्ला, खुशबू, जयशंकर, श्रीराम कॉलोनी के आनंद त्रिवेदी, भजनपुरा के केशव, उदयानंद डंगवाल, वेस्ट गुरू अंगदनगर कॉलोनी के अविनाशचंद्र, चंद्र विहार आइपी एक्सटेंशन के सुकांत मेहता, पूनम, अंजलि की मानें तो पानी इतना खराब एवं प्रदूषित आ रहा है कि लोगों का विश्वास जल बोर्ड से उठता जा रहा है। हर व्यक्ति आरओ भी नहीं लगा सकता। लिहाजा मजबूरी में लोगों को यही पानी छानकर या उबालकर पीना पड़ता है।
यमुना के किनारे, फिर भी प्यासे (Dainik Jagran 14 April 2011)
नई दिल्ली राजधानी के उत्तर पूर्वी जिले की दो दर्जन से अधिक कॉलोनियों में पेयजल का गंभीर संकट है। मई और जून में यहां हाहाकार की स्थिति हो जाती है। यहां अभी तक पानी की पाइपलाइन ही नहीं बिछी है। लिहाजा, ये इलाके पूर्णत: जल बोर्ड के टैंकरों पर निर्भर हैं। इलाके इतने बड़े हैं कि टैंकरों द्वारा पानी की आपूर्ति भी बमुश्किल ही हो पाती है। ज्यादातर इलाके यमुना नदी के तट से जुड़े भी हैं, इसके बावजूद वहां पानी का अकाल है। एक बार जहां टैंकर गया, वहां दोबारा तीसरे दिन ही नंबर लगता है। यही कारण है कि पानी की एक-एक बूंद सहेज कर रखी जाती है। जिन लोगों को पानी मिल गया, उनके तो तीन दिन अच्छे गुजर जाते हैं, लेकिन जिन्हें पानी नहीं मिलता उन्हें भूजल से प्यास बुझानी पड़ती है। पेयजल संकट से जूझ रहे इन इलाकों में ज्यादातर क्षेत्र अनधिकृत कॉलोनियों की श्रेणी में आते हैं, यही कारण है कि जल बोर्ड यहां पानी का पाइपलाइन नेटवर्क नहीं बिछा पाया है। वैसे तो लगभग सभी घरों में लोगों ने दैनिक कार्य में पानी के इस्तेमाल के लिए सबमर्सिबल पंप लगवा रखे हैं लेकिन वह पानी पीने योग्य नहीं होता। इस उत्तर पूर्वी जिले में ही दिल्ली जल बोर्ड के दो बड़े जल संयंत्र (सोनिया विहार-140 एमजीडी एवं भागीरथी-110 एमजीडी) स्थापित हैं, इसके बावजूद लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरसते हैं। सोनिया विहार जल संयंत्र का पूरा पानी दक्षिणी दिल्ली में आपूर्ति के लिए जाता है, जबकि भागीरथी जल संयंत्र का पानी समूचे पूर्वी दिल्ली को दिया जाता है। थोड़ी बहुत समस्या तो पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार फेज-3, घोंडा कॉलोनी, कोंडली, विनोद नगर, मंडावली आदि इलाकों में भी है, लेकिन यहां पाइप लाइन बिछी है। टैंकरों पर निर्भर उत्तर पूर्वी जिले के अधिकांश हिस्से जहां जल बोर्ड की पाइपलाइन नहीं बिछी है, वे पूरी तरह से टैंकरों पर निर्भर हैं। इनमें सोनिया विहार, चौहान पट्टी, चौहान पट्टी विस्तार, बदरपुर खादर गांव, भगत सिंह कॉलोनी, मुकंद विहार, अंकुर एन्कलेव, प्रकाश विहार, शिव विहार, न्यू सभापुर गुजरान, सभापुर गांव, सभापुर विस्तार, अंबे कॉलोनी/एन्कलेव, मिलन गार्डन, सोनिया विहार, हर्ष विहार, प्रताप नगर, महालक्ष्मी एन्कलेव, भगत विहार, शहीद भगत सिंह कॉलोनी, बिहारीपुर, तुकमीरपुर, चंद्रपुरी, चांदबाग आदि हैं। पानी की कोई स्कीम नहीं : विधायक उत्तर पूर्वी जिले में पड़ते करावल नगर के विधायक मोहन सिंह बिष्ट की मानें तो इस क्षेत्र में पेयजल बड़ी समस्या है। ऐसा कहें कि सरकार ने क्षेत्र के लिए कोई कारगर पानी की योजना नहीं दी, जिसके चलते समस्या गंभीर रूप ले चुकी है। अभी तो काम चल जा रहा है, लेकिन जैसे ही गर्मी बढ़ेगी, समस्या विकराल हो जाएगी। विधानसभा में भी पानी का मुद्दा उठाया जा चुका है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। फैलाया जा रहा है नेटवर्क जल बोर्ड के सदस्य (जल एवं आपूर्ति) आरके गर्ग के मुताबिक पुरानी हो चुकी लगभग सभी अनधिकृत कॉलोनियों में पाइपलाइन का नेटवर्क फैलाया जा रहा है। इसकी शुरुआत हो चुकी है, बहुत जल्द सभी जगह लाइन पहुंच जाएगी।
ऐसे साफ होगी यमुना (Amar Ujala 02 April 2011)
यमुना प्रदूषण के सवाल पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साधु-संत और मौलवी-उलेमा उसी तरह सजग होते जा रहे हैं, जिस तरह दो साल पहले महाराष्ट्र के वारकरी संप्रदाय के संत हुए थे। संत तुकाराम और संत ज्ञानेश्वर के भक्ति आंदोलन से जन्मे वारकरी संप्रदाय का पश्चिमी महाराष्ट्र और विदर्भ के किसानों में व्यापक जनाधार है। नदी जल प्रदूषण के सवाल पर पुणे के किसान आंदोलन को जब राज्य सरकार के दमन और हाई कोर्ट के स्टे ने ठिकाने लगा दिया, तो वारकरी संतों ने इसे अपने हाथों में ले लिया। बीस लाख साधुओं और किसानों की भीड़ ने शिंदे वासली गांव स्थित बहुराष्ट्रीय कंपनी देवू की अंतरराष्ट्रीय लैब को जलाकर खाक कर दिया। उस लैब का कचरा स्थानीय सुधा नदी में प्रवाहित होकर इंद्राणी नदी तक पहुंचने वाला था, जो संत तुकाराम की समाधि स्थल से होकर गुजरती है। आंदोलन इतना व्यापक था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख को लंदन से संदेश भेजकर कंपनी के भूमि के पट्टे को रद्द करना पड़ा।
पिछले महीने आनंदी में हुए एक जलसे में कर्नाटक के लिंगायत और आंध्र के महानुभाव संप्रदाय के संतों ने मिलकर दक्षिण के तीन राज्यों में प्रदूषण के खिलाफ बड़ा आंदोलन शुरू करने का फैसला लिया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यद्यपि इस मुद्दे पर कोई बड़ा किसान आंदोलन नहीं हुआ है, लेकिन साधुओं और मौलवियों के अभियान और रैलियों ने न सिर्फ शहरी और ग्रामीण मानस को आंदोलित किया है, बल्कि 18 साल पहले शुरू हुए यमुना ऐक्शन प्लान की भी कलई खोलकर रख दी है। इन लोगों ने यमुना प्रदूषण के उस 22 किलोमीटर लंबे केंद्र पर भी हमला बोला है, जो प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत है और देश की राजधानी में होने के कारण अभी तक जिसे आम आदमी से छिपाकर रखने की राष्ट्रीय कोशिशें होती रही हैं।
वस्तुत: यमुना को वैदिक रंग में रंगने की शुरुआती कोशिशें सरकार की तरफ से हुईं। वर्ष 1993 में यमुना ऐक्शन प्लान की शुरुआत के समय इसके निर्माताओं के सामने गंगा ऐक्शन प्लान की धार्मिक रणनीति थी। यही वजह है कि यमुना ऐक्शन प्लान की शुरुआत के समय इसे सूर्य देवता की पुत्री, यम की बहन और श्रीकृष्ण की बाल गतिविधियों के केंद्र के रूप में प्रचारित-प्रसारित करने वाले इन निर्माताओं में कोई यह सोचने को तैयार नहीं था कि जो रणनीति गंगा ऐक्शन प्लान को सफलता नहीं दिला सकी, वह उन्हें कैसे दिलवा देगी। नदियां जनमानस की सांस्कृतिक धरोहर तो हो सकती हैं, लेकिन भारत जैसे बहुधर्मी देश में नदी को किसी एक धर्म में रंगा नहीं जा सकता।
यमुना प्रदूषण के सवाल पर धर्मगुरुओं का इस प्रकार इकट्ठा होना न सिर्फ एक बड़े सामाजिक और वैज्ञानिक सवाल पर धर्म की दीवारों को तोड़ता दिखता है, बल्कि वे उन जरूरी सवालों को भी बहस के केंद्र में लाने की कोशिश रहे हैं, जिनसे धर्म और जाति के जाति के भेद से अलग आम जनमानस जुड़ा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इस सुधार आंदोलन की शुरुआत साधुओं ने की थी। जाहिर है, उनके नारों में कालिंदी भी थी और कृष्ण भी थे। इसके ठीक बाद मौलवी और मौलानाओं ने जो पहल की, वह एक कदम आगे बढ़ने की बात थी। आगरा के शहर काजी ने सभी काजियों से अपील की कि निकाह के वक्त वे हर दूल्हा-दुल्हन से बाकी करारों के साथ यमुना को मैली न करने का करार भी करवाएं। ऑल इंडिया दीनी मदारिस बोर्ड की जिला इकाई ने बोर्ड से लिखित अपील की कि वे अपने पाठक्रमों में यमुना और गंगा सहित बाकी नदियों के प्रदूषणों को भी शामिल करें। इसके बाद मुसलिम समुदायों में काम करने वाले सामाजिक संगठन सक्रिय हो गए। आगरा की देखादेखी दूसरे शहरों में भी यह सिलसिला शुरू हो गया है। यमुना के किनारे बसे शहरों के मुसलिम महिला संगठनों ने भी नदी के घाटों पर गंदगी और प्रदूषण के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। गंगा हो या यमुना, वह सरकार के ऐक्शन प्लान या धार्मिक नारों से साफ नहीं होगी। वह साफ होगी, तो सामाजिक जागरूकता से। सुखद है कि यमुना के मामले में यह जागरूकता दिखने लगी है।
पिछले महीने आनंदी में हुए एक जलसे में कर्नाटक के लिंगायत और आंध्र के महानुभाव संप्रदाय के संतों ने मिलकर दक्षिण के तीन राज्यों में प्रदूषण के खिलाफ बड़ा आंदोलन शुरू करने का फैसला लिया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यद्यपि इस मुद्दे पर कोई बड़ा किसान आंदोलन नहीं हुआ है, लेकिन साधुओं और मौलवियों के अभियान और रैलियों ने न सिर्फ शहरी और ग्रामीण मानस को आंदोलित किया है, बल्कि 18 साल पहले शुरू हुए यमुना ऐक्शन प्लान की भी कलई खोलकर रख दी है। इन लोगों ने यमुना प्रदूषण के उस 22 किलोमीटर लंबे केंद्र पर भी हमला बोला है, जो प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत है और देश की राजधानी में होने के कारण अभी तक जिसे आम आदमी से छिपाकर रखने की राष्ट्रीय कोशिशें होती रही हैं।
वस्तुत: यमुना को वैदिक रंग में रंगने की शुरुआती कोशिशें सरकार की तरफ से हुईं। वर्ष 1993 में यमुना ऐक्शन प्लान की शुरुआत के समय इसके निर्माताओं के सामने गंगा ऐक्शन प्लान की धार्मिक रणनीति थी। यही वजह है कि यमुना ऐक्शन प्लान की शुरुआत के समय इसे सूर्य देवता की पुत्री, यम की बहन और श्रीकृष्ण की बाल गतिविधियों के केंद्र के रूप में प्रचारित-प्रसारित करने वाले इन निर्माताओं में कोई यह सोचने को तैयार नहीं था कि जो रणनीति गंगा ऐक्शन प्लान को सफलता नहीं दिला सकी, वह उन्हें कैसे दिलवा देगी। नदियां जनमानस की सांस्कृतिक धरोहर तो हो सकती हैं, लेकिन भारत जैसे बहुधर्मी देश में नदी को किसी एक धर्म में रंगा नहीं जा सकता।
यमुना प्रदूषण के सवाल पर धर्मगुरुओं का इस प्रकार इकट्ठा होना न सिर्फ एक बड़े सामाजिक और वैज्ञानिक सवाल पर धर्म की दीवारों को तोड़ता दिखता है, बल्कि वे उन जरूरी सवालों को भी बहस के केंद्र में लाने की कोशिश रहे हैं, जिनसे धर्म और जाति के जाति के भेद से अलग आम जनमानस जुड़ा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इस सुधार आंदोलन की शुरुआत साधुओं ने की थी। जाहिर है, उनके नारों में कालिंदी भी थी और कृष्ण भी थे। इसके ठीक बाद मौलवी और मौलानाओं ने जो पहल की, वह एक कदम आगे बढ़ने की बात थी। आगरा के शहर काजी ने सभी काजियों से अपील की कि निकाह के वक्त वे हर दूल्हा-दुल्हन से बाकी करारों के साथ यमुना को मैली न करने का करार भी करवाएं। ऑल इंडिया दीनी मदारिस बोर्ड की जिला इकाई ने बोर्ड से लिखित अपील की कि वे अपने पाठक्रमों में यमुना और गंगा सहित बाकी नदियों के प्रदूषणों को भी शामिल करें। इसके बाद मुसलिम समुदायों में काम करने वाले सामाजिक संगठन सक्रिय हो गए। आगरा की देखादेखी दूसरे शहरों में भी यह सिलसिला शुरू हो गया है। यमुना के किनारे बसे शहरों के मुसलिम महिला संगठनों ने भी नदी के घाटों पर गंदगी और प्रदूषण के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। गंगा हो या यमुना, वह सरकार के ऐक्शन प्लान या धार्मिक नारों से साफ नहीं होगी। वह साफ होगी, तो सामाजिक जागरूकता से। सुखद है कि यमुना के मामले में यह जागरूकता दिखने लगी है।
तीन चरणों की निगरानी के बाद भी गंदा पानी! (Dainik Jagran 14 April 2011)
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो: दिल्ली जल बोर्ड के अनुसार जल संयंत्र से लेकर घरों में पहुंचने तक पानी की जांच तीन चरणों में होती है। तीनों चरणों की रिपोर्ट लगभग समान होती है तब भी लोगों घरों में नल से कीटाणु और वायरस वाला गंदा पानी क्यों गिरता है? यह सवाल अभी लोगों की जुबान पर है। जवाब, जल बोर्ड के सीईओ रमेश नेगी देते हैं। बताते हैं कि लोगों को भी कुछ लाइन बदलना चाहिए, जो 15 वर्ष से ज्यादा पुरानी है। लेकिन, दिल्ली के एक आम निवासी आलोक वर्मा को यह समझ में नहीं आता कि लोग तो अपनी सर्विस लाइन को 15 वर्ष में बदल देंगे, लेकिन दिल्ली जल बोर्ड क्या 30-40 साल पुरानी लाइन भी नहीं बदलेगा? दरअसल, जल बोर्ड के तमाम दावों की आम जनता सिरे से खारिज करती है।
जल बोर्ड की रिपोर्ट: जल संयंत्र से पानी शोधित होकर पहले यूजीआर में जाता है। वहां से डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क के जरिये लोगों के घरों को जोड़ती सर्विस लाइन द्वारा घरों तक पहुंचता है। इस बीच तीन स्तर पर पानी के सैंपल लिये जाते हैं। वितरण नेटवर्क में ये सुनिश्चित किया जाता है कि क्लोरीन की मात्रा कम से कम प्वाइंट 2 पीपीएम होनी चाहिए। हर हाल में क्लोरीन की मात्रा मिलनी चाहिए। जहां ये चीज नहीं मिलती, वहां तुरंत पता चल जाता है कि रास्ते में कहीं न कहीं प्रदूषित पानी मिल गया है। इसके लिए औसतन रोजाना 300 सैंपल लिये जाते हैं। बीते 3 महीने में समूचे वितरण नेटवर्क से करीब 42,693 सैंपल लिए गए थे। जिसमें से 0.6 फीसदी गड़बड़ी पाई गई। हालांकि, ये मात्रा भी विश्व स्वाथ्स्य संगठन के हिसाब से ठीक है। जल बोर्ड के सेक्रेटरी डॉ. बिपिन बिहारी के मुताबिक समूचे डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क पर प्रतिदिन निगरानी रखी जाती है। अगर, जरा भी गुणवत्ता में कमी मिलती है तो तुरंत उसमें सुधार किया जाता है।
क्या कहता है जल बोर्ड : दिल्ली जल बोर्ड के सीईओ रमेश नेगी के मुताबिक पानी दूषित होने की अहम वजह यह है कि लोग ऑनलाइन बूस्टर का इस्तेमाल करते हैं और सर्विस पाइप लाइन बहुत पुरानी हो चुकी है। इसी वजह से नाले में बहने वाली गंदगी पीने के पानी में आ जाती है। नियम के मुताबिक, सर्विस पाइप लाइन बदलने की जिम्मेदारी उपभोक्ता की होती है, जिसे हर हाल में 15 वर्ष में बदल देना चाहिए। उनके मुताबिक बोर्ड अब लोगों को नोटिस भेजेगा कि वह अपनी पुरानी सर्विस लाइन बदलें और ऑनलाइन बूस्टर का इस्तेमाल पानी आने पर ही करें। हालांकि, जल बोर्ड ने ये फैसला भी किया है कि वह खुद ही सर्विस पाइप लाइन भी बदलेगा। इसके लिए लोगों से 500-600 रुपये लिये जाएंगे। बाकी खर्च बोर्ड उठाएगा। हर रोज पानी दूषित होने की 50-60 शिकायतें आती है। 12 हजार किलोमीटर के पानी के नेटवर्क में यह सामान्य बात है।
क्या कहती है जनता : सोनिया विहार के आशुतोष शुक्ला, खुशबू, जयशंकर, श्रीराम कॉलोनी के आनंद त्रिवेदी, भजनपुरा के केशव, उदयानंद डंगवाल, वेस्ट गुरू अंगदनगर कॉलोनी के अविनाशचंद्र, चंद्र विहार आइपी एक्सटेंशन के सुकांत मेहता, पूनम, अंजलि की मानें तो पानी इतना खराब एवं प्रदूषित आ रहा है कि लोगों का विश्वास जल बोर्ड से उठता जा रहा है। हर व्यक्ति आरओ भी नहीं लगा सकता। लिहाजा मजबूरी में लोगों को यही पानी छानकर या उबालकर पीना पड़ता है।
जल बोर्ड की रिपोर्ट: जल संयंत्र से पानी शोधित होकर पहले यूजीआर में जाता है। वहां से डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क के जरिये लोगों के घरों को जोड़ती सर्विस लाइन द्वारा घरों तक पहुंचता है। इस बीच तीन स्तर पर पानी के सैंपल लिये जाते हैं। वितरण नेटवर्क में ये सुनिश्चित किया जाता है कि क्लोरीन की मात्रा कम से कम प्वाइंट 2 पीपीएम होनी चाहिए। हर हाल में क्लोरीन की मात्रा मिलनी चाहिए। जहां ये चीज नहीं मिलती, वहां तुरंत पता चल जाता है कि रास्ते में कहीं न कहीं प्रदूषित पानी मिल गया है। इसके लिए औसतन रोजाना 300 सैंपल लिये जाते हैं। बीते 3 महीने में समूचे वितरण नेटवर्क से करीब 42,693 सैंपल लिए गए थे। जिसमें से 0.6 फीसदी गड़बड़ी पाई गई। हालांकि, ये मात्रा भी विश्व स्वाथ्स्य संगठन के हिसाब से ठीक है। जल बोर्ड के सेक्रेटरी डॉ. बिपिन बिहारी के मुताबिक समूचे डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क पर प्रतिदिन निगरानी रखी जाती है। अगर, जरा भी गुणवत्ता में कमी मिलती है तो तुरंत उसमें सुधार किया जाता है।
क्या कहता है जल बोर्ड : दिल्ली जल बोर्ड के सीईओ रमेश नेगी के मुताबिक पानी दूषित होने की अहम वजह यह है कि लोग ऑनलाइन बूस्टर का इस्तेमाल करते हैं और सर्विस पाइप लाइन बहुत पुरानी हो चुकी है। इसी वजह से नाले में बहने वाली गंदगी पीने के पानी में आ जाती है। नियम के मुताबिक, सर्विस पाइप लाइन बदलने की जिम्मेदारी उपभोक्ता की होती है, जिसे हर हाल में 15 वर्ष में बदल देना चाहिए। उनके मुताबिक बोर्ड अब लोगों को नोटिस भेजेगा कि वह अपनी पुरानी सर्विस लाइन बदलें और ऑनलाइन बूस्टर का इस्तेमाल पानी आने पर ही करें। हालांकि, जल बोर्ड ने ये फैसला भी किया है कि वह खुद ही सर्विस पाइप लाइन भी बदलेगा। इसके लिए लोगों से 500-600 रुपये लिये जाएंगे। बाकी खर्च बोर्ड उठाएगा। हर रोज पानी दूषित होने की 50-60 शिकायतें आती है। 12 हजार किलोमीटर के पानी के नेटवर्क में यह सामान्य बात है।
क्या कहती है जनता : सोनिया विहार के आशुतोष शुक्ला, खुशबू, जयशंकर, श्रीराम कॉलोनी के आनंद त्रिवेदी, भजनपुरा के केशव, उदयानंद डंगवाल, वेस्ट गुरू अंगदनगर कॉलोनी के अविनाशचंद्र, चंद्र विहार आइपी एक्सटेंशन के सुकांत मेहता, पूनम, अंजलि की मानें तो पानी इतना खराब एवं प्रदूषित आ रहा है कि लोगों का विश्वास जल बोर्ड से उठता जा रहा है। हर व्यक्ति आरओ भी नहीं लगा सकता। लिहाजा मजबूरी में लोगों को यही पानी छानकर या उबालकर पीना पड़ता है।
Wednesday, April 13, 2011
सोनिया विहार में सैंकड़ों को पीलिया (Dainik Jagran 14 April 2011)
राजधानी के सोनिया विहार क्षेत्र में दिल्ली जल बोर्ड का पानी पीने से 100 से अधिक लोग बीमार हो गए हैं। हालांकि, स्थानीय लोग और क्षेत्रीय विधायक 300 से अधिक लोगों को पीलिया होने का दावा कर रहे हैं। कुछ लोग दूसरी अन्य बीमारियों से भी ग्रसित हैं, लेकिन कारण दूषित पानी बता रहे हैं। कई लोगों का तो लीवर भी डैमेज हो चुका है, जो अब अस्पताल में दाखिल हैं। कई ब्लाकों के हर घर में लोग बीमार हैं तो कुछेक का पूरा परिवार पीलिया की चपेट में आ चुका है। घबराए लोगों ने सरकारी पाइप लाइन का पानी पीना बंद कर दिया है।
लोगों का कहना है कि इलाके में सोनिया विहार जल संयंत्र से पानी की आपूर्ति होती है, जिसमें खराबी है। समस्या ज्यादातर सोनिया विहार के तीसरे पुस्ता और कुछ चौथे पुस्ता से निकलती कॉलोनियों में है। चौथा पुस्ता के ई-2/233 निवासी जय शंकर के घर के तीन लोग पीड़ित हैं। भाई संतोष , बेटा देवेन्द्र एवं छह वर्षीय बेटी कोमल। डी-ब्लाक के गली नंबर-6 निवासी गंगा सिंह बिष्ट का पूरा परिवार पीड़ित है। दो बहुओं सहित चार लोगों को पीलिया है। बड़ी बहू दीपा बिष्ट (23) का लीवर डैमेज हो चुका है। उसे इलाज के लिए हिंदु राव अस्पताल में भर्ती कराया गया है। वहीं इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहे डी/193 निवासी धीरज कुमार झा एवं अजीता झा पीलियाग्रस्त हैं। धीरज के मुताबिक पीलिया के चलते आइआइटी परीक्षा छूट गई।
गौरतलब है कि सोनिया विहार राजधानी के उत्तार पूर्वी जिला में पड़ता है। जहां यूपी-बिहार और बंगाल के मध्यम वर्गीय तबके के लोग रहते हैं। अनधिकृत कॉलोनी में आने वाले इस क्षेत्र में अभी तक सीवरेज और पानी का पूरा नेटवर्क नहीं बिछ पाया है। कुछ जगहों पर जल बोर्ड ने पाइप लाइन बिछा दी है, जहां सुबह एवं शाम पानी कुछ देर आता है। बाकी हिस्सों में पीने के लिए टैंकर से आपूर्ति होती है।
जल बोर्ड दोषी: सोनिया विहार जल संयंत्र से मिलावट : विधायक
क्षेत्रीय विधायक मोहन सिंह बिष्ट की माने तो इसके लिए दिल्ली जल बोर्ड पूरी तरह से जिम्मेदार है। बोर्ड एवं सरकार सभी को पता है कि सोनिया विहार में डेढ़ महीने से गंदा पानी की आपूर्ति हो रही है, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया।
जल बोर्ड को पता ही नहीं
दिल्ली जल प्रबंधन इस बड़ी घटना से अनजान है। बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारी की माने तो जल बोर्ड के पानी से ऐसा हो ही नहीं सकता। जरूर लोगों ने जमीन का पानी पीय होगा। बगैर जांच किए कुछ भी कहना संभव नहीं है।
पीलिया ग्रस्त प्रमुख गलियां
-सी-ब्लाक के सोम बाजार से जुड़ी हर लेन में हैं पीलिया पीड़ित
-गली नंबर-2 में करीब 20 लोग पीड़ित
-एक्सरा वाली गली में 10 से 15 लोग पीड़ित
-सर्कुलर रोड-रामलीला ग्राउण्ड में 25 लोग पीड़ित
-हरि ओम गली में 20 लोग पीड़ित
-सागर मार्केट की गली नंबर-6।
लोगों का कहना है कि इलाके में सोनिया विहार जल संयंत्र से पानी की आपूर्ति होती है, जिसमें खराबी है। समस्या ज्यादातर सोनिया विहार के तीसरे पुस्ता और कुछ चौथे पुस्ता से निकलती कॉलोनियों में है। चौथा पुस्ता के ई-2/233 निवासी जय शंकर के घर के तीन लोग पीड़ित हैं। भाई संतोष , बेटा देवेन्द्र एवं छह वर्षीय बेटी कोमल। डी-ब्लाक के गली नंबर-6 निवासी गंगा सिंह बिष्ट का पूरा परिवार पीड़ित है। दो बहुओं सहित चार लोगों को पीलिया है। बड़ी बहू दीपा बिष्ट (23) का लीवर डैमेज हो चुका है। उसे इलाज के लिए हिंदु राव अस्पताल में भर्ती कराया गया है। वहीं इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहे डी/193 निवासी धीरज कुमार झा एवं अजीता झा पीलियाग्रस्त हैं। धीरज के मुताबिक पीलिया के चलते आइआइटी परीक्षा छूट गई।
गौरतलब है कि सोनिया विहार राजधानी के उत्तार पूर्वी जिला में पड़ता है। जहां यूपी-बिहार और बंगाल के मध्यम वर्गीय तबके के लोग रहते हैं। अनधिकृत कॉलोनी में आने वाले इस क्षेत्र में अभी तक सीवरेज और पानी का पूरा नेटवर्क नहीं बिछ पाया है। कुछ जगहों पर जल बोर्ड ने पाइप लाइन बिछा दी है, जहां सुबह एवं शाम पानी कुछ देर आता है। बाकी हिस्सों में पीने के लिए टैंकर से आपूर्ति होती है।
जल बोर्ड दोषी: सोनिया विहार जल संयंत्र से मिलावट : विधायक
क्षेत्रीय विधायक मोहन सिंह बिष्ट की माने तो इसके लिए दिल्ली जल बोर्ड पूरी तरह से जिम्मेदार है। बोर्ड एवं सरकार सभी को पता है कि सोनिया विहार में डेढ़ महीने से गंदा पानी की आपूर्ति हो रही है, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया।
जल बोर्ड को पता ही नहीं
दिल्ली जल प्रबंधन इस बड़ी घटना से अनजान है। बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारी की माने तो जल बोर्ड के पानी से ऐसा हो ही नहीं सकता। जरूर लोगों ने जमीन का पानी पीय होगा। बगैर जांच किए कुछ भी कहना संभव नहीं है।
पीलिया ग्रस्त प्रमुख गलियां
-सी-ब्लाक के सोम बाजार से जुड़ी हर लेन में हैं पीलिया पीड़ित
-गली नंबर-2 में करीब 20 लोग पीड़ित
-एक्सरा वाली गली में 10 से 15 लोग पीड़ित
-सर्कुलर रोड-रामलीला ग्राउण्ड में 25 लोग पीड़ित
-हरि ओम गली में 20 लोग पीड़ित
-सागर मार्केट की गली नंबर-6।
Friday, April 8, 2011
DJB chief says tap water is safe to drink (Times of india 8 April 2011)
NEW DELHI: A day after a study highlighted presence of a superbug in Delhi's water, Delhi Jal Board (DJB) said there was no need to panic. It said the superbug cannot exist in tap water due to the presence of chlorine.
DJB CEO Ramesh Negi said the tap water was "safe" for drinking. He, however, added the tests that Bureau of Indian Standards performs cannot detect NDM-1 (New Delhi Metallo-beta-lactamase-1).
Quoting Dr Mohd Shahid from department of medical microbiology, Aligarh Muslim University, Negi said: "NDM-I gene has just got into the environment but is yet to be established itself in tap water because the isolates from the tap water do not have stable plasmids."
A report in research journal claims that gram-negative bacterial strains with NDM-1 gene, also called superbug, have been detected in water samples collected from puddles, rivulets and taps in New Delhi. Bacteria that carry the antibiotic resistant gene were found in two of the 50 drinking water samples and 51 of 171 seepage water samples. The two positive water samples were lifted from Ramesh Nagar and area near Red Fort. The NDM-1 positive seepage samples were collected from close to CP, Sir Ganga Ram Hospital and Gole Market.
"Cleanliness and personal hygiene are important measures to prevent the spread of NDM-1 gene. Fortunately, the gene cannot stabilize itself in tap water due to presence of chlorine so there is no cause of concern as far as drinking water is concerned. But water can be boiled as a precautionary measure," added Negi.
DJB claimed that its water conforms to the standards prescribed by Bureau of Indian Standards. "The BSI standard is 10 Coliform per 100ml of drinking water. National Environmental Engineering Research Institute, which has been carrying out an independent quality check of water from 2006 to 2010, has found the Coliform presence in drinking water within prescribed limit," said Negi.
"The new bug seems to be a mutation of Coliform. BIS tests detect only Coliform and do not handle gene mutation. Detecting mutation is in domain of health department and Centre," said Negi. Expressing his concern on the matter, health minister A K Walia has called a meeting.
Negi said that while DJB receives around 50 to 60 complaints of contaminated water everyday, they were now trying to take precautionary measures to avoid such situations. "We are mapping areas vulnerable to contamination. This basically includes 550 unauthorized colonies which have water supply but do not have a proper sewage system," said Negi.
DJB is also planning to take on the task of changing corroded service pipelines besides the main water pipelines to prevent leakages and contamination of water. "The process to change service pipelines will start in 15-20 days," said Negi. "We appeal to consumers not to use online boosters as this leads to corroding of pipelines."
On MCD raising questions over the quality of supply water, Negi said they have written two letters to the body inviting them for joint sampling and testing of water.
DJB CEO Ramesh Negi said the tap water was "safe" for drinking. He, however, added the tests that Bureau of Indian Standards performs cannot detect NDM-1 (New Delhi Metallo-beta-lactamase-1).
Quoting Dr Mohd Shahid from department of medical microbiology, Aligarh Muslim University, Negi said: "NDM-I gene has just got into the environment but is yet to be established itself in tap water because the isolates from the tap water do not have stable plasmids."
A report in research journal claims that gram-negative bacterial strains with NDM-1 gene, also called superbug, have been detected in water samples collected from puddles, rivulets and taps in New Delhi. Bacteria that carry the antibiotic resistant gene were found in two of the 50 drinking water samples and 51 of 171 seepage water samples. The two positive water samples were lifted from Ramesh Nagar and area near Red Fort. The NDM-1 positive seepage samples were collected from close to CP, Sir Ganga Ram Hospital and Gole Market.
"Cleanliness and personal hygiene are important measures to prevent the spread of NDM-1 gene. Fortunately, the gene cannot stabilize itself in tap water due to presence of chlorine so there is no cause of concern as far as drinking water is concerned. But water can be boiled as a precautionary measure," added Negi.
DJB claimed that its water conforms to the standards prescribed by Bureau of Indian Standards. "The BSI standard is 10 Coliform per 100ml of drinking water. National Environmental Engineering Research Institute, which has been carrying out an independent quality check of water from 2006 to 2010, has found the Coliform presence in drinking water within prescribed limit," said Negi.
"The new bug seems to be a mutation of Coliform. BIS tests detect only Coliform and do not handle gene mutation. Detecting mutation is in domain of health department and Centre," said Negi. Expressing his concern on the matter, health minister A K Walia has called a meeting.
Negi said that while DJB receives around 50 to 60 complaints of contaminated water everyday, they were now trying to take precautionary measures to avoid such situations. "We are mapping areas vulnerable to contamination. This basically includes 550 unauthorized colonies which have water supply but do not have a proper sewage system," said Negi.
DJB is also planning to take on the task of changing corroded service pipelines besides the main water pipelines to prevent leakages and contamination of water. "The process to change service pipelines will start in 15-20 days," said Negi. "We appeal to consumers not to use online boosters as this leads to corroding of pipelines."
On MCD raising questions over the quality of supply water, Negi said they have written two letters to the body inviting them for joint sampling and testing of water.
Superbug in Delhi water, says Brit study (Times of India 07 April 2011)
NEW DELHI: A superbug immune to almost all known antibiotics has been found in Delhi's water. British scientists said they have found the New Delhi metallo-beta-lactamase (NDM) 1 gene that makes bacteria highly resistant to all known drugs in the capital's public water supply used for drinking, washing and cooking.
In August last year, after announcing the existence of this superbug created by the NDM1 gene, scientists had said it was hospital-acquired.
"Now, we know it is not present in hospital ICUs but is actually freely circulating in Delhi's environment, both in the water people drink and those that lay stagnant," Dr Mark Toleman from Cardiff university told TOI.
"Drinking contaminated water will help the superbug enter our bodies. However, we still don't know how many in the population are already carrying the superbug," Toleman said.
The most worrying factor was that the NDM1 gene had already spread to the bacteria that causes cholera and dysentery in India, the scientists said. Their findings were published in British medical journal 'The Lancet Infectious Diseases' on Thursday.
This means when people carrying the superbug, especially children, suffer from a bout of cholera and dysentery, it would be nearly impossible to treat them with available antibiotics.
The researchers made another important finding. The rate at which the NDM-1 gene is copied and transferred between different bacteria was highest at 30°C — a temperature common in Delhi for almost seven months in a year, from April to October.
"This will lead to faster transfer of the NDM1 gene between bacteria, making them drug resistant. This also includes the monsoon season, when floods and drain overflows are most likely, which disseminates resistant bacteria," Dr Toleman said.
In the study, scientists investigated how common NDM-1-producing bacteria were in community waste seepage (water pools in streets or rivulets) and tap water in urban New Delhi. The researchers collected 171 swabs of seepage water and 50 public tap water samples from sites within a 12km radius of central New Delhi between September and October 2010.
These included areas like Connaught Place, Greater Kailash, Kalkaji, Nehru Place, Paharganj, Daryaganj, Kidwai Nagar, Friends Colony, Okhla, Asian Games Villages Complex, Civil Lines and Shahadara.
Samples were tested for the presence of the NDM-1 gene using polymerase chain reaction (PCR) and DNA probing. All bacteria isolated from the water samples were also tested for antibiotic susceptibility and examined for NDM-1 by PCR and sequencing. NDM-1 bacterial transfer frequency was also examined at three different temperatures relevant to the Indian environment: 25°C, 30°C, and 37°C.
"The NDM-1 gene was found in 2 of the 50 drinking-water samples and 51 of 171 seepage samples. Importantly, the gene was found in 20 bacterial isolates comprising 14 different species including 11 species in which NDM-1 has not been previously reported. Worryingly, the gene has spread to pathogenic species including Shigella boydii and Vibrio cholerae, which cause dysentery and cholera, respectively," the study said.
The two positive water samples were from district of Ramesh Nagar and south of the Red Fort. The NDM1 positive seepage samples were collected from close to Connaught Place, Gole Market and Ganga Ram hospital area.
According to Mohd Shahid from Jawaharlal Nehru Medical College and Hospital, Uttar Pradesh, "The potential for wider international spread of plasmids encoding NDM-1 is real and should not be ignored. A coordinated and collective effort is needed to limit their spread. To add to these, we are working on similar studies by collecting environmental and fecal samples from a city close to New Delhi, to explore the severity of the situation."
Scientists say that oral-faecal transmission of drug resistant bacteria is a problem worldwide, but its potential risk varies with the standards of sanitation. "In India, this transmission represents a serious problem as 650 million citizens do not have access to a flush toilet and even more probably do not have access to clean water," the study said.
The Lancet in August 2010 published a multi-centre study warning how a new superbug NDM1 had emerged from India and had spread across the world which made bacteria highly resistant to almost all antibiotics, including the most powerful class called carbapenems.
In August last year, after announcing the existence of this superbug created by the NDM1 gene, scientists had said it was hospital-acquired.
"Now, we know it is not present in hospital ICUs but is actually freely circulating in Delhi's environment, both in the water people drink and those that lay stagnant," Dr Mark Toleman from Cardiff university told TOI.
"Drinking contaminated water will help the superbug enter our bodies. However, we still don't know how many in the population are already carrying the superbug," Toleman said.
The most worrying factor was that the NDM1 gene had already spread to the bacteria that causes cholera and dysentery in India, the scientists said. Their findings were published in British medical journal 'The Lancet Infectious Diseases' on Thursday.
This means when people carrying the superbug, especially children, suffer from a bout of cholera and dysentery, it would be nearly impossible to treat them with available antibiotics.
The researchers made another important finding. The rate at which the NDM-1 gene is copied and transferred between different bacteria was highest at 30°C — a temperature common in Delhi for almost seven months in a year, from April to October.
"This will lead to faster transfer of the NDM1 gene between bacteria, making them drug resistant. This also includes the monsoon season, when floods and drain overflows are most likely, which disseminates resistant bacteria," Dr Toleman said.
In the study, scientists investigated how common NDM-1-producing bacteria were in community waste seepage (water pools in streets or rivulets) and tap water in urban New Delhi. The researchers collected 171 swabs of seepage water and 50 public tap water samples from sites within a 12km radius of central New Delhi between September and October 2010.
These included areas like Connaught Place, Greater Kailash, Kalkaji, Nehru Place, Paharganj, Daryaganj, Kidwai Nagar, Friends Colony, Okhla, Asian Games Villages Complex, Civil Lines and Shahadara.
Samples were tested for the presence of the NDM-1 gene using polymerase chain reaction (PCR) and DNA probing. All bacteria isolated from the water samples were also tested for antibiotic susceptibility and examined for NDM-1 by PCR and sequencing. NDM-1 bacterial transfer frequency was also examined at three different temperatures relevant to the Indian environment: 25°C, 30°C, and 37°C.
"The NDM-1 gene was found in 2 of the 50 drinking-water samples and 51 of 171 seepage samples. Importantly, the gene was found in 20 bacterial isolates comprising 14 different species including 11 species in which NDM-1 has not been previously reported. Worryingly, the gene has spread to pathogenic species including Shigella boydii and Vibrio cholerae, which cause dysentery and cholera, respectively," the study said.
The two positive water samples were from district of Ramesh Nagar and south of the Red Fort. The NDM1 positive seepage samples were collected from close to Connaught Place, Gole Market and Ganga Ram hospital area.
According to Mohd Shahid from Jawaharlal Nehru Medical College and Hospital, Uttar Pradesh, "The potential for wider international spread of plasmids encoding NDM-1 is real and should not be ignored. A coordinated and collective effort is needed to limit their spread. To add to these, we are working on similar studies by collecting environmental and fecal samples from a city close to New Delhi, to explore the severity of the situation."
Scientists say that oral-faecal transmission of drug resistant bacteria is a problem worldwide, but its potential risk varies with the standards of sanitation. "In India, this transmission represents a serious problem as 650 million citizens do not have access to a flush toilet and even more probably do not have access to clean water," the study said.
The Lancet in August 2010 published a multi-centre study warning how a new superbug NDM1 had emerged from India and had spread across the world which made bacteria highly resistant to almost all antibiotics, including the most powerful class called carbapenems.
Water supply in two areas of the Capital to be outsourced (The Hindu 06 April 2011)
In about two months from now two populated pockets of the city can look forward to a more streamlined distribution of water in their areas. The Delhi Jal Board that supplies water to these areas and the rest of the city is gearing up for engaging an outside agency to manage and distribute water supply in Malviya Nagar and Vasant Vihar.
To be initiated on a pilot basis, the DJB says the project will focus on reforms in the administrative and distribution mechanism. “The project's main aim will be to reduce losses, both commercial as well as technical. As for 24x7 supply in both the areas…that is a cherished objective,” said a senior official of the DJB.
The pilot project will be based on the models that are currently followed in Nagpur, Hubli and Dharwad. “The success of the project in these cities is the reason why we are replicating it here. There are some plans that a consultant has drawn up for us and now we will invitebids from companies that are willing to take on the task,” said the official.
The project will be monitored for few years, before it is extended to the rest of the city. “We will get to know the trends in about two years and that should indicate the success or the failure of the projects. So far the model has been successful so we are hopeful that in Delhi too the model will help bring down the losses and improve the supply.”
The company will also be required to draw up the bills, but the Jal Board will retain the revenue collection for now.
Detail on revenue sharing and other issues will also be firmed up after the bidding process is over.
“The idea is to improve the availability of water and efficiency of services in these areas and make the best possible use of the resources at hand,” the official said.
The DJB has been criticised for losses in distribution and owing to technical reasons that eventually lead to poor supply and insufficient revenue collection. Recently, after an inspection of the Yamuna and while arbitrating Delhi's outstanding issues over water sharing with Haryana, Union Minister for Environment and Forests Jairam Ramesh also asked the Jal Board to plug its leaks.
The Minister had asked the Jal Board to ensure that the wastage of water on account of technical losses and theft are reduced. Currently the losses on account of technical reasons are 30 per cent and theft and free distribution of water adds up to another 20 per cent.
To be initiated on a pilot basis, the DJB says the project will focus on reforms in the administrative and distribution mechanism. “The project's main aim will be to reduce losses, both commercial as well as technical. As for 24x7 supply in both the areas…that is a cherished objective,” said a senior official of the DJB.
The pilot project will be based on the models that are currently followed in Nagpur, Hubli and Dharwad. “The success of the project in these cities is the reason why we are replicating it here. There are some plans that a consultant has drawn up for us and now we will invitebids from companies that are willing to take on the task,” said the official.
The project will be monitored for few years, before it is extended to the rest of the city. “We will get to know the trends in about two years and that should indicate the success or the failure of the projects. So far the model has been successful so we are hopeful that in Delhi too the model will help bring down the losses and improve the supply.”
The company will also be required to draw up the bills, but the Jal Board will retain the revenue collection for now.
Detail on revenue sharing and other issues will also be firmed up after the bidding process is over.
“The idea is to improve the availability of water and efficiency of services in these areas and make the best possible use of the resources at hand,” the official said.
The DJB has been criticised for losses in distribution and owing to technical reasons that eventually lead to poor supply and insufficient revenue collection. Recently, after an inspection of the Yamuna and while arbitrating Delhi's outstanding issues over water sharing with Haryana, Union Minister for Environment and Forests Jairam Ramesh also asked the Jal Board to plug its leaks.
The Minister had asked the Jal Board to ensure that the wastage of water on account of technical losses and theft are reduced. Currently the losses on account of technical reasons are 30 per cent and theft and free distribution of water adds up to another 20 per cent.
Lack of water meters leaves Delhi high & dry (Times of India 04 April 2011)
NEW DELHI: Delhi Jal Board's drive to install meters has put the consumers in a fix. While the board is insisting that the new meters should be installed immediately, people say that there is a shortage of meters in the market and the ones that are available malfunction within three or four months.
The water utility has prescribed the use of new magnetic meters, but officials admit that the ones available in the market do not meet the standards. "Though the meters have ISI certification, they do not meet any the quality standards. These meters are made by local manufacturers. Quality meters are not easily available in India," said a senior DJB official.
When DJB invited tenders for the meters none of the companies manufacturing them could meet the specifications. "Earlier, several deadlines had been set, the last being March 31. We realized that it is not fair on our part to insist on a deadline if meters are not available. It is imperative for consumers to understand that this is not an excuse for not installing meters," said a DJB official.
DJB has a consumer base of 18 lakh, of which only 15 lakh connections have meters. Of these, about 7 lakh need to be replaced as they are either not working or are malfunctioning. "DJB had acquired 1 lakh meters earlier and had them installed. At present, it is in the process of getting another 2.5 lakh meters installed, and tenders have been floated for 2.5 lakh meters more. These new meters, being installed by L&T, come with a five-year guarantee period. The process will take time. We have also asked the consumers to get the meters from the market," said another official.
Consumers are not buying the argument. "DJB is aware of the problem of defective meters, yet it has set a deadline for their installation. We purchase a meter for Rs 700-800 and dole out another Rs 1,000 or so for its installation. Are we expected to keep repeating this process every few months till DJB gets more meters. Even after installation of the new meters we don't know whether we are being overcharged," said Pankaj Agarwal, a resident of Safdarjung Enclave.
DJB has been losing an average of Rs 70 crore every year because of non-metered connections. At present, those who do not have meters are charged on the basis of average consumption, though DJB has adopted a resolution to do away with the practice. Now, the board is in the process of acquiring and installing five lakh new meters. Still about two lakh connections will continue to have local meters. DJB has set several deadlines for installation of meters but they are never met as the government has acknowledged that there is a shortage of meters in the market.
The water utility has prescribed the use of new magnetic meters, but officials admit that the ones available in the market do not meet the standards. "Though the meters have ISI certification, they do not meet any the quality standards. These meters are made by local manufacturers. Quality meters are not easily available in India," said a senior DJB official.
When DJB invited tenders for the meters none of the companies manufacturing them could meet the specifications. "Earlier, several deadlines had been set, the last being March 31. We realized that it is not fair on our part to insist on a deadline if meters are not available. It is imperative for consumers to understand that this is not an excuse for not installing meters," said a DJB official.
DJB has a consumer base of 18 lakh, of which only 15 lakh connections have meters. Of these, about 7 lakh need to be replaced as they are either not working or are malfunctioning. "DJB had acquired 1 lakh meters earlier and had them installed. At present, it is in the process of getting another 2.5 lakh meters installed, and tenders have been floated for 2.5 lakh meters more. These new meters, being installed by L&T, come with a five-year guarantee period. The process will take time. We have also asked the consumers to get the meters from the market," said another official.
Consumers are not buying the argument. "DJB is aware of the problem of defective meters, yet it has set a deadline for their installation. We purchase a meter for Rs 700-800 and dole out another Rs 1,000 or so for its installation. Are we expected to keep repeating this process every few months till DJB gets more meters. Even after installation of the new meters we don't know whether we are being overcharged," said Pankaj Agarwal, a resident of Safdarjung Enclave.
DJB has been losing an average of Rs 70 crore every year because of non-metered connections. At present, those who do not have meters are charged on the basis of average consumption, though DJB has adopted a resolution to do away with the practice. Now, the board is in the process of acquiring and installing five lakh new meters. Still about two lakh connections will continue to have local meters. DJB has set several deadlines for installation of meters but they are never met as the government has acknowledged that there is a shortage of meters in the market.
Water storage in most reservoirs up: CWC (The Hindu 03 April 2011)
NEW DELHI: The combined water storage in the 81 important reservoirs in the country, monitored by the Central Water Commission (CWC), stood at 39 per cent of their designed capacity on March 31. The average was 14 per cent at the onset of the South-West Monsoon on June 1, 2010.
Of the 81 reservoirs, the storage level in 16 is reported to be less than 80 per cent of the last 10-year average, while in the remaining 65 the storage is more than 80 per cent, the CWC reported to the Crop and Weather Watch Group under the Ministry of Agriculture. The group reviewed on Friday the rabi cultivation and position of water storage in various reservoirs in the country.
The storage position in Indus, Narmada, Ganga, Tapi, Godavari, Krishna, rivers of the Kutch, Cauvery, Mahanadi and west-flowing rivers of the south basins is better than the average of the previous 10 years.
Of the 81 reservoirs, the storage level in 16 is reported to be less than 80 per cent of the last 10-year average, while in the remaining 65 the storage is more than 80 per cent, the CWC reported to the Crop and Weather Watch Group under the Ministry of Agriculture. The group reviewed on Friday the rabi cultivation and position of water storage in various reservoirs in the country.
The storage position in Indus, Narmada, Ganga, Tapi, Godavari, Krishna, rivers of the Kutch, Cauvery, Mahanadi and west-flowing rivers of the south basins is better than the average of the previous 10 years.
Finding a solution to वाटर woes (The Hindu 31 March 2011)
Delhi Technological University organised a national seminar on “Sustainable and innovative solutions for water woes” earlier this week taking cognisance of the depletion of water resources because of rapid development and industrialisation. The seminar, organised in association with the Green Institute for Research and Development, underlined the need for striking a balance between water and environment for sustainability. The need for innovative technologies to conserve, recycle and re-use water was also highlighted.
Technical sessions on sustaining fresh water resources and countering threats to watershed eco-systems and issues in conservation, treatment and sectoral distribution of water were held.
The University has established a domestic waste water recycling plant to treat the waste water collected from hostels and other buildings of the university and to re-use it for horticulture.
Navjyoti India Foundation has announced admissions to Navjyoti Community College registered with Indira Gandhi National Open University in the Capital for preparatory courses for government and private jobs. Certificate and diploma courses in English speaking, computer fundamentals and applications, 3-D animation, beauty, stitching and tailoring are also available. Interested students can visit www.navjyoti.org.in for more details.
Zakir Husain College (Morning) of Delhi University organised the annual Bhisham Sahni Memorial Book Fair in the Capital earlier this week. The event was in honour of the celebrated author, playwright, activist and Padma Bhushan recipient Bhisham Sahni who once taught at the English Department of the College.
Various publishers of books in English, Hindi, Bengali, Urdu and Persian like Sahitya Akademi, Penguin Books India, National Book Trust, Publications Division, People's Publishing House, Low Price Publications and popular book stores like Landmark and Select Book Service participated in the fair and offered generous discounts to visitors.
The College also announced a 10 per cent discount, over the publisher's discount, on all books priced above Rs.300 to encourage students to purchase books.
Aligarh Muslim University organised the Sir Syed Memorial Lecture on “India's Democracy: What it means for the Minorities” earlier this week. National Minorities Commission chairperson Wajahat Habibullah, who delivered the address, said the Constitution and democracy were the best safeguards of minority rights. Emphasising the need for greater accountability, Mr. Habibullah said that panchayats are central to elimination of poverty as is the Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme. Calling upon the minorities to actively participate in the process of democracy and emphasising the significance of the Right to Information Act, Mr. Habibullah noted that democracy required an informed citizenry and transparency of information. National security is synonymous with the security of the people of the country including the minorities, he added.
Pearl Academy of Fashion organised “Prove a Point”, a competitive series of presentations by shortlisted students of the academy and various other colleges from different cities of the country. Held this past week, the event saw students making presentations on topics such as design vision for India, corporate governance, fashion and styling and retail business.
Technical sessions on sustaining fresh water resources and countering threats to watershed eco-systems and issues in conservation, treatment and sectoral distribution of water were held.
The University has established a domestic waste water recycling plant to treat the waste water collected from hostels and other buildings of the university and to re-use it for horticulture.
Navjyoti India Foundation has announced admissions to Navjyoti Community College registered with Indira Gandhi National Open University in the Capital for preparatory courses for government and private jobs. Certificate and diploma courses in English speaking, computer fundamentals and applications, 3-D animation, beauty, stitching and tailoring are also available. Interested students can visit www.navjyoti.org.in for more details.
Zakir Husain College (Morning) of Delhi University organised the annual Bhisham Sahni Memorial Book Fair in the Capital earlier this week. The event was in honour of the celebrated author, playwright, activist and Padma Bhushan recipient Bhisham Sahni who once taught at the English Department of the College.
Various publishers of books in English, Hindi, Bengali, Urdu and Persian like Sahitya Akademi, Penguin Books India, National Book Trust, Publications Division, People's Publishing House, Low Price Publications and popular book stores like Landmark and Select Book Service participated in the fair and offered generous discounts to visitors.
The College also announced a 10 per cent discount, over the publisher's discount, on all books priced above Rs.300 to encourage students to purchase books.
Aligarh Muslim University organised the Sir Syed Memorial Lecture on “India's Democracy: What it means for the Minorities” earlier this week. National Minorities Commission chairperson Wajahat Habibullah, who delivered the address, said the Constitution and democracy were the best safeguards of minority rights. Emphasising the need for greater accountability, Mr. Habibullah said that panchayats are central to elimination of poverty as is the Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme. Calling upon the minorities to actively participate in the process of democracy and emphasising the significance of the Right to Information Act, Mr. Habibullah noted that democracy required an informed citizenry and transparency of information. National security is synonymous with the security of the people of the country including the minorities, he added.
Pearl Academy of Fashion organised “Prove a Point”, a competitive series of presentations by shortlisted students of the academy and various other colleges from different cities of the country. Held this past week, the event saw students making presentations on topics such as design vision for India, corporate governance, fashion and styling and retail business.
Resolve Palar water dispute through negotiations: Supreme Court (THe Hindu 31 March 2011)
Tamil Nadu filed a suit to restrain A.P. from constructing a check dam
Cites reports that say project would submerge at least eight villages
New Delhi: The Supreme Court has asked the Union Water Resources Ministry to explore the possibility of resolving the Palar river water dispute between Tamil Nadu and Andhra Pradesh through negotiations.
A Bench of Justices M.K. Sharma and Anil R. Dave, in a brief interim order, asked the Secretary, Ministry of Water Resources, to assist the parties in arriving at a negotiated settlement.
The Bench said: “After a preliminary hearing, it appears that there could be an amicable settlement to the disputes involved in the present case provided Secretary, Water Resources Ministry, convenes a meeting of all the stakeholders, including the Chairman, Central Water Commission (CWC) and representatives of the two States and holds a discussion with them.” The Bench directed that a report be submitted to the Court within eight weeks. In the meantime, the Bench said, “list of witnesses shall be filed by the parties.”
The Bench was hearing a suit filed by Tamil Nadu to restrain Andhra Pradesh from constructing the proposed check dam across the Palar. Tamil Nadu contended that the proposed dam near Kuppam would deprive people in the State of their lifeline — the Palar. It said that the proposed dam would be in violation of an 1892 agreement between riparian States, under which no water could be obstructed, diverted or stored upstream without the consent of the downstream State or region.
Tenders
Tamil Nadu alleged that Andhra Pradesh was reported to have proceeded to call for tenders for the construction of the dam and the former Chief Minister of Andhra Pradesh had stated that the State would proceed with the construction.
The unilateral action by the State in proceeding with the construction of the dam, without furnishing the information and taking the concurrence of Tamil Nadu, was totally illegal, it said and sought a direction to restrain Andhra Pradesh from proceeding with the construction.
Andhra Pradesh strongly refuted Tamil Nadu's allegations, saying no such work was currently going on at the site and that certain designs related to the dam had been prepared so far. “We have shared the designs with the Tamil Nadu government. We are aware of the inter-State problems involved over the project, but we can say there will not be any loss to Tamil Nadu because of the project,” the State said.
Cites reports that say project would submerge at least eight villages
New Delhi: The Supreme Court has asked the Union Water Resources Ministry to explore the possibility of resolving the Palar river water dispute between Tamil Nadu and Andhra Pradesh through negotiations.
A Bench of Justices M.K. Sharma and Anil R. Dave, in a brief interim order, asked the Secretary, Ministry of Water Resources, to assist the parties in arriving at a negotiated settlement.
The Bench said: “After a preliminary hearing, it appears that there could be an amicable settlement to the disputes involved in the present case provided Secretary, Water Resources Ministry, convenes a meeting of all the stakeholders, including the Chairman, Central Water Commission (CWC) and representatives of the two States and holds a discussion with them.” The Bench directed that a report be submitted to the Court within eight weeks. In the meantime, the Bench said, “list of witnesses shall be filed by the parties.”
The Bench was hearing a suit filed by Tamil Nadu to restrain Andhra Pradesh from constructing the proposed check dam across the Palar. Tamil Nadu contended that the proposed dam near Kuppam would deprive people in the State of their lifeline — the Palar. It said that the proposed dam would be in violation of an 1892 agreement between riparian States, under which no water could be obstructed, diverted or stored upstream without the consent of the downstream State or region.
Tenders
Tamil Nadu alleged that Andhra Pradesh was reported to have proceeded to call for tenders for the construction of the dam and the former Chief Minister of Andhra Pradesh had stated that the State would proceed with the construction.
The unilateral action by the State in proceeding with the construction of the dam, without furnishing the information and taking the concurrence of Tamil Nadu, was totally illegal, it said and sought a direction to restrain Andhra Pradesh from proceeding with the construction.
Andhra Pradesh strongly refuted Tamil Nadu's allegations, saying no such work was currently going on at the site and that certain designs related to the dam had been prepared so far. “We have shared the designs with the Tamil Nadu government. We are aware of the inter-State problems involved over the project, but we can say there will not be any loss to Tamil Nadu because of the project,” the State said.
Resolve Palar water dispute through negotiations: Supreme Court (THe Hindu 31 March 2011)
Tamil Nadu filed a suit to restrain A.P. from constructing a check dam
Cites reports that say project would submerge at least eight villages
New Delhi: The Supreme Court has asked the Union Water Resources Ministry to explore the possibility of resolving the Palar river water dispute between Tamil Nadu and Andhra Pradesh through negotiations.
A Bench of Justices M.K. Sharma and Anil R. Dave, in a brief interim order, asked the Secretary, Ministry of Water Resources, to assist the parties in arriving at a negotiated settlement.
The Bench said: “After a preliminary hearing, it appears that there could be an amicable settlement to the disputes involved in the present case provided Secretary, Water Resources Ministry, convenes a meeting of all the stakeholders, including the Chairman, Central Water Commission (CWC) and representatives of the two States and holds a discussion with them.” The Bench directed that a report be submitted to the Court within eight weeks. In the meantime, the Bench said, “list of witnesses shall be filed by the parties.”
The Bench was hearing a suit filed by Tamil Nadu to restrain Andhra Pradesh from constructing the proposed check dam across the Palar. Tamil Nadu contended that the proposed dam near Kuppam would deprive people in the State of their lifeline — the Palar. It said that the proposed dam would be in violation of an 1892 agreement between riparian States, under which no water could be obstructed, diverted or stored upstream without the consent of the downstream State or region.
Tenders
Tamil Nadu alleged that Andhra Pradesh was reported to have proceeded to call for tenders for the construction of the dam and the former Chief Minister of Andhra Pradesh had stated that the State would proceed with the construction.
The unilateral action by the State in proceeding with the construction of the dam, without furnishing the information and taking the concurrence of Tamil Nadu, was totally illegal, it said and sought a direction to restrain Andhra Pradesh from proceeding with the construction.
Andhra Pradesh strongly refuted Tamil Nadu's allegations, saying no such work was currently going on at the site and that certain designs related to the dam had been prepared so far. “We have shared the designs with the Tamil Nadu government. We are aware of the inter-State problems involved over the project, but we can say there will not be any loss to Tamil Nadu because of the project,” the State said.
Cites reports that say project would submerge at least eight villages
New Delhi: The Supreme Court has asked the Union Water Resources Ministry to explore the possibility of resolving the Palar river water dispute between Tamil Nadu and Andhra Pradesh through negotiations.
A Bench of Justices M.K. Sharma and Anil R. Dave, in a brief interim order, asked the Secretary, Ministry of Water Resources, to assist the parties in arriving at a negotiated settlement.
The Bench said: “After a preliminary hearing, it appears that there could be an amicable settlement to the disputes involved in the present case provided Secretary, Water Resources Ministry, convenes a meeting of all the stakeholders, including the Chairman, Central Water Commission (CWC) and representatives of the two States and holds a discussion with them.” The Bench directed that a report be submitted to the Court within eight weeks. In the meantime, the Bench said, “list of witnesses shall be filed by the parties.”
The Bench was hearing a suit filed by Tamil Nadu to restrain Andhra Pradesh from constructing the proposed check dam across the Palar. Tamil Nadu contended that the proposed dam near Kuppam would deprive people in the State of their lifeline — the Palar. It said that the proposed dam would be in violation of an 1892 agreement between riparian States, under which no water could be obstructed, diverted or stored upstream without the consent of the downstream State or region.
Tenders
Tamil Nadu alleged that Andhra Pradesh was reported to have proceeded to call for tenders for the construction of the dam and the former Chief Minister of Andhra Pradesh had stated that the State would proceed with the construction.
The unilateral action by the State in proceeding with the construction of the dam, without furnishing the information and taking the concurrence of Tamil Nadu, was totally illegal, it said and sought a direction to restrain Andhra Pradesh from proceeding with the construction.
Andhra Pradesh strongly refuted Tamil Nadu's allegations, saying no such work was currently going on at the site and that certain designs related to the dam had been prepared so far. “We have shared the designs with the Tamil Nadu government. We are aware of the inter-State problems involved over the project, but we can say there will not be any loss to Tamil Nadu because of the project,” the State said.
Subscribe to:
Posts (Atom)