Monday, December 19, 2011

यमुना नहर को साफ रखने के लिए जुड़ता गया कारवां (Dainik Bhaskar Yamunanagar 19 December 2011)

यह था यमुना एक्शन प्लान
कोल इंडिया से सेवा निवृत्त आदित्य ने उठाया यमुना नहर को साफ करने का बीड़ा
यमुना एक्शन प्लान के तहत 17.1 बिलियन यान खर्च कर भी जो काम अधूरा रहा, जिस काम को सरकार और कोई एनजीओ नहीं कर पाई। उस काम को अकेला आदमी पूरा करने में लगा है।
यमुना नहर में अंगद की पांव तरह जमीं गंदगी को साफ करने का बीड़ा उठाया है कोल इंडिया से डीजीएस पद से सेवानिवृत्त आदित्य ने और काफी हद तक वो इसे साफ करने में सफल भी हो रहे हैं। उन्होंने इस दिशा में ध्यान देना शुरू किया। यमुना की सफाई के लिए वे किसी संगठन, सरकार या एनजीओ के पास नहीं गए। बस खुद ही जुट गए। जितना कर सकते थे, किया। शुरुआत में दिक्कत आई। हर रोज दो सेशन में यमुना नहर के घाट की सफाई शुरू की। गंदगी जमा कराना। उसे सुखना फिर जलाना। अब उनकी दिनचर्या का हिस्सा बना हुआ है।
लोग भी हो रहे जागरूक : आदित्य यहां की सफाई तो करते हैं, इसके साथ ही गंदगी डालने वालों से बातचीत भी करते हैं। उन्हें बताते हैं कि यहां श्रद्धालु स्नान करने आते हैं। पूजा करते हैं। ऐसे में यहां गंदगी होगी तो कैसा लगेगा।

बस यह चंद शब्द ही लोगों को यहां गंदगी न डालने के प्रति प्रेरित करने के लिए काफी है। आदित्य ने बताया कि वास्तव में यहां लोग बड़ी मात्रा में पूजा सामग्री डालते हैं। स्नान के बाद कपड़े भी यहां छोड़ जाते हैं। इस वजह से यहां गंदगी भरा माहौल हो जाता है। यह पानी दिल्ली और दक्षिण हरियाणा में पीने के लिए प्रयोग किया जाता है। उनका मानना है कि लोग अब जागरूक होने लगे हैं।
नहर है आस्था की प्रतीक: उल्लेखनीय है कि हथनीकुंड बैराज पर यमुना नदी का पानी पश्चिमी यमुना नहर में डाल दिया जाता है। ऐसे में यमुना नदी यमुनानगर में सूखी है। लोग अपने धार्मिक अनुष्ठान भी नहर किनारे ही करने लगे हैं। इसलिए यह नहर ही आस्था की प्रतीक है।
आदित्य के अनुसार शुरूआत में तो लोग उनकी बात सुनने के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन जब वे लगातार इस सफाई के काम में लगे रहे तो लोगों ने भी इसमें रूचि लेने लगे। अब उनकी योजना है कि स्कूली बच्चों व प्रशासन को साथ जोड़ा जाए। आदित्य के मुताबिक यदि यमुना किनारे कुछ डस्टबिन रख दिए जाए तो यह समस्या काफी हद तक दूर हो सकती है। अब लोग मानने लगे कि यमुना में सामग्री डालना सही नहीं हैं।
आदित्य मूलत : इंदौर से हैं। यमुनानगर उनका ससुराल है। इस वजह से उनका नगर में आना जाना लगा रहता था। यमुना की खूबसूरती ने उन्हें इंदौर छोड़ विवश कर दिया। लेकिन जब नहर के हालात देखे तो वे काफी दुखित हुए। यहीं से उन्होंने इसके जीर्णोद्धार के लिए काम करना शुरू किया। शुरुआत में इधर उधर हाथ पांव मारने के बावजूद भी कोई बात नहीं बनी। फिर खुद ही ठान लिया। सुबह साढ़े छह बजे से नौ बजे तक और शाम को साढ़े छह से आठ बजे तक दोनों पहर वे घाट पर जाते हैं। जितनी भी गंदगी मिलती है। साफ करते हैं।
निदेशालय राष्ट्रीय नदी सरंक्षण, पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार ने जापान के सहयोग से यमुना एक्शन प्लान चलाया था। जापान बैंक और इंटरनेशनल ने 17.7 बिलियन येन की मदद दी थी। यमुना एक्शन प्लान का उद्देश्य था कि नहर व नदी को प्रदूषण मुक्त किया जाए। यह काम 2000 तक पूरा हो जाना था। समय पर काम पूरा न होने की वजह से यह काम फरवरी 2003 तक पूरा हुआ। काम पूरा हो गया, लेकिन गंदगी अभी भी बरकरार है। इसकी वजह यह है कि लोगों में अभी इसके प्रति जागरुकता का अभाव बना हुआ है। फिलहाल लोगों में ण्क शुरूआत हुई है जो हर लिहाज से बेहतर माना जा रहा है।

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