पूनम पाण्डे॥ नई दिल्ली: पालम ड्रेन की सफाई अब बैक्टीरिया करेंगे। इससे ड्रेन का पानी इस हद तक साफ हो जाएगा कि उसे सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। पालम ड्रेन आगे जाकर नजफगढ़ ड्रेन में गिरती है और नजफगढ़ ड्रेन यमुना में। डीडीए ने इसके लिए टेंडर निकाले हैं। इंटैक की निगरानी में यह काम होगा।
बायो रेमिडिएशन टेक्निक के जरिए पालम ड्रेन की सफाई होगी। इंटैक के अधिकारी ने बताया कि इसमें पानी में धीरे-धीरे बैक्टीरिया छोड़े जाते हैं। यह बैक्टीरिया पानी की सफाई करते हैं। एक सोर्स से बैक्टीरिया लगातार पानी में मिलते हैं और नाले के साथ ही आगे बढ़ते जाते हैं। इस तरह बैक्टीरिया की संख्या भी बढ़ती जाती है और पानी साफ होता है। इंटैक इस तरह का पायलट प्रोजेक्ट कुशक नाला पर कर चुका है, जो काफी सफल रहा। इंटैक ने पहले बायो रेमिडिएशन के जरिए नालों की सफाई करने का प्रपोजल दिल्ली जल बोर्ड को दिया था। लेकिन इस पर कुछ हुआ नहीं। अब डीडीए ने पालम ड्रेन साफ करने के लिए इस तरीके को अपनाया है।
इंटैक अधिकारी ने बताया कि यह 3 से 5 साल तक का प्रोजेक्ट होगा। बैक्टीरिया के जरिए ड्रेन का पानी साफ होगा और चाहें तो इसे सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इस तरीके से नाले की सफाई करना पारंपरिक तरीके से काफी सस्ता बैठता है। जैसे पालम ड्रेन की सफाई बायो रेमिडिएशन से करने और पारंपरिक तरीके से करने में लागत में करीब 6 गुना का अंतर आएगा। बायो रेमिडिएशन तरीका 6 गुना सस्ता पड़ेगा। जैसे इस तरीके में कैपिटल कॉस्ट करीब 12 करोड़ रुपये आएगी। इसमें नालों के किनारे सुधारे जाएंगे और आसपास की गंदगी साफ की जाएगी। ऑपरेशंस और मेंटिनेंस का खर्च करीब 3 करोड़ रुपये आएगा। अगर पारंपरिक तरीके से नाला साफ करना चाहे तो कैपिटल कॉस्ट 75 करोड़ रुपये आएगी और जमीन की लागत अलग से। जिस जमीन पर ट्रीटमेंट प्लांट बनाया जाएगा। ऑपरेशंस और मेंटेनेंस का खर्च करीब 9 करोड़ रुपये होगा साथ ही बहुत ज्यादा बिजली भी खर्च होगी। साल में कम से कम 10 मिलियन किलोवॉट बिजली इस्तेमाल होगी। पारंपरिक तरीके में नाले को ट्रीटमेंट प्लांट में ले जाकर साफ किया जाता है और फिर ट्रीटेड पानी बाहर आ जाता है।
दिल्ली जल बोर्ड यमुना को साफ करने के लिए पारंपरिक तरीका ही इस्तेमाल कर रहा है। वह इंटरसेप्टर प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। इसके तहत यमुना में गिरने वाले नालों को रोककर उन्हें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ले जाया जाएगा। यहां ट्रीट होने के बाद इन नालों को फिर बड़े नालों में छोड़ा जाएगा और तब नालों से जो पानी यमुना में गिरता है वह ट्रीटेड होगा। अगर नालों की सफाई बायो रेेमिडिएशन तरीके से की जाती तो यह काफी सस्ता पड़ता। पानी दोनों तरीके से लगभग बराबर ही साफ होगा। जल बोर्ड मान रहा है कि इंटरसेप्टर प्रोजेक्ट से यमुना पूरी तरह साफ नहीं होगी और यमुना का पानी नहाने लायक नहीं होगा। यह बस सिंचाई के लायक ही होगा। इंटैक के मुताबिक बैक्टीरिया से पालम ड्रेन को साफ करने के बाद उसका पानी भी सिंचाई के लायक हो जाए गा।
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