Tuesday, June 12, 2012

जलीय जंतु संरक्षण व प्राकृतिक जल शोधन जरूरी (Dainik Jagran Hamirpur 30 May 2012)

हमीरपुर, कार्यालय संवाददाता : जीवनदायिनी नदियों को कूड़ाघर नागरिकों ने ही बनाया। बुद्धिजीवियों ने कोई पहल नहीं की कि उन्हें समझा-बुझाकर रोका जाता, वर्ना आज जिले की प्रमुख बेतवा और यमुना नदियों का जल जितना दूषित है, उतना नहीं होता। बेतवा नदी में हमीरपुर नगर का गंदा पानी बड़े देव बाबा और पुराना पिचेन घाट के पास गिराया जाता है तो यमुना नदी में पातालेश्वर का गंदा नाला, बगल में शमशान घाट में अधजली लाशें और लावारिस लाशों को डालकर यमुना जल को दूषित किया जा रहा है। साल में दो बार नवरात्रि के मौके पर 300 से 400 देवी प्रतिमाओं को यमुना में विसर्जित किया जाता है, वहीं मुसलमानों के ताजिया भी सुपुर्दे आब भी यहीं होते हैं, जो यमुना जल को दूषित कर रखे हैं। पर्यावरण प्रेमी श्यामकिशोर सिंह का कहना है कि कभी बेतवा नदी का पानी इतना निर्मल होता था कि उसमें फेंका गया पैसा दूर से दिखाई पड़ता था। आज नदियों का पानी अपना स्वरुप छोड़ चुका है। इसके लिए जरुरत है जागरुकता की कि देवी प्रतिमाओं को नदियों में विसर्जित न किया जाए, वहीं अधजली और लावारिस लाशों को भी नदियों में न फेंका जाए। नदियों पर स्वच्छता और सुरक्षा पर काम कर रहे आरएस टैगोर कहना है कि नदियों के किनारे रहने वाले लोगों को जागरुक किया जाए कि यह नदियां तुम्हारे लिए मां के बराबर है जो अच्छी फसल के साथ पेयजल सिंचाई की सुविधा दिलाती है। बेतवा और यमुना नदी में आधा दर्जन लघु डाल सिंचाई की योजनाएं भी चल रही है, मगर जब नदियों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। तो इन नहरों का क्या होगा। पर्यावरणविद एवं 90 के दशक में बुंदेलखंड इकाई डब्लूडब्लू एफ को अपनी सेवाएं दे चुके जलीस खान का कहना है कि नदियों में प्राकृतिक जल शोधन सामग्री व गंबूजिया मछली प्रजाति के जलीय जंतु, जो कि नदी में आने वाली गंदगी का भक्षण कर इसकी शुद्धता बनाने में सहायक थे, वहीं इसमें मौजूद मौरंग फिल्टर का काम करती थी, जिनके अभाव में न केवल नदी प्रदूषित हो रही है, लाइफ लाइन कही जाने वाली नदियों में जल स्तर समाप्त की ओर है। मौरंग और जलीय जंतु बुंदेलखंड क्षेत्र में भूगर्भ जल को बचाए रखने में अहम किरदार अदा करती है। नदियों में यदि पानी न रहा तो न हैंडपंप रहेंगे, न प्राचीन कुएं, न तालाब न जंगलों में पोखर। इसके लिए जरुरी है कि वर्षा जल संचयन की योजनाओं को छोटे से देश इजराइल की तर्ज पर रोकने के प्रयास जन सहभागिता के आधार पर किए जाएं, जैसा कि 90 के दशक में जबकि भारतीय दूतावास तेलअबीब में स्थापित हुआ था और वहां तैनात पहले भारतीय उच्चायुक्त पीके सिंह ने अपनी पहली तिमाही रिपोर्ट में इजराइल की कृषि और वर्षा जल संचयन योजनाओं को एक माडल के तौर पर अपनाने पर विशेष जोर दिया था कि जहां घास नहीं उगती थी, वहां हरियाली है, जहां पानी नहीं मिलता था, वहां पर्याप्त पानी मौजूद है, और यही इजराइल की तरक्की की बुनियाद भी है। इसलिए यदि बुंदेलखंड की नदियों को इनकी पूर्व की स्थिति में लाना है, तो प्रबंधन युक्त और पर्यावरण के हित को ध्यान में रखते हुए सीमित मौरंग खनन एवं यहां की प्राकृतिक मछलियों एवं जलीय जीवों का का संरक्षण नितांत आवश्यक है।

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