बिजाई, खाद और कीटनाशक का सारा खर्च खत्म, मध्य प्रदेश के किसान कुदरती खेती के जरिए खेती कर कमा रहे हैं मुनाफा भास्कर न्यूज त्न यमुनानगर
खेती का यह तरीका जड़ की ओर लौटने जैसा तो है। पर इसमें किसान की समृद्धि का राज छुपा है। कम से कम वह कुदरती खेती कर कर्ज से जंजाल से तो निजात पा ही सकता है। हरित क्रांति के नाम पर जमीन को जो जख्म मिले। कुदरती खेती इन जख्मों पर मरहम की तरह है। विशेषज्ञ इसे वक्त की जरू तर बता रहे हैं। क्योंकि इनका मानना है तभी किसान कर्ज के जंजाल से निजात पा सकता है। इसी विषय को लेकर पीस इंस्टीट्यूट चेरिटेबल ट्रस्ट की ओर से कनालसी गांव में दो दिवसीय कुदरती खेती पर सेमिनार आयोजित किया। शनिवार को इस कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। कार्यक्रम में पीस के निदेशक मनोज मिश्रा ने बताया कि कुदरती खेती वास्तव में हमारी विरासत है। यह अलग बात है कि वक्त के साथ हम इसे भूल गए। इसी तरीके से जापान के जीव वैज्ञानिक मासानोबू फुकुओका ने कृषि की। जो बेहद सफल रही।
मध्य प्रदेश के किसान कर रहे सफलतापूर्वक खेती : मध्य प्रदेश के ओसंगाबाद के किसान राजू टाइट्स कुदरती खेती कई साल से कर रहे हैं। कार्यक्रम में उन्होंने जब अपनी प्रस्तुति दी तो यहां के लोगो को एक बार तो उनकी बात पर यकीन ही नहीं हुआ। किसान पूछ बैठे। क्या यह संभव है। बिलकुल। मैं आपके सामने उदाहरण हूं। उन्होंने अपनी प्रस्तुति में फोटो और अन्य दस्तावेज लेकर आए।
क्या है कुदरती खेती : इसमें खेत की बुहाई नहीं होती। पेड़ पौधे व फसल को उसकी प्राकृतिक अवस्था में रहने दिया जाता है। यहां तक की पेड़ की शाखा की कटाई भी नहीं की जाती। बस सब कुछ वैसा ही रखा रहने दिया जाता है। जैसा वह होता है। बीज हाथ से रोपे जाते हैं। कई बार जमीन में हल्का खड्ढा खोद कर इसमें बीज लगा दिया जाता है।
कैसे काम होता है : मनोज मिश्रा के अनुसार जब हम बुहाई करते हैं तो बहुत से जीवाणु बरसात के पानी के साथ बह जाते हैं। यहीं वास्तव में खेत की जान है। जब हम कुदरती खेती करते हैं तो जीवाणु स्वयं सक्रिय हो जाते हैं। वे ही सारा काम प्राकृतिक तरीके से करते हैं। बस यहीं इस खेती की सफलता का राज है।
संभव है : विशेषज्ञों के अनुसार यह संभव है। कुछ आदिवासी कबीले भी इसी तरह से खेती कर रहे हैं। मनोज मिश्रा के अनुसार ट्रैक्टर से जब खेत की बुहाई होती है तो जमीन की प्राकृतिक संरचना टूटती है। वास्तव में जमीन का अपना एक चक्र है। जो जीवाणु, हरीखाद व केंचुओं पर निर्भर है। यह सब कुछ स्वयं ही होता रहता है।
80 प्रतिशत तक खर्च कम : किसान फसल की कुल लागत का चालीस प्रतिशत तक तो बुहाई पर लगा देता है। इसके बाद खाद और कीटनाशक बचते हैं। राजू टाइट्स के अनुसार किसान का काफी पैसा तो खरपतवार को खत्म करने में ही लग जाता है। कुदरती खेती में खरपतवार के साथ किसान की दोस्ती की बात करते है। खरपतवार ही फसल बढ़ाने में मदद करता है। क्योंकि इसकी छाया में जीवाणु खूब पनपते हैं।
उत्पादन पर अधिक असर नहीं : मनोज मिश्रा के अनुसार एक दो साल हो सकता है कुछ उत्पादन पर असर पड़े। लेकिन कुछ समय के बाद उत्पादन ठीक हो जाता है। इतना ही नहीं इस तरीके से तैयार फसल की गुणवत्ता भी कुदरती होती है। जो सेहत व स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक साबित होती है।
कुदरती खेती के सेमिनार को संबोधित करते विशेषज्ञ राजू टाइटस
एक तिनके से आई क्रांति ने लाया बदलाव
राजू टाइट्स ने अपनी बातचीत में बताया कि वास्तव में उनके हाथ मासानोबू फुकुओका की किताब का हिंदी वर्जन हाथ लग गया। एक तिनके से आई क्रांति पढ़ कर वे कुदरती खेती में लग गए। इस वक्त वे सफलतापूर्वक खेती कर रहे है। उनका कहना है कि यह खेती हर किसान को करनी चाहिए। इससे कृषि का 70 से 80 प्रतिशत तक खर्च बचाया जा सकता है।
विधि
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