Chief Minister opens work on interceptor sewers in Nangloi
Delhi's dream of a clean Yamuna got a step closer to realisation on Thursday when work for laying interceptor sewers was inaugurated in the presence of Chief Minister Sheila Dikshit at Nihal Vihar under the Nangloi segment of the Delhi Assembly.
Speaking on the occasion, Ms. Dikshit described it “as a historic moment” which will go a long way in reviving the glory of the Yamuna. Referring to the interceptor sewer proposal, she said the work has been finalised in consultation with the Planning Commission and Engineers India Limited has been appointed as project management consultant for implementation of the project which will cost Rs.1,978 crore.
The cost includes 11 years operations and maintenance of the entire system of interceptor sewer apart from the capital cost.
Work on the sewers will begin on Friday and is expected to be complete by 2014. Ms. Diskhit, who is also the chairperson of the Delhi Jal Board that has been mandated to carry out the work, said with the interceptors in place, the river will become pollution-free within the next couple of years and its quality will improve from 41 ppm to 12 ppm.
She said the quality will further improve downstream and the treated effluent will be utilised for non potable purposes, and sewage from areas with no sewer connections will be trapped and prevented form entering the Yamuna.
Pointing out that dumping solid waste and garbage, entry of untreated waste water, addition of industrial effluent, litter, plastic and polythene add to the pollution in the river, Ms. Dikshit exhorted all stake-holders to work in tandem and ensure completion of their responsibilities assigned under the interceptor sewer project.
The MCD is supposed to prevent dumping of garbage in drains and the river besides desilting and fencing of drains, the Irrigation and Flood Control Department has been assigned to de-silt and channelise drains, the DDA has also been asked to ensure that the riverbank is free of squatters and the DSIIDC will have to ensure the treatment of all industrial effluent through its CETPs before discharge, while the Delhi Pollution Control Committee is supposed to monitor various water quality parameters in the river, the Chief Minister pointed out.
She said the new sewer treatment plants will be put up after the existing capacity of STPs is fully utilised. The work has been awarded to three different agencies for completing it in a time-bound manner.
Sewers of 59 km length, 20 to 60 feet depth and sizes ranging from 24 mm to 600 mm diameter will be laid along the three major drains to intercept sewage flowing from subsidiary small drains and convey it to the nearest STP to ensure that only treated sewage is discharged.
Monday, December 26, 2011
पालम ड्रेन की सफाई करेगा बैक्टीरिया (Navbharat Times 22 December 2011)
पूनम पाण्डे॥ नई दिल्ली: पालम ड्रेन की सफाई अब बैक्टीरिया करेंगे। इससे ड्रेन का पानी इस हद तक साफ हो जाएगा कि उसे सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। पालम ड्रेन आगे जाकर नजफगढ़ ड्रेन में गिरती है और नजफगढ़ ड्रेन यमुना में। डीडीए ने इसके लिए टेंडर निकाले हैं। इंटैक की निगरानी में यह काम होगा।
बायो रेमिडिएशन टेक्निक के जरिए पालम ड्रेन की सफाई होगी। इंटैक के अधिकारी ने बताया कि इसमें पानी में धीरे-धीरे बैक्टीरिया छोड़े जाते हैं। यह बैक्टीरिया पानी की सफाई करते हैं। एक सोर्स से बैक्टीरिया लगातार पानी में मिलते हैं और नाले के साथ ही आगे बढ़ते जाते हैं। इस तरह बैक्टीरिया की संख्या भी बढ़ती जाती है और पानी साफ होता है। इंटैक इस तरह का पायलट प्रोजेक्ट कुशक नाला पर कर चुका है, जो काफी सफल रहा। इंटैक ने पहले बायो रेमिडिएशन के जरिए नालों की सफाई करने का प्रपोजल दिल्ली जल बोर्ड को दिया था। लेकिन इस पर कुछ हुआ नहीं। अब डीडीए ने पालम ड्रेन साफ करने के लिए इस तरीके को अपनाया है।
इंटैक अधिकारी ने बताया कि यह 3 से 5 साल तक का प्रोजेक्ट होगा। बैक्टीरिया के जरिए ड्रेन का पानी साफ होगा और चाहें तो इसे सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इस तरीके से नाले की सफाई करना पारंपरिक तरीके से काफी सस्ता बैठता है। जैसे पालम ड्रेन की सफाई बायो रेमिडिएशन से करने और पारंपरिक तरीके से करने में लागत में करीब 6 गुना का अंतर आएगा। बायो रेमिडिएशन तरीका 6 गुना सस्ता पड़ेगा। जैसे इस तरीके में कैपिटल कॉस्ट करीब 12 करोड़ रुपये आएगी। इसमें नालों के किनारे सुधारे जाएंगे और आसपास की गंदगी साफ की जाएगी। ऑपरेशंस और मेंटिनेंस का खर्च करीब 3 करोड़ रुपये आएगा। अगर पारंपरिक तरीके से नाला साफ करना चाहे तो कैपिटल कॉस्ट 75 करोड़ रुपये आएगी और जमीन की लागत अलग से। जिस जमीन पर ट्रीटमेंट प्लांट बनाया जाएगा। ऑपरेशंस और मेंटेनेंस का खर्च करीब 9 करोड़ रुपये होगा साथ ही बहुत ज्यादा बिजली भी खर्च होगी। साल में कम से कम 10 मिलियन किलोवॉट बिजली इस्तेमाल होगी। पारंपरिक तरीके में नाले को ट्रीटमेंट प्लांट में ले जाकर साफ किया जाता है और फिर ट्रीटेड पानी बाहर आ जाता है।
दिल्ली जल बोर्ड यमुना को साफ करने के लिए पारंपरिक तरीका ही इस्तेमाल कर रहा है। वह इंटरसेप्टर प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। इसके तहत यमुना में गिरने वाले नालों को रोककर उन्हें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ले जाया जाएगा। यहां ट्रीट होने के बाद इन नालों को फिर बड़े नालों में छोड़ा जाएगा और तब नालों से जो पानी यमुना में गिरता है वह ट्रीटेड होगा। अगर नालों की सफाई बायो रेेमिडिएशन तरीके से की जाती तो यह काफी सस्ता पड़ता। पानी दोनों तरीके से लगभग बराबर ही साफ होगा। जल बोर्ड मान रहा है कि इंटरसेप्टर प्रोजेक्ट से यमुना पूरी तरह साफ नहीं होगी और यमुना का पानी नहाने लायक नहीं होगा। यह बस सिंचाई के लायक ही होगा। इंटैक के मुताबिक बैक्टीरिया से पालम ड्रेन को साफ करने के बाद उसका पानी भी सिंचाई के लायक हो जाए गा।
बायो रेमिडिएशन टेक्निक के जरिए पालम ड्रेन की सफाई होगी। इंटैक के अधिकारी ने बताया कि इसमें पानी में धीरे-धीरे बैक्टीरिया छोड़े जाते हैं। यह बैक्टीरिया पानी की सफाई करते हैं। एक सोर्स से बैक्टीरिया लगातार पानी में मिलते हैं और नाले के साथ ही आगे बढ़ते जाते हैं। इस तरह बैक्टीरिया की संख्या भी बढ़ती जाती है और पानी साफ होता है। इंटैक इस तरह का पायलट प्रोजेक्ट कुशक नाला पर कर चुका है, जो काफी सफल रहा। इंटैक ने पहले बायो रेमिडिएशन के जरिए नालों की सफाई करने का प्रपोजल दिल्ली जल बोर्ड को दिया था। लेकिन इस पर कुछ हुआ नहीं। अब डीडीए ने पालम ड्रेन साफ करने के लिए इस तरीके को अपनाया है।
इंटैक अधिकारी ने बताया कि यह 3 से 5 साल तक का प्रोजेक्ट होगा। बैक्टीरिया के जरिए ड्रेन का पानी साफ होगा और चाहें तो इसे सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इस तरीके से नाले की सफाई करना पारंपरिक तरीके से काफी सस्ता बैठता है। जैसे पालम ड्रेन की सफाई बायो रेमिडिएशन से करने और पारंपरिक तरीके से करने में लागत में करीब 6 गुना का अंतर आएगा। बायो रेमिडिएशन तरीका 6 गुना सस्ता पड़ेगा। जैसे इस तरीके में कैपिटल कॉस्ट करीब 12 करोड़ रुपये आएगी। इसमें नालों के किनारे सुधारे जाएंगे और आसपास की गंदगी साफ की जाएगी। ऑपरेशंस और मेंटिनेंस का खर्च करीब 3 करोड़ रुपये आएगा। अगर पारंपरिक तरीके से नाला साफ करना चाहे तो कैपिटल कॉस्ट 75 करोड़ रुपये आएगी और जमीन की लागत अलग से। जिस जमीन पर ट्रीटमेंट प्लांट बनाया जाएगा। ऑपरेशंस और मेंटेनेंस का खर्च करीब 9 करोड़ रुपये होगा साथ ही बहुत ज्यादा बिजली भी खर्च होगी। साल में कम से कम 10 मिलियन किलोवॉट बिजली इस्तेमाल होगी। पारंपरिक तरीके में नाले को ट्रीटमेंट प्लांट में ले जाकर साफ किया जाता है और फिर ट्रीटेड पानी बाहर आ जाता है।
दिल्ली जल बोर्ड यमुना को साफ करने के लिए पारंपरिक तरीका ही इस्तेमाल कर रहा है। वह इंटरसेप्टर प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। इसके तहत यमुना में गिरने वाले नालों को रोककर उन्हें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ले जाया जाएगा। यहां ट्रीट होने के बाद इन नालों को फिर बड़े नालों में छोड़ा जाएगा और तब नालों से जो पानी यमुना में गिरता है वह ट्रीटेड होगा। अगर नालों की सफाई बायो रेेमिडिएशन तरीके से की जाती तो यह काफी सस्ता पड़ता। पानी दोनों तरीके से लगभग बराबर ही साफ होगा। जल बोर्ड मान रहा है कि इंटरसेप्टर प्रोजेक्ट से यमुना पूरी तरह साफ नहीं होगी और यमुना का पानी नहाने लायक नहीं होगा। यह बस सिंचाई के लायक ही होगा। इंटैक के मुताबिक बैक्टीरिया से पालम ड्रेन को साफ करने के बाद उसका पानी भी सिंचाई के लायक हो जाए गा।
Thursday, December 22, 2011
Clean environment empowers society: Kalam (Hindu New paper 21 December 2011)
Keeping in mind that the hospitality and tourism industry requires convergence of efforts for achieving targeted delivery, the Union Tourism Ministry organised an all-India workshop on “Campaign Clean India” here on Tuesday.
Inaugurating the workshop, former President A. P. J. Abdul Kalam said clean environment empowers society. He suggested that the cleanliness drive should be extended to places of worship as a large number of people gather there.
Referring to the Maldives model of tourism, the former President said India can study this model and evolve a total package of turnkey tourist systems to be developed by tourist system partners. These should include maintenance and upkeep of tourist destinations. He also suggested involvement of village panchayats and local self bodies in the campaign.
Presiding over the workshop, Union Tourism Minister Subodh Kant Sahai said cleanliness and proper hygiene were universally regarded as indispensable existential norms that must inform and permeate all our actions.
“However, a consciousness in terms of education, demonstration and training is required to be created to ensure that these norms become part of a national psyche, at home and outside it. Conversely, lack of or inadequate personal and environmental cleanliness will have a pull-down impact on the image of the county, the worst hit being the tourism sector where the first impression of a visitor is often his last.”
Noting that the Ministry of Tourism visualises an India that impacts a visitor for its cleanliness and hygiene, Mr. Sahai said the workshop brought together individuals and institutions representing varied interests but their quest was common -- to see the country clean.
Admitting that the cleanliness task will be an onerous one, the Union Tourism Minister said an independent study conducted at five tourist destinations has categorised hygiene and sanitation conditions, solid waste management and provision of hygienically maintained public amenities high in importance but low in satisfaction.
“The campaign will be expected to correct these weaknesses. The success of campaign may decide if the targeted growth specific to tourism would be achieved. This ultimately gets connected to job creations. The campaign is taken as a poverty alleviation strategy too.”
Mr. Sahai said his Ministry will finalise and plan the campaign strategy, incorporating the workshop recommendations by March 31, 2012. The implementation will start from April 1.
Former Union Minister Shatrughan Sinha and star of South Indian films Chiranjeevi offered their whole-hearted support to the campaign.
The “Campaign Clean India” seeks to ensure action at field level to bring our country's tourism destinations and their surroundings to an acceptable level of cleanliness and hygiene.
The campaign will be part of Government's strategy of the 12 {+t} {+h} Plan for improving the quality of services and environs in and around tourist destinations across India
Inaugurating the workshop, former President A. P. J. Abdul Kalam said clean environment empowers society. He suggested that the cleanliness drive should be extended to places of worship as a large number of people gather there.
Referring to the Maldives model of tourism, the former President said India can study this model and evolve a total package of turnkey tourist systems to be developed by tourist system partners. These should include maintenance and upkeep of tourist destinations. He also suggested involvement of village panchayats and local self bodies in the campaign.
Presiding over the workshop, Union Tourism Minister Subodh Kant Sahai said cleanliness and proper hygiene were universally regarded as indispensable existential norms that must inform and permeate all our actions.
“However, a consciousness in terms of education, demonstration and training is required to be created to ensure that these norms become part of a national psyche, at home and outside it. Conversely, lack of or inadequate personal and environmental cleanliness will have a pull-down impact on the image of the county, the worst hit being the tourism sector where the first impression of a visitor is often his last.”
Noting that the Ministry of Tourism visualises an India that impacts a visitor for its cleanliness and hygiene, Mr. Sahai said the workshop brought together individuals and institutions representing varied interests but their quest was common -- to see the country clean.
Admitting that the cleanliness task will be an onerous one, the Union Tourism Minister said an independent study conducted at five tourist destinations has categorised hygiene and sanitation conditions, solid waste management and provision of hygienically maintained public amenities high in importance but low in satisfaction.
“The campaign will be expected to correct these weaknesses. The success of campaign may decide if the targeted growth specific to tourism would be achieved. This ultimately gets connected to job creations. The campaign is taken as a poverty alleviation strategy too.”
Mr. Sahai said his Ministry will finalise and plan the campaign strategy, incorporating the workshop recommendations by March 31, 2012. The implementation will start from April 1.
Former Union Minister Shatrughan Sinha and star of South Indian films Chiranjeevi offered their whole-hearted support to the campaign.
The “Campaign Clean India” seeks to ensure action at field level to bring our country's tourism destinations and their surroundings to an acceptable level of cleanliness and hygiene.
The campaign will be part of Government's strategy of the 12 {+t} {+h} Plan for improving the quality of services and environs in and around tourist destinations across India
Walk at Okhla Barrage Bird Sanctuary today (Hindu 18 December 2011)
To create awareness about the need to save the city's bird species, avid bird watcher and Wildlife Preservation Society trustee Bikram Grewal will conduct a walk at the Okhla Barrage Bird Sanctuary at 7.30 a.m. on Sunday.
The walk seeks to encourage people from different walks of life to be more responsible when it comes to preserving the bird sanctuaries.
Boasting of a significant area of wetland, the Okhla Barrage Bird Sanctuary has been classified as an Important Bird Area and is home to over 20,000 water birds during winters.
Besides providing a breeding place to a variety of birds, the Okhla Barrage Bird Sanctuary also has extensive open water, reed beds and sandbanks.
Ecological degradation
Unfortunately, the variable flow of the Yamuna river means the number of birds is not always predictable. Another cause of concern is dumping of garbage that leads to ecological degradation.
A proficient author, Mr. Grewal's first book on Indian birds sold over 2,50,000 copies. He is also credited with writing several articles and papers on birds as well as on Indian wildlife.
He serves as a trustee of several wildlife-based institutions and is also acting as a consultant on eco-tourism.
The walk seeks to encourage people from different walks of life to be more responsible when it comes to preserving the bird sanctuaries.
Boasting of a significant area of wetland, the Okhla Barrage Bird Sanctuary has been classified as an Important Bird Area and is home to over 20,000 water birds during winters.
Besides providing a breeding place to a variety of birds, the Okhla Barrage Bird Sanctuary also has extensive open water, reed beds and sandbanks.
Ecological degradation
Unfortunately, the variable flow of the Yamuna river means the number of birds is not always predictable. Another cause of concern is dumping of garbage that leads to ecological degradation.
A proficient author, Mr. Grewal's first book on Indian birds sold over 2,50,000 copies. He is also credited with writing several articles and papers on birds as well as on Indian wildlife.
He serves as a trustee of several wildlife-based institutions and is also acting as a consultant on eco-tourism.
Wednesday, December 21, 2011
गंगा सफाई में यूपी ने खड़े किए हाथ (Dainik Jagran 22 December 2011)
लखनऊ, जागरण ब्यूरो: गंगा को वर्ष 2020 तक निर्मल करने का लक्ष्य फिलहाल पूरा होता नहीं दिख रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार के पास गंगा नदी की सफाई के लिए पर्याप्त धन नहीं है, इसलिए सरकार नदी सफाई से जुड़ी तमाम योजनाओं पर वह केवल दस फीसदी अंशदान ही दे पाएगी। नदी सफाई योजनाओं पर शेष 90 फीसद खर्च केंद्र सरकार को वहन करना पड़ेगा। नए पेंच के बाद गंगा सफाई से जुड़ी योजनाओं पर विराम लगता दिख रहा है। यह फैसला बुधवार को राज्य गंगा नदी संरक्षण प्राधिकरण की बैठक में लिया गया। लोक निर्माण मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी की अध्यक्षता में हुई बैठक में तय हुआ कि केंद्र सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को फैसले से अवगत करा दिया जाए। राष्ट्रीय नदी गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय गंगा नदी संरक्षण प्राधिकरण में यह तय किया गया था कि राज्य सरकार विभिन्न योजनाओं पर आने वाले खर्च का 30 फीसदी नदी सफाई पर वहन करेगी, जबकि 70 फीसदी अंश केंद्र का होगा। इसके तहत सात परियोजनाएं स्वीकृत भी की जा चुकी हैं जिन पर काम भी शुरू किया जा चुका है। इनमें मुरादाबाद, कन्नौज, गढ़मुक्तेश्वर व इलाहाबाद सहित वाराणसी की दो योजनाएं शामिल हैं। अब राज्य सरकार को यह कदम महंगा पड़ रहा है। कदम पीछे खींचते हुए उसने 30 फीसदी के स्थान पर दस फीसदी योगदान की हामी भरी है और गेंद केंद्र के पाले में डाल दी है। इसे देखते हुए गंगा को निर्मल करने की कोशिशों को फिलहाल झटका लग सकता है। पॉलीथीन प्रदूषण पर अंकुश न लगाने पर नसीमुद्दीन ने अधिकारियों को फटकार लगाई। उन्होंने नगर आयुक्त व जिलाधिकारियों को जिम्मेदारी याद दिलाते हुए कानून को प्रभावी तरीके से लागू कराने के निर्देश दिए।
यमुना किनारे सुनाई देगा पक्षियों का कलरव (Dainik Jagran 22 December 2011)
नई दिल्ली वह दिन दूर नहीं जब दिल्ली अपने पुराने समय में लौटेगी। यमुना के किनारे पक्षियों का कलरव गूंजेगा, भंवरों और मधु मक्खियों की गुंजन सुनाई देगी और इधर-उधर रंग-बिरंगी तितलियों का मंडराना देख सकेंगे। इसे यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क में दिल्ली विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक अंजाम देने जा रहे हैं। प्रयोग के तौर पर पहले फेज में बाहरी दिल्ली में 157 एकड़ में जिस बायोडायवर्सिटी पार्क को विकसित किया गया है वह प्रयोग सफल रहा है। इससे प्रभावित होकर उपराज्यपाल तेजेंद्र खन्ना ने इस योजना के दूसरे फेज में 300 एकड़ में शीघ्रता से काम करने के डीडीए और डीयू के अधिकारियों को निर्देश दिए हैं। यमुना डायवर्सिटी पार्क की योजना पर 2003 से काम शुरू किया गया था। यह कार्य डीडीए व दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फार इन्वायरमेंटल मैनेजमेंट आफ डिगरेटेड इको सिस्टम्स एक साथ मिल कर रहे हैं। इसके हेड डीयू के प्रोफेसर व देश के जाने माने इकोलोजिस्ट प्रो.सी आर बाबू हैं। उनके नेतृत्व में 7 वैज्ञानिकों की टीम व डीडीए अधिकारी योजना पर काम कर रहे हैं। योजना के तहत 457 एकड़ क्षेत्र में वैज्ञानिक आधार पर हरियाली विकसित की जानी है। इसमें पशु पक्षियों, जीव जंतुओं को जीवन भी मिल सके। पहले चरण में 157 एकड़ में बाहरी दिल्ली में कोरेनेशन पार्क के पास बायोडायवर्सिटी पार्क विकसित किया गया। इसमें 1.8 किमी में कृत्रिम झील विकसित की है। इसे भी पेड़-पौधे व मछलियों से सज्जित किया गया। इस पर काम कर रहे डीयू के कीट वैज्ञानिक मोहम्मद फैसल कहते हैं कि झील में अब प्रति वर्ष यहां पर 3 हजार से लेकर 5 हजार साइबेरियन पक्षी पहुंचते हैं। पूरे एनसीआर में यह ऐसी झील है जहां पर यूरोप से प्रति वर्ष 30 से लेकर 40 तक रेड क्रिस्टल आती हैं। अब हैं यहां 190 प्रजाति के पक्षी हैं। पहले यहां मात्र 2 प्रजाति की तितलियां थीं और अब 55 प्रजाति की तितलियां व इल्ली हैं।
Monday, December 19, 2011
यमुना नहर को साफ रखने के लिए जुड़ता गया कारवां (Dainik Bhaskar Yamunanagar 19 December 2011)
यह था यमुना एक्शन प्लान
कोल इंडिया से सेवा निवृत्त आदित्य ने उठाया यमुना नहर को साफ करने का बीड़ा
यमुना एक्शन प्लान के तहत 17.1 बिलियन यान खर्च कर भी जो काम अधूरा रहा, जिस काम को सरकार और कोई एनजीओ नहीं कर पाई। उस काम को अकेला आदमी पूरा करने में लगा है।
यमुना नहर में अंगद की पांव तरह जमीं गंदगी को साफ करने का बीड़ा उठाया है कोल इंडिया से डीजीएस पद से सेवानिवृत्त आदित्य ने और काफी हद तक वो इसे साफ करने में सफल भी हो रहे हैं। उन्होंने इस दिशा में ध्यान देना शुरू किया। यमुना की सफाई के लिए वे किसी संगठन, सरकार या एनजीओ के पास नहीं गए। बस खुद ही जुट गए। जितना कर सकते थे, किया। शुरुआत में दिक्कत आई। हर रोज दो सेशन में यमुना नहर के घाट की सफाई शुरू की। गंदगी जमा कराना। उसे सुखना फिर जलाना। अब उनकी दिनचर्या का हिस्सा बना हुआ है।
लोग भी हो रहे जागरूक : आदित्य यहां की सफाई तो करते हैं, इसके साथ ही गंदगी डालने वालों से बातचीत भी करते हैं। उन्हें बताते हैं कि यहां श्रद्धालु स्नान करने आते हैं। पूजा करते हैं। ऐसे में यहां गंदगी होगी तो कैसा लगेगा।
बस यह चंद शब्द ही लोगों को यहां गंदगी न डालने के प्रति प्रेरित करने के लिए काफी है। आदित्य ने बताया कि वास्तव में यहां लोग बड़ी मात्रा में पूजा सामग्री डालते हैं। स्नान के बाद कपड़े भी यहां छोड़ जाते हैं। इस वजह से यहां गंदगी भरा माहौल हो जाता है। यह पानी दिल्ली और दक्षिण हरियाणा में पीने के लिए प्रयोग किया जाता है। उनका मानना है कि लोग अब जागरूक होने लगे हैं।
नहर है आस्था की प्रतीक: उल्लेखनीय है कि हथनीकुंड बैराज पर यमुना नदी का पानी पश्चिमी यमुना नहर में डाल दिया जाता है। ऐसे में यमुना नदी यमुनानगर में सूखी है। लोग अपने धार्मिक अनुष्ठान भी नहर किनारे ही करने लगे हैं। इसलिए यह नहर ही आस्था की प्रतीक है।
आदित्य के अनुसार शुरूआत में तो लोग उनकी बात सुनने के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन जब वे लगातार इस सफाई के काम में लगे रहे तो लोगों ने भी इसमें रूचि लेने लगे। अब उनकी योजना है कि स्कूली बच्चों व प्रशासन को साथ जोड़ा जाए। आदित्य के मुताबिक यदि यमुना किनारे कुछ डस्टबिन रख दिए जाए तो यह समस्या काफी हद तक दूर हो सकती है। अब लोग मानने लगे कि यमुना में सामग्री डालना सही नहीं हैं।
आदित्य मूलत : इंदौर से हैं। यमुनानगर उनका ससुराल है। इस वजह से उनका नगर में आना जाना लगा रहता था। यमुना की खूबसूरती ने उन्हें इंदौर छोड़ विवश कर दिया। लेकिन जब नहर के हालात देखे तो वे काफी दुखित हुए। यहीं से उन्होंने इसके जीर्णोद्धार के लिए काम करना शुरू किया। शुरुआत में इधर उधर हाथ पांव मारने के बावजूद भी कोई बात नहीं बनी। फिर खुद ही ठान लिया। सुबह साढ़े छह बजे से नौ बजे तक और शाम को साढ़े छह से आठ बजे तक दोनों पहर वे घाट पर जाते हैं। जितनी भी गंदगी मिलती है। साफ करते हैं।
निदेशालय राष्ट्रीय नदी सरंक्षण, पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार ने जापान के सहयोग से यमुना एक्शन प्लान चलाया था। जापान बैंक और इंटरनेशनल ने 17.7 बिलियन येन की मदद दी थी। यमुना एक्शन प्लान का उद्देश्य था कि नहर व नदी को प्रदूषण मुक्त किया जाए। यह काम 2000 तक पूरा हो जाना था। समय पर काम पूरा न होने की वजह से यह काम फरवरी 2003 तक पूरा हुआ। काम पूरा हो गया, लेकिन गंदगी अभी भी बरकरार है। इसकी वजह यह है कि लोगों में अभी इसके प्रति जागरुकता का अभाव बना हुआ है। फिलहाल लोगों में ण्क शुरूआत हुई है जो हर लिहाज से बेहतर माना जा रहा है।
कोल इंडिया से सेवा निवृत्त आदित्य ने उठाया यमुना नहर को साफ करने का बीड़ा
यमुना एक्शन प्लान के तहत 17.1 बिलियन यान खर्च कर भी जो काम अधूरा रहा, जिस काम को सरकार और कोई एनजीओ नहीं कर पाई। उस काम को अकेला आदमी पूरा करने में लगा है।
यमुना नहर में अंगद की पांव तरह जमीं गंदगी को साफ करने का बीड़ा उठाया है कोल इंडिया से डीजीएस पद से सेवानिवृत्त आदित्य ने और काफी हद तक वो इसे साफ करने में सफल भी हो रहे हैं। उन्होंने इस दिशा में ध्यान देना शुरू किया। यमुना की सफाई के लिए वे किसी संगठन, सरकार या एनजीओ के पास नहीं गए। बस खुद ही जुट गए। जितना कर सकते थे, किया। शुरुआत में दिक्कत आई। हर रोज दो सेशन में यमुना नहर के घाट की सफाई शुरू की। गंदगी जमा कराना। उसे सुखना फिर जलाना। अब उनकी दिनचर्या का हिस्सा बना हुआ है।
लोग भी हो रहे जागरूक : आदित्य यहां की सफाई तो करते हैं, इसके साथ ही गंदगी डालने वालों से बातचीत भी करते हैं। उन्हें बताते हैं कि यहां श्रद्धालु स्नान करने आते हैं। पूजा करते हैं। ऐसे में यहां गंदगी होगी तो कैसा लगेगा।
बस यह चंद शब्द ही लोगों को यहां गंदगी न डालने के प्रति प्रेरित करने के लिए काफी है। आदित्य ने बताया कि वास्तव में यहां लोग बड़ी मात्रा में पूजा सामग्री डालते हैं। स्नान के बाद कपड़े भी यहां छोड़ जाते हैं। इस वजह से यहां गंदगी भरा माहौल हो जाता है। यह पानी दिल्ली और दक्षिण हरियाणा में पीने के लिए प्रयोग किया जाता है। उनका मानना है कि लोग अब जागरूक होने लगे हैं।
नहर है आस्था की प्रतीक: उल्लेखनीय है कि हथनीकुंड बैराज पर यमुना नदी का पानी पश्चिमी यमुना नहर में डाल दिया जाता है। ऐसे में यमुना नदी यमुनानगर में सूखी है। लोग अपने धार्मिक अनुष्ठान भी नहर किनारे ही करने लगे हैं। इसलिए यह नहर ही आस्था की प्रतीक है।
आदित्य के अनुसार शुरूआत में तो लोग उनकी बात सुनने के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन जब वे लगातार इस सफाई के काम में लगे रहे तो लोगों ने भी इसमें रूचि लेने लगे। अब उनकी योजना है कि स्कूली बच्चों व प्रशासन को साथ जोड़ा जाए। आदित्य के मुताबिक यदि यमुना किनारे कुछ डस्टबिन रख दिए जाए तो यह समस्या काफी हद तक दूर हो सकती है। अब लोग मानने लगे कि यमुना में सामग्री डालना सही नहीं हैं।
आदित्य मूलत : इंदौर से हैं। यमुनानगर उनका ससुराल है। इस वजह से उनका नगर में आना जाना लगा रहता था। यमुना की खूबसूरती ने उन्हें इंदौर छोड़ विवश कर दिया। लेकिन जब नहर के हालात देखे तो वे काफी दुखित हुए। यहीं से उन्होंने इसके जीर्णोद्धार के लिए काम करना शुरू किया। शुरुआत में इधर उधर हाथ पांव मारने के बावजूद भी कोई बात नहीं बनी। फिर खुद ही ठान लिया। सुबह साढ़े छह बजे से नौ बजे तक और शाम को साढ़े छह से आठ बजे तक दोनों पहर वे घाट पर जाते हैं। जितनी भी गंदगी मिलती है। साफ करते हैं।
निदेशालय राष्ट्रीय नदी सरंक्षण, पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार ने जापान के सहयोग से यमुना एक्शन प्लान चलाया था। जापान बैंक और इंटरनेशनल ने 17.7 बिलियन येन की मदद दी थी। यमुना एक्शन प्लान का उद्देश्य था कि नहर व नदी को प्रदूषण मुक्त किया जाए। यह काम 2000 तक पूरा हो जाना था। समय पर काम पूरा न होने की वजह से यह काम फरवरी 2003 तक पूरा हुआ। काम पूरा हो गया, लेकिन गंदगी अभी भी बरकरार है। इसकी वजह यह है कि लोगों में अभी इसके प्रति जागरुकता का अभाव बना हुआ है। फिलहाल लोगों में ण्क शुरूआत हुई है जो हर लिहाज से बेहतर माना जा रहा है।
Sunday, December 18, 2011
Monday, December 12, 2011
कुदरती खेती यानी तिनके से क्रांति की कवायद (Dainik Bhaskar 12 December 2011)
बिजाई, खाद और कीटनाशक का सारा खर्च खत्म, मध्य प्रदेश के किसान कुदरती खेती के जरिए खेती कर कमा रहे हैं मुनाफा भास्कर न्यूज त्न यमुनानगर
खेती का यह तरीका जड़ की ओर लौटने जैसा तो है। पर इसमें किसान की समृद्धि का राज छुपा है। कम से कम वह कुदरती खेती कर कर्ज से जंजाल से तो निजात पा ही सकता है। हरित क्रांति के नाम पर जमीन को जो जख्म मिले। कुदरती खेती इन जख्मों पर मरहम की तरह है। विशेषज्ञ इसे वक्त की जरू तर बता रहे हैं। क्योंकि इनका मानना है तभी किसान कर्ज के जंजाल से निजात पा सकता है। इसी विषय को लेकर पीस इंस्टीट्यूट चेरिटेबल ट्रस्ट की ओर से कनालसी गांव में दो दिवसीय कुदरती खेती पर सेमिनार आयोजित किया। शनिवार को इस कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। कार्यक्रम में पीस के निदेशक मनोज मिश्रा ने बताया कि कुदरती खेती वास्तव में हमारी विरासत है। यह अलग बात है कि वक्त के साथ हम इसे भूल गए। इसी तरीके से जापान के जीव वैज्ञानिक मासानोबू फुकुओका ने कृषि की। जो बेहद सफल रही।
मध्य प्रदेश के किसान कर रहे सफलतापूर्वक खेती : मध्य प्रदेश के ओसंगाबाद के किसान राजू टाइट्स कुदरती खेती कई साल से कर रहे हैं। कार्यक्रम में उन्होंने जब अपनी प्रस्तुति दी तो यहां के लोगो को एक बार तो उनकी बात पर यकीन ही नहीं हुआ। किसान पूछ बैठे। क्या यह संभव है। बिलकुल। मैं आपके सामने उदाहरण हूं। उन्होंने अपनी प्रस्तुति में फोटो और अन्य दस्तावेज लेकर आए।
क्या है कुदरती खेती : इसमें खेत की बुहाई नहीं होती। पेड़ पौधे व फसल को उसकी प्राकृतिक अवस्था में रहने दिया जाता है। यहां तक की पेड़ की शाखा की कटाई भी नहीं की जाती। बस सब कुछ वैसा ही रखा रहने दिया जाता है। जैसा वह होता है। बीज हाथ से रोपे जाते हैं। कई बार जमीन में हल्का खड्ढा खोद कर इसमें बीज लगा दिया जाता है।
कैसे काम होता है : मनोज मिश्रा के अनुसार जब हम बुहाई करते हैं तो बहुत से जीवाणु बरसात के पानी के साथ बह जाते हैं। यहीं वास्तव में खेत की जान है। जब हम कुदरती खेती करते हैं तो जीवाणु स्वयं सक्रिय हो जाते हैं। वे ही सारा काम प्राकृतिक तरीके से करते हैं। बस यहीं इस खेती की सफलता का राज है।
संभव है : विशेषज्ञों के अनुसार यह संभव है। कुछ आदिवासी कबीले भी इसी तरह से खेती कर रहे हैं। मनोज मिश्रा के अनुसार ट्रैक्टर से जब खेत की बुहाई होती है तो जमीन की प्राकृतिक संरचना टूटती है। वास्तव में जमीन का अपना एक चक्र है। जो जीवाणु, हरीखाद व केंचुओं पर निर्भर है। यह सब कुछ स्वयं ही होता रहता है।
80 प्रतिशत तक खर्च कम : किसान फसल की कुल लागत का चालीस प्रतिशत तक तो बुहाई पर लगा देता है। इसके बाद खाद और कीटनाशक बचते हैं। राजू टाइट्स के अनुसार किसान का काफी पैसा तो खरपतवार को खत्म करने में ही लग जाता है। कुदरती खेती में खरपतवार के साथ किसान की दोस्ती की बात करते है। खरपतवार ही फसल बढ़ाने में मदद करता है। क्योंकि इसकी छाया में जीवाणु खूब पनपते हैं।
उत्पादन पर अधिक असर नहीं : मनोज मिश्रा के अनुसार एक दो साल हो सकता है कुछ उत्पादन पर असर पड़े। लेकिन कुछ समय के बाद उत्पादन ठीक हो जाता है। इतना ही नहीं इस तरीके से तैयार फसल की गुणवत्ता भी कुदरती होती है। जो सेहत व स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक साबित होती है।
कुदरती खेती के सेमिनार को संबोधित करते विशेषज्ञ राजू टाइटस
एक तिनके से आई क्रांति ने लाया बदलाव
राजू टाइट्स ने अपनी बातचीत में बताया कि वास्तव में उनके हाथ मासानोबू फुकुओका की किताब का हिंदी वर्जन हाथ लग गया। एक तिनके से आई क्रांति पढ़ कर वे कुदरती खेती में लग गए। इस वक्त वे सफलतापूर्वक खेती कर रहे है। उनका कहना है कि यह खेती हर किसान को करनी चाहिए। इससे कृषि का 70 से 80 प्रतिशत तक खर्च बचाया जा सकता है।
विधि
खेती का यह तरीका जड़ की ओर लौटने जैसा तो है। पर इसमें किसान की समृद्धि का राज छुपा है। कम से कम वह कुदरती खेती कर कर्ज से जंजाल से तो निजात पा ही सकता है। हरित क्रांति के नाम पर जमीन को जो जख्म मिले। कुदरती खेती इन जख्मों पर मरहम की तरह है। विशेषज्ञ इसे वक्त की जरू तर बता रहे हैं। क्योंकि इनका मानना है तभी किसान कर्ज के जंजाल से निजात पा सकता है। इसी विषय को लेकर पीस इंस्टीट्यूट चेरिटेबल ट्रस्ट की ओर से कनालसी गांव में दो दिवसीय कुदरती खेती पर सेमिनार आयोजित किया। शनिवार को इस कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। कार्यक्रम में पीस के निदेशक मनोज मिश्रा ने बताया कि कुदरती खेती वास्तव में हमारी विरासत है। यह अलग बात है कि वक्त के साथ हम इसे भूल गए। इसी तरीके से जापान के जीव वैज्ञानिक मासानोबू फुकुओका ने कृषि की। जो बेहद सफल रही।
मध्य प्रदेश के किसान कर रहे सफलतापूर्वक खेती : मध्य प्रदेश के ओसंगाबाद के किसान राजू टाइट्स कुदरती खेती कई साल से कर रहे हैं। कार्यक्रम में उन्होंने जब अपनी प्रस्तुति दी तो यहां के लोगो को एक बार तो उनकी बात पर यकीन ही नहीं हुआ। किसान पूछ बैठे। क्या यह संभव है। बिलकुल। मैं आपके सामने उदाहरण हूं। उन्होंने अपनी प्रस्तुति में फोटो और अन्य दस्तावेज लेकर आए।
क्या है कुदरती खेती : इसमें खेत की बुहाई नहीं होती। पेड़ पौधे व फसल को उसकी प्राकृतिक अवस्था में रहने दिया जाता है। यहां तक की पेड़ की शाखा की कटाई भी नहीं की जाती। बस सब कुछ वैसा ही रखा रहने दिया जाता है। जैसा वह होता है। बीज हाथ से रोपे जाते हैं। कई बार जमीन में हल्का खड्ढा खोद कर इसमें बीज लगा दिया जाता है।
कैसे काम होता है : मनोज मिश्रा के अनुसार जब हम बुहाई करते हैं तो बहुत से जीवाणु बरसात के पानी के साथ बह जाते हैं। यहीं वास्तव में खेत की जान है। जब हम कुदरती खेती करते हैं तो जीवाणु स्वयं सक्रिय हो जाते हैं। वे ही सारा काम प्राकृतिक तरीके से करते हैं। बस यहीं इस खेती की सफलता का राज है।
संभव है : विशेषज्ञों के अनुसार यह संभव है। कुछ आदिवासी कबीले भी इसी तरह से खेती कर रहे हैं। मनोज मिश्रा के अनुसार ट्रैक्टर से जब खेत की बुहाई होती है तो जमीन की प्राकृतिक संरचना टूटती है। वास्तव में जमीन का अपना एक चक्र है। जो जीवाणु, हरीखाद व केंचुओं पर निर्भर है। यह सब कुछ स्वयं ही होता रहता है।
80 प्रतिशत तक खर्च कम : किसान फसल की कुल लागत का चालीस प्रतिशत तक तो बुहाई पर लगा देता है। इसके बाद खाद और कीटनाशक बचते हैं। राजू टाइट्स के अनुसार किसान का काफी पैसा तो खरपतवार को खत्म करने में ही लग जाता है। कुदरती खेती में खरपतवार के साथ किसान की दोस्ती की बात करते है। खरपतवार ही फसल बढ़ाने में मदद करता है। क्योंकि इसकी छाया में जीवाणु खूब पनपते हैं।
उत्पादन पर अधिक असर नहीं : मनोज मिश्रा के अनुसार एक दो साल हो सकता है कुछ उत्पादन पर असर पड़े। लेकिन कुछ समय के बाद उत्पादन ठीक हो जाता है। इतना ही नहीं इस तरीके से तैयार फसल की गुणवत्ता भी कुदरती होती है। जो सेहत व स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक साबित होती है।
कुदरती खेती के सेमिनार को संबोधित करते विशेषज्ञ राजू टाइटस
एक तिनके से आई क्रांति ने लाया बदलाव
राजू टाइट्स ने अपनी बातचीत में बताया कि वास्तव में उनके हाथ मासानोबू फुकुओका की किताब का हिंदी वर्जन हाथ लग गया। एक तिनके से आई क्रांति पढ़ कर वे कुदरती खेती में लग गए। इस वक्त वे सफलतापूर्वक खेती कर रहे है। उनका कहना है कि यह खेती हर किसान को करनी चाहिए। इससे कृषि का 70 से 80 प्रतिशत तक खर्च बचाया जा सकता है।
विधि
Sunday, December 4, 2011
There's need and also greed (Times of India 29 November 2011)
According to Gautama Buddha tanha or desire and craving is the cause of human suffering. Once we are free of desire for worldly objects, we are free from suffering and we attain the state of nirvana. Hence it is greed, not need, that we have to do away with. The more we have, the more we want. Greed is a never-ending cycle.
How to make the distinction between need and greed? Economists explain the distinction between the two in terms of 'needs' and 'preferences' or 'desire satisfaction'. The distinction between 'preference' and 'need' is that the former is intentional and the latter is extensional. The need, for example, is to quench our thirst; the preference is whether we use bottled water or drink straight from the tap.
The need of a person is something which depends on his factual material, mental, physical and social condition. It also depends upon the available objects which are perceived as possessing the capacities to contribute to his survival and well-being. Whether a person prefers one object to another depends upon the nature of the person's beliefs about the objects.
While the concept of need is a threshold concept, the concept of preference is not. Need is a threshold concept because having more or less than one's needs would harm one's survival. Need is that without which the individual cannot survive. For example, a person needs a certain amount of water, food or shelter to lead his life and maintain social relations.
Moreover, while the objects required for 'preference' or 'desire satisfaction' may have several alternative substitutes, needs are objective and specific and do not admit any substitute. For example, it is admitted by everyone that there is no substitute for good health, good friends and good environment. They are specific to the needs for the well-being of all individuals.
Desires and preferences can be artificial or superfluous. For example, the desires for accessories are artificial. They are market-governed and even market-determined. Desires can be natural or non-natural. It would be instructive here to listen to a conversation between Alexander and an Indian thinker, Dandamis.
Alexander was greatly struck by the austerity of life and majesty of the Indian thinker. The Indian told Alexander that natural desires are quenched easily: thirst by water, hunger by food. But the craving for possession is an artificial one; it goes on unceasingly and is never fully satisfied.
The sage explained the criterion for making a distinction between a natural or real and a non-natural or contrived desire. A natural desire is fulfilled the moment you get what you sought. For example "If you drink the water you thirst for, your desire ceases. Similarly, if you are feeling hungry, you receive the food you seek, your hunger comes to an end. If, then, man's appetite for gold were on the same natural level, no doubt his cupidity would cease as soon as he obtained what he wished for. But this is not the case. On the contrary, it always comes back, a passion is never satiated, and the craving remains because it does not proceed from an inclination implanted by nature."
The criterion of distinction between need and greed is: Natural desires are our needs, therefore they are those which come to an end or are satiated when one fulfils them. Artificial desires are greed, as they are those which can never be satiated.
The writer teaches philosophy at Delhi University.
How to make the distinction between need and greed? Economists explain the distinction between the two in terms of 'needs' and 'preferences' or 'desire satisfaction'. The distinction between 'preference' and 'need' is that the former is intentional and the latter is extensional. The need, for example, is to quench our thirst; the preference is whether we use bottled water or drink straight from the tap.
The need of a person is something which depends on his factual material, mental, physical and social condition. It also depends upon the available objects which are perceived as possessing the capacities to contribute to his survival and well-being. Whether a person prefers one object to another depends upon the nature of the person's beliefs about the objects.
While the concept of need is a threshold concept, the concept of preference is not. Need is a threshold concept because having more or less than one's needs would harm one's survival. Need is that without which the individual cannot survive. For example, a person needs a certain amount of water, food or shelter to lead his life and maintain social relations.
Moreover, while the objects required for 'preference' or 'desire satisfaction' may have several alternative substitutes, needs are objective and specific and do not admit any substitute. For example, it is admitted by everyone that there is no substitute for good health, good friends and good environment. They are specific to the needs for the well-being of all individuals.
Desires and preferences can be artificial or superfluous. For example, the desires for accessories are artificial. They are market-governed and even market-determined. Desires can be natural or non-natural. It would be instructive here to listen to a conversation between Alexander and an Indian thinker, Dandamis.
Alexander was greatly struck by the austerity of life and majesty of the Indian thinker. The Indian told Alexander that natural desires are quenched easily: thirst by water, hunger by food. But the craving for possession is an artificial one; it goes on unceasingly and is never fully satisfied.
The sage explained the criterion for making a distinction between a natural or real and a non-natural or contrived desire. A natural desire is fulfilled the moment you get what you sought. For example "If you drink the water you thirst for, your desire ceases. Similarly, if you are feeling hungry, you receive the food you seek, your hunger comes to an end. If, then, man's appetite for gold were on the same natural level, no doubt his cupidity would cease as soon as he obtained what he wished for. But this is not the case. On the contrary, it always comes back, a passion is never satiated, and the craving remains because it does not proceed from an inclination implanted by nature."
The criterion of distinction between need and greed is: Natural desires are our needs, therefore they are those which come to an end or are satiated when one fulfils them. Artificial desires are greed, as they are those which can never be satiated.
The writer teaches philosophy at Delhi University.
S Delhi water project on PPP model (Times of India 29 November 2011)
NEW DELHI: In its first step towards partial privatization of water management, Delhi Jal Board (DJB) received clearance for starting a pilot project on public-private partnership model for water distribution in Malviya Nagar, Vasant Kunj and Nangloi.
Officials said the project would entail appointment of private companies through a bidding process. This, they hope, would improve efficiency of the water distribution network and reduce non-revenue water. The companies would also be responsible for operation and maintenance of the underground reservoirs in the areas and collect revenue for the board.
In a board meeting held on Monday, approval was also given to water supply upgrade and improvement project at Mehrauli at an estimated cost of Rs 145 crore. Approval was also granted for setting up of the SCADA system at the Bhagirathi water treatment plant and its major booster pumping stations and UGRs.
To improve water distribution through tankers, the Board also decided to replace around 250 water tankers that are more than 13 years old. The Board gave approval to the estimate for operation and maintenance of the 11 MGD recycling plant at Wazirabad and the 16 MGD recycling water treatment plant at Haiderpur Water Works for a period of five years at a cost of over Rs 37 crore.
Approval was also accorded to a revision in a proposal worth Rs 364.5 crore for supply, installation and a seven-year maintenance contract of eight lakh domestic water meters. A project to replace water mains was also passed in the meeting. These would include the 1,100 mm dia PSC west Delhi water main by MS pipe from Wazirpur depot to Shakkurpur Village along the Ring Road and Shakurpur Pushta to PWD office in Punjabi Bagh; 1,000 mm and 1,500 mm dia PSC water pipelines emanating from Haiderpur in stretches near Prashant Vihar, Delhi Cantt Booster Pumping Station, Mongolpuri, Meera Bagh and Cariappa Marg .
Officials said the project would entail appointment of private companies through a bidding process. This, they hope, would improve efficiency of the water distribution network and reduce non-revenue water. The companies would also be responsible for operation and maintenance of the underground reservoirs in the areas and collect revenue for the board.
In a board meeting held on Monday, approval was also given to water supply upgrade and improvement project at Mehrauli at an estimated cost of Rs 145 crore. Approval was also granted for setting up of the SCADA system at the Bhagirathi water treatment plant and its major booster pumping stations and UGRs.
To improve water distribution through tankers, the Board also decided to replace around 250 water tankers that are more than 13 years old. The Board gave approval to the estimate for operation and maintenance of the 11 MGD recycling plant at Wazirabad and the 16 MGD recycling water treatment plant at Haiderpur Water Works for a period of five years at a cost of over Rs 37 crore.
Approval was also accorded to a revision in a proposal worth Rs 364.5 crore for supply, installation and a seven-year maintenance contract of eight lakh domestic water meters. A project to replace water mains was also passed in the meeting. These would include the 1,100 mm dia PSC west Delhi water main by MS pipe from Wazirpur depot to Shakkurpur Village along the Ring Road and Shakurpur Pushta to PWD office in Punjabi Bagh; 1,000 mm and 1,500 mm dia PSC water pipelines emanating from Haiderpur in stretches near Prashant Vihar, Delhi Cantt Booster Pumping Station, Mongolpuri, Meera Bagh and Cariappa Marg .
Widespread protests over Mullaperiyar dam in Kerala (The Hindu 29 November 2011)
Hartal demanding decommissioning of reservoir total in Idukki district
Kerala saw widespread protests over the Mullaperiyar dam issue on Monday, with people agitating for its decommissioning in five districts and the State capital.
In places like Karinkulam Chappathu in Idukki district, the protests almost took the form of a grass-root level movement with people from different parts of the district joining the stir.
Roads were clogged, though the organisers of the protest — the Mullaperiyar Action Council — did not plan a blockade. CPI leader E.S. Bijimol continued her hunger strike for the second day while P. C. George, MLA, joined the fast on Tuesday.
Traffic held up: The hartal called by the United Democratic Front and the Left Democratic Front was total in most parts of the district. Protesters blocked vehicles at Kumili on the border with Tamil Nadu, resulting in the traffic being held up for hours. However, the protesters allowed vehicles of Sabarimala pilgrims and emergency services to pass through, though pilgrims were often forced to wait for some time.
At Vallakadavu, just eight kilometres downstream of the Mullaperiyar dam, children of the locality joined the fast. Children in this area are a scared lot, with every noise being mistaken for rushing waters.
In Thodupuzha, advocates boycotted the courts. Schools and colleges remained closed. Students took out a protest march at Cheruthoni over the twin demands for decommissioning the existing Mullaperiyar dam and lowering the water level in the dam to 120 feet pending the decommissioning. The protesters demanded urgent Central intervention.
Union Ministers from the State A. K. Antony, Vayalar Ravi and E. Ahamed drew flak from the protesters for their inaction. The Bharatiya Janata Yuva Morcha took out a march to the residence of the Defence Minister A.K. Antony here.
The Kerala Congress (Mani) group organised dharnas in Ernakulam, Pathanamthitta, Idukki and Alappuzha. The party's Idukki member of the Assembly Roshy Augustine sat on a hunger strike before the Accountant General's Office here.
Water level rises Meanwhile, water level in the Mullaperiyar reservoir crossed the 136 feet stipulated by Kerala. Water is flowing down through all the open spillways. The district administration opened control rooms to monitor the situation and assist people in case of an emergency.
Kerala saw widespread protests over the Mullaperiyar dam issue on Monday, with people agitating for its decommissioning in five districts and the State capital.
In places like Karinkulam Chappathu in Idukki district, the protests almost took the form of a grass-root level movement with people from different parts of the district joining the stir.
Roads were clogged, though the organisers of the protest — the Mullaperiyar Action Council — did not plan a blockade. CPI leader E.S. Bijimol continued her hunger strike for the second day while P. C. George, MLA, joined the fast on Tuesday.
Traffic held up: The hartal called by the United Democratic Front and the Left Democratic Front was total in most parts of the district. Protesters blocked vehicles at Kumili on the border with Tamil Nadu, resulting in the traffic being held up for hours. However, the protesters allowed vehicles of Sabarimala pilgrims and emergency services to pass through, though pilgrims were often forced to wait for some time.
At Vallakadavu, just eight kilometres downstream of the Mullaperiyar dam, children of the locality joined the fast. Children in this area are a scared lot, with every noise being mistaken for rushing waters.
In Thodupuzha, advocates boycotted the courts. Schools and colleges remained closed. Students took out a protest march at Cheruthoni over the twin demands for decommissioning the existing Mullaperiyar dam and lowering the water level in the dam to 120 feet pending the decommissioning. The protesters demanded urgent Central intervention.
Union Ministers from the State A. K. Antony, Vayalar Ravi and E. Ahamed drew flak from the protesters for their inaction. The Bharatiya Janata Yuva Morcha took out a march to the residence of the Defence Minister A.K. Antony here.
The Kerala Congress (Mani) group organised dharnas in Ernakulam, Pathanamthitta, Idukki and Alappuzha. The party's Idukki member of the Assembly Roshy Augustine sat on a hunger strike before the Accountant General's Office here.
Water level rises Meanwhile, water level in the Mullaperiyar reservoir crossed the 136 feet stipulated by Kerala. Water is flowing down through all the open spillways. The district administration opened control rooms to monitor the situation and assist people in case of an emergency.
Kerala to Centre: same quantum of water to Tamil Nadu, new dam with our own funds (The Hindu 29 November 2011)
The Kerala government on Monday gave an undertaking to the Centre that it would continue to provide the same quantum of water to Tamil Nadu, as is being given now, if a new dam was constructed in the place of the existing 116-year old Mullai Periyar dam in the Idukki district. Besides, the State would construct the dam from its own funds.
This assurance in writing, as sought by Union Water Resources Minister Pawan Kumar Bansal from Kerala a few days ago, was jointly given by State Water Resources Minister P.J. Joseph and Revenue Minister Thiruvanchoor Radhakrishnan here, as authorised by the Oomen Chandy's cabinet.
Mr. Bansal had earlier clearly told Kerala Chief Minister Oomen Chandy that the Centre would try to mediate and convene a bilateral meeting between the governments of Kerala and Tamil Nadu, if Kerala gave such a written assurance.
Meanwhile, talking to The Hindu, Mr. Joseph said Mr. Bansal had promised to discuss with Prime Minister Manmohan Singh the fresh development and see what could be done next. The Minister said the team also met Union Home Minister P. Chidambaram and discussed the issue. The two Ministers would meet Dr. Singh on Tuesday and take up the issue again, he said.
Earlier in the day, MPs from Kerala, cutting across party lines, took up the issue in both Houses of Parliament and stalled the proceedings seeking the Centre's immediate intervention.
This assurance in writing, as sought by Union Water Resources Minister Pawan Kumar Bansal from Kerala a few days ago, was jointly given by State Water Resources Minister P.J. Joseph and Revenue Minister Thiruvanchoor Radhakrishnan here, as authorised by the Oomen Chandy's cabinet.
Mr. Bansal had earlier clearly told Kerala Chief Minister Oomen Chandy that the Centre would try to mediate and convene a bilateral meeting between the governments of Kerala and Tamil Nadu, if Kerala gave such a written assurance.
Meanwhile, talking to The Hindu, Mr. Joseph said Mr. Bansal had promised to discuss with Prime Minister Manmohan Singh the fresh development and see what could be done next. The Minister said the team also met Union Home Minister P. Chidambaram and discussed the issue. The two Ministers would meet Dr. Singh on Tuesday and take up the issue again, he said.
Earlier in the day, MPs from Kerala, cutting across party lines, took up the issue in both Houses of Parliament and stalled the proceedings seeking the Centre's immediate intervention.
Nod for Jal Board project to outsource water distribution (The Hindu 29 November 2011)
The Delhi Jal Board's ambitious plan to outsource water distribution and revenue collection on a pilot basis in three areas based on a public-private partnership basis has been accorded administrative approval. At a Jal Board meeting chaired by Chief Minister Sheila Dikshit on Monday the pilot project was given the go-ahead.
The project has a twin purpose: to reduce revenue losses and to improve distribution of water. “Taking a cue from privatisation of power and the subsequent improvement in supply and services, we have decided to carry out an exercise in three areas of the city where operations and management will be outsourced. The aim is to bring in improvement in the city's water supply and raise the bar vis-à-vis services offered by the Jal Board. The project is also expected to plug the leaks in the system and help us reduce losses on account of non-revenue water,” said DJB Chief Executive Officer Ramesh Negi.
The project, which faced opposition on the grounds that it would pave the way for “privatisation of the water sector”, has the approval of the Planning Commission as well.
The pilot project will take off at Malviya Nagar Underground Reservoir command area, Nangloi Water Treatment Plant and Vasant Vihar with their adjoining areas. “We will extensively study the outcome of these projects, and on the basis of the feedback decide if it can be replicated to other areas,” said Mr. Negi.
The Board also approved the proposal of upgrading and improving water supply system in Mehrauli Township at an estimated cost of Rs.145 crore which includes operation and maintenance for a 12-year period.
Approval was also granted for modernisation of the plant and setting up of SCADA system at Bhagirathi Water Treatment Plant and its major booster pumping stations and underground reservoirs at an estimated cost of Rs.271.80 crore with a maintenance period of 10 years.
To improve the water distribution system through tankers, the Jal Board has accorded approval to replace around 250 water tankers, which are around 13 years old, at an estimated cost of Rs.87,48,58,100 with a maintenance period of 10 years. The DJB currently supplies drinking water to areas with no piped connections through 1,000 water tankers.
The Jal Board also gave administrative approval to the estimate for operation and maintenance of the 11-MGD recycling plant at Wazirabad and the 16-MGD recycling WTP at Haiderpur Water Works for a period of 5 years at a cost of approximately Rs.37,63,37,855.
With the objective of replacing defective meters and metering of un-metered connections, the Jal Board has given administrative approval to the revised estimate of Rs.364.50 crore for supply, installation and a 7-year maintenance of 8 lakh domestic water meters.
The Jal Board also approved the replacement of the water mains and reviewed several welfare schemes for its employees.
• Pilot project to take off at Malviya Nagar, Nangloi Water Treatment Plant and Vasant Vihar
• Will be based on public-private partnership; project also has Planning Commission approval
The project has a twin purpose: to reduce revenue losses and to improve distribution of water. “Taking a cue from privatisation of power and the subsequent improvement in supply and services, we have decided to carry out an exercise in three areas of the city where operations and management will be outsourced. The aim is to bring in improvement in the city's water supply and raise the bar vis-à-vis services offered by the Jal Board. The project is also expected to plug the leaks in the system and help us reduce losses on account of non-revenue water,” said DJB Chief Executive Officer Ramesh Negi.
The project, which faced opposition on the grounds that it would pave the way for “privatisation of the water sector”, has the approval of the Planning Commission as well.
The pilot project will take off at Malviya Nagar Underground Reservoir command area, Nangloi Water Treatment Plant and Vasant Vihar with their adjoining areas. “We will extensively study the outcome of these projects, and on the basis of the feedback decide if it can be replicated to other areas,” said Mr. Negi.
The Board also approved the proposal of upgrading and improving water supply system in Mehrauli Township at an estimated cost of Rs.145 crore which includes operation and maintenance for a 12-year period.
Approval was also granted for modernisation of the plant and setting up of SCADA system at Bhagirathi Water Treatment Plant and its major booster pumping stations and underground reservoirs at an estimated cost of Rs.271.80 crore with a maintenance period of 10 years.
To improve the water distribution system through tankers, the Jal Board has accorded approval to replace around 250 water tankers, which are around 13 years old, at an estimated cost of Rs.87,48,58,100 with a maintenance period of 10 years. The DJB currently supplies drinking water to areas with no piped connections through 1,000 water tankers.
The Jal Board also gave administrative approval to the estimate for operation and maintenance of the 11-MGD recycling plant at Wazirabad and the 16-MGD recycling WTP at Haiderpur Water Works for a period of 5 years at a cost of approximately Rs.37,63,37,855.
With the objective of replacing defective meters and metering of un-metered connections, the Jal Board has given administrative approval to the revised estimate of Rs.364.50 crore for supply, installation and a 7-year maintenance of 8 lakh domestic water meters.
The Jal Board also approved the replacement of the water mains and reviewed several welfare schemes for its employees.
• Pilot project to take off at Malviya Nagar, Nangloi Water Treatment Plant and Vasant Vihar
• Will be based on public-private partnership; project also has Planning Commission approval
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