केदार दत्त, देहरादून: एक दशक पहले पौड़ी जनपद की जिस गाडखर्क पहाड़ी से हरियाली ने मुंह मोड़ लिया था, आज वह न सिर्फ हरे-भरे जंगल में तब्दील हो गई है, बल्कि पहाड़ी से एक गाड-गंगा भी अवतरित हो गई। बदलाव की यह बयार यूं ही नहीं बही, गाडखर्क को यह ‘वरदान’ आधुनिक भगीरथ के रूप में आए सच्चिदानंद भारती के अथक प्रयासों ने दिया। पहाड़ी को हरभरा बनाने के लिए उन्होंने जल तलैयों की जो शुरुआत की थी, आज वह एक जल आंदोलन के रूप में बीरोंखाल व थलीसैण के दर्जनों गांवों के जंगलों को नवजीवन दे रही है।
दूधातोली लोक विकास संस्थान के संस्थापक सच्चिदानंद भारती तब इंटर कॉलेज उफरैंखाल में शिक्षक थे। यहां की वीरान रूखी-सूखी गाडखर्क पहाड़ी उनके मन को कचोटती थी। एक रोज उन्होंने पहाड़ी को हरा-भरा बनाने की ठानी और शुरू किया ‘पाणी राखो’ आंदोलन। पहाड़ी पर छोटे-छोटे जल तलैये बनाए गए। मेहनत रंग लाई और एक दशक के भीतर पहाड़ी हरियाली से लकदक हो गई। पहाड़ी पर बने हजारों जल तलैयों में वर्षा जल संजय होता गया और नीचे जा चुके जल स्रोत पुनर्जीवित हो उठे।
साथ ही, पहाड़ी से लगकर बहने वाला बरसाती गदेरा सदानीरा में तब्दील हो गया, जिसे नाम दिया गया ‘गाड गंगा’। सच्चिदानंद के कदम यहां नहीं थमे, उन्होंने पाणी राखो की अलख दूसरे गांवों में भी जगाने का काम शुरू किया। मुहिम के अगले चरण में उन्होंने जल तलैयों से एक कदम आगे जंगलों में जल कुएं बनाने के लिए लोगों को प्रेरित किया। इन्हीं जल कुओं की बदौलत एक करोड़ लीटर वर्षाजल का संचय होने से बीरोंखाल और थलीसैण के गाडखर्क, डांडखिल, दुम्लोट, भराड़ीधार, जंदरिया, तोल्यूं, मनियारगांव, कफलगांव, भरनौं, चौंडा समेत दर्जनभर गांवों से लगे जंगलों में हरियाली लौटने लगी है। जंगलों में 10 हजार जल कुएं बनाए गए हैं। कुओं के किनारे घास और विभिन्न प्रजातियों के पौधे भी लगाए गए हैं। श्री भारती के मुताबिक इस प्रयोग को और विस्तार देने की योजना है।
Thursday, April 19, 2012
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment