मेरठ : एनसीआर प्लानिंग बोर्ड की परछाई के बावजूद मेरठ में प्रदूषण नियंत्रण के लिए मेट्रो के कोई मानक अपनाए नहीं जा रहे हैं। नदियां भयावह स्तर तक जहरीली हो चुकी हैं, जबकि भूगर्भ जल में धीरे-धीरे भारी रासायनिक तत्वों की उपस्थिति दर्ज होने लगी है। पांच जिलों के मध्य बंटी हरियाली को विवादों की छाया निगल रही है। ई-कचरे की भयावहता से प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अंजान है। विशेषज्ञों की मानें तो आगामी दस वर्षो में मेरठ में प्रदूषण असाध्य स्तर तक पहुंच जाएगा।
जहर बना जीवनदायी जल
नदियों में औद्योगिक कचरों की खतरनाक उपस्थिति है। काली नदी पूर्वी एवं पश्चिमी में सैकड़ों उद्योगों का कचरा शोधन किए बगैर ही डाला जा रहा है। जिन उद्योगों में ईटीपी प्लांट लगे हैं, उनमें से 70 फीसदी खराब पड़े हैं। वाहन चेसिस, कैंची, बैंड, ज्वैलरी एवं लाइट इंजीनियरिंग सेक्शन में इलेक्ट्रोप्लेंटिंग में विश्व में प्रतिबंधित भयावह रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है। नीर फाउंडेशन के निदेशक रमन त्यागी की आरटीआइ से खुलासा हुआ कि परिक्षेत्र में चल रही कुल 31 औद्योगिक इकाइयों में से रोजाना करीब 95 हजार किलोलीटर भूगर्भ जल निकाला जा रहा है। 42 हजार किलोलीटर पानी काली नदी पूर्वी में गिराया जा रहा है। कमेलों से 1130 किलोलीटर अवशिष्ट नदी में डाला जा रहा है।
हरे-भरे वादे, रुखे-सूखे काम
वर्ष 2011 जून में आठ सरकारी विभागों ने बरसात के दौरान सघन पौधरोपण कर पर्यावरण को हरा-भरा करने की हुंकार भरी, किंतु दिसंबर तक इनमें से छह विभागों ने एक भी पौधा नहीं लगाया।
विभाग लक्ष्य रोपे गए पौधे
ग्राम्य विकास 1,31,950 1,310 486
ऊर्जा विभाग 2600 1475
उद्योग विभाग 9750 3250
आवास एवं शहरी 65,000 40,500
नियोजन
लोक निर्माण 8450 7500
भूमि एवं जल संशोधन 3900 2210
वन विभाग 1,78,100 2,14,947
सूख चुके हैं 30 फीसदी पौधे
मनरेगा के कारण फंड मिलने में देरी से हरियाली बचाने में दिक्कत आई। वन विभाग को पहली किस्त में सिर्फ 23 लाख रुपये मिले, जबकि करीब दो करोड़ का बजट तय हुआ था।
ये कहते हैं अधिकारी
जिला वन अधिकारी ललित वर्मा का कहना है कि वन विभाग को कैंपा निधि से 39 लाख रुपये मिले हैं, जिसे हाइवे के किनारे पौधरोपण पर खर्च किया जाएगा।
ये कहते हैं संगठन
जनहित फाउंडेशन की निदेशक अनीता राणा कहती हैं कि वेस्ट की नदियां कचरे में तब्दील हो गई हैं। सरकारी विभागों को वाटर रिचार्ज एवं प्रकृति की सेहत बचाने को भागीरथ प्रयास का एजेंडा तैयार करना होगा।
ये कहते हैं डाक्टर
स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. किरन गुगलानी कहती हैं कि कंस्ट्रक्शन कारोबार वाली महिलाओं में रक्ताल्पता एवं क्षय रोग की आशंका बढ़ी है। घनी बस्तियों में दमे के रोगी मिल रहे हैं, जबकि हवा में सीसे एवं सल्फर की भयावह मात्रा में स्त्रियों की गर्भधारण क्षमता में कमी आई है।
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