Wednesday, January 5, 2011

16 घंटे तो गंदगी ही जाती है यमुना में (Navbharat Times 19 December 2010)

सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों के हालात सुधारे बिना यमुना को साफ करने और साफ रखने का मकसद पूरा नहीं किया जा सकता। ट्रीटमेंट प्लांटों से 24 घंटे में से 16 घंटे यमुना में बिना जांच हुए सीवेज पहुंचता है। ट्रीटमेंट लैब में सिर्फ एक ही शिफ्ट में काम होने से पूरे सीवेज की केमिकल और बायोलॉजिकल टेस्टिंग नहीं हो पाती। साथ ही ट्रीटमेंट प्लांटों में गुजरे जमाने की तकनीक ही इस्तेमाल की जा रही है जिससे ट्रीटमेंट के पैरामीटर भी पूरे नहीं हो पाते। उम्मीद है कि जल्द ही जल बोर्ड के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में नई तकनीक इस्तेमाल की जाने लगेगी। जल बोर्ड इसे लेकर गंभीर है और कई कंपनियां नई तकनीकों को लेकर अपना प्रेजेंटेशन दे चुकी हैं। दिल्ली में 17 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं। जिनमें 512 एमजीडी सीवेज का ट्रीटमेंट होता है। यमुना विहार में 25 एमजीडी, कोंडली में 45 एमजीडी और ओखला में 30 एमजीडी का ट्रीटमेंट प्लांट बन रहा है। ट्रीटमेंट प्लांटों के लिए 6 जोनल लैब हैं। यहां ट्रीटमेंट के पैरामीटर की जांच की जाती है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सीवेज लैब में स्टाफ की भारी कमी है। जिससे पैरामीटर चेक हुए बिना ही सीवेज यमुना में जा रहा है। लैब में सिर्फ दिन की शिफ्ट में काम होता है और बाकी वक्त लैब में कोई काम नहीं हो पाता। जिससे ज्यादा बीओडी, सीओडी, पीएच, हेवी मेटल्स, टीडीएस, ऑयल, ग्रीस वाले और पानी, पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले तत्व भी बिना जांच के ही ट्रीटमेंट प्लांट से बाहर आ जाते हैं और यमुना में डाल दिए जाते हैं। जानकारों के मुताबिक, जब तक लैब में तीन शिफ्ट में काम नहीं होता, तब तक यमुना में अनट्रीटेड सीवेज जाता रहेगा। जहां कम से कम 100 लोगों के स्टाफ की जरूरत है वहां सिर्फ 30 लोग काम कर रहे हैं। सीवेज सिस्टम की हालत भी काफी बुरी है। ह्यूमन राइट्स कमिशन के साथ जल बोर्ड की कम से कम 34 मीटिंग हो चुकी हैं और वह हर बार कहते हैं कि सीवेज सिस्टम को सुधारा जाए। सूत्रों ने बताया कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में भी हालत काफी खराब है। न तो नई तकनीक है और न ही मेंटिनेंस सही से हो पा रहा है। ऐसे में ट्रीटमेंट कैसे पैरामीटर पर खरा उतरता है यह कोई नहीं बता सकता। ट्रीटमेंट प्लांट से भी अनट्रीटेड सीवेज यमुना तक पहुंच रहा है। वैसे अब जल बोर्ड सीवेज सिस्टम को सुधारने को लेकर गंभीर हुआ है। सूत्रों ने बताया कि कुछ दिनों पहले हुई एक मीटिंग में करीब 6 देसी-विदेशी कंपनियों को सीवेज ट्रीटमेंट के लिए नई तकनीक का प्रेजेंटेशन दिया है। इसे जल्द ही फाइनल कर दिया जाएगा। नई लैब बनाने पर भी विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अभी हम एडवांस देशों से काफी पीछे हैं और जहां लगभग हर देश एमबीआर टेक्नीक यूज कर रहा है वहीं हमारे यहां बहुत पुरानी तकनीक से काम हो रहा है। जल बोर्ड के कई एक्सपर्ट दूसरे देशों से नई तकनीक की ट्रेनिंग भी ले कर आए लेकिन यहां नई तकनीक नहीं होने से उनमें से ज्यादातर लोग अब रिटायर भी हो चुके हैं। जल बोर्ड के अधिकारी ने कहा कि जब तक प्लांटों के अंदर मेंटिनेंस सही नहीं होगा, लैब की हालत नहीं सुधारी जाएगी और हाई टेक उपकरणों का अभाव रहेगा, तब तक हम खुद ही यमुना को गंदा करने के लिए जिम्मेदार होंगे।

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